चहार दीवारी के बाहर

नीले आसमान के नीचे
घर के बाहर पड़ी खाट
क्या तुमने देखा है
जागते रहो कहते
किसी को सुना है ?
अगर हां ! तो तुमने गाँव देखा है
दादी के हाथों से बने
गोइंठा का स्वाद
मिट्टी के चूल्हे से निकलती
तवे पर फूली हुई रोटियां
डेक्ची में उबलती दाल
उसमें देशी घी-जीरे का तड़का
क्या तुमने चखा है ?
अगर हां ! तो तुमने गाँव देखा है
दादा के हाथ में लाठी
दादी के आँखों पर
बूढ़े चश्मे की वह फ्रेम
आँगन में रात को तारे गिनते बच्चे
बिजली आने पर शोर की आवज
क्या तुमने सुना है
अगर हाँ ! तो तुमने गाँव देखा है
बैल को हल से खेत जोतते
किसान को टोकरी से अनाज छिटते
हरियाली से लहलाहाते खेत
धान और गेहूँ की गदराई बालियाँ
हवाओं के साथ झूमती पीली सरसों
क्या तुमने देखा है

अगर हाँ ! तो तुमने गाँव देखा है
कोल्हू और चरखी से
निकलता गन्ने का मीठा रस  
अलसी के नीले फूलों पर
मड़राती तितलियाँ
फसलों की सुरक्षा में गाड़े गए चुगुल
क्या तुमने देखा है
अगर हाँ ! तो तुमने गाँव देखा है
सावन में पेड़ों पर लटकते झूले
मकर संक्रांति पर
आसमान नापती पतंगे
कुश्ती-कबड्डी के खेल
हर दिन
मेले और त्यौहारों का उत्सव
क्या तुमने देखा है
अगर हाँ ! तो तुमने गाँव को देखा है
- अंकित शुक्ल
ग्राम- हरीपुर, (भदोही)।

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