Anita kushwa

आज भारत की बढ़ती जनसंख्या विकराल रूप धारण किये जा रही है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव लोगों के मनोमस्तिष्क पर पड़ रहा है। शहर के लोगों में भीड़ से भय होने की प्रवृति देखी जा रही है। यह प्रवृति मौजूदा हालत में बीमारी का रूप धारण कर चुकी है। मनोचिकित्सकों ने इससे ग्रसित लोगों के इलाज में पाया है कि यह एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है जो कि उनके दिमाग पर पूरी तरह हावी हो जाती है।
सर्वेक्षण के अनुसार ज्यादातर महिलाएं ही इस बीमारी से ग्रस्त हैं क्योंकि पुरूष नौकरी व्यापार आदि के सिलसिले में हर वक्त घर से बाहर जाते रहते हैं। यदि उन्हें भीड़ से घबराहट भी होती है तो वह जल्दी ही दूर हो जाती है। आज भी स्त्रियों का अधिकांश समय घर या कार्यालय में बीतता है। अत: वे थोड़ी संकोची स्वभाव या डरपोक हों तो भीड़ से भयभीत रहने लगती हैं।
यदि किसी महिला को भीड़ से भय हो जाता है तो सचमुच यह विकट रूप धारण कर रोग बन जाता है जिसके अजीबो गरीब परिणाम सामने आते हैं। मानसिक संतुलन खोने लगता है। काम करने में मन नहीं लगता। कई बार काम करते-करते हाथ से सामान गिर जाता है। हर समय भय की भावना घेरे रहती हैं। बेचैनी महसूस होती है जिससे छुटकारा पाने के लिए महिलाएं नींद की गोलियां लेने लगती हैं जो कालांतर में बीमारी का रूप ले लेती हैं।
ऐसी स्थिति में महिलाएं घर से बाहर या किसी खास मौके पर जाने से भी कतराती हैं जैसे शादी-ब्याह, खरीदारी के लिए बाजार जाने, घर पर अतिथियों के आने से, सभी के साथ मिल-बैठकर खाने-पीने आदि की इच्छा भी नहीं रह जाती।
यदि लोगों का मानना हो कि भीड़ से भय कोई जन्मजात बीमारी है तो यह सोचना बिल्कुल गलत है। इसका संबंध किसी की अधिक या कम शिक्षा से, उच्च या निम्न वर्ग में जन्म लेने से, किसी तथाकथित ऊंची या नीची जाति-आदि से नहीं है। यह एक मानसिक रोग है जिसका सबंधं पूर्णत: मन से है। प्राय: मनोवैज्ञानिक कारण ही होते हैं।
मिसेज शुक्ला को सड़क पार करने तक से भय लगता है क्योंकि छोटी उम्र में ही उनके बड़े भाई भरी सड़क पार करते हुए दुर्घटना के शिकार हो गए थे। यदि उन के इस तरह के व्यवहार करने के कारणों का पता लगाएं तो जान पाएंगे कि अधिकांश महिलाएं ऐसी ही कई छोटी बड़ी वजहों से भीड़ से भयभीत रहती हैं। कुछ को अपनी मानसिक स्थिति का अहसास होता भी है लेकिन वे परिस्थितियों से जूझने के बजाय उनसे भागने लगती हैं।
भागना कोई इलाज नहीं है। भागिए नहीं, जूझिए। मिसेज शुक्ला के भाई के दुर्घटना होने से जरूरी तो नहीं कि सड़क पार करते वक्त भीड़ से उनकी भी मृत्यु हो जाएगी। उन्हें भीड़ भरी सड़कों को पार करना चाहिए। एक दो बार उस दुर्घटना की याद आएगी लेकिन फिर धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। कहना न होगा कि मानसिक समस्या का इलाज भी मनोचिकित्सिकों द्वारा ही संभव है पर ऐसे लोग अगर स्वयं चाहें तो भय वाली परिस्थितियों में जा कर उन से जूझकर, उनसे एकाकार होकर ही भय से मुक्त हो सकते हैं।
अगर भीड़ से डर लगता है तो भीड़ के बीच घुसने की कोशिश कीजिए। एक न एक दिन आप अपनी कमजोरी पर काबू पा लेंगे। यदि आपको सिनेमा जाने, थियेटर जाने, शादी-ब्याह या अन्य सामाजिक समारोहों में जाने अथवा रेल या बस में चढऩे से डर लगता है तो सिनेमा और थियेटर अवश्य जाइए। शादी-ब्याह व अन्य सामाजिक एवं पारिवारिक उत्सवों में अवश्य शामिल होइए। भीड़ भरी रेल व बस में अवश्य चढि़ए। परिस्थितियों का मुकाबला करने से ही इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।
कुछ मनोवैज्ञानिक व्यायाम:- अगर आपको भीड़ से भय लगता है तो कुछ अन्य सुझावों पर भी अमल कीजिए। खास कर सुबह शाम जब लोग ऑफिस दुकान आदि पर आते जाते रहते हैं, आप अपने घर के अगले दरवाजे पर प्रतिदिन घंटे भर खड़े होकर उन्हें देखते रहिए। इससे आपके शरीर में फुर्ती आएगी, उत्साह पैदा होगा और भीड़ से घबराकर चुपचपा किसी कमरे में सिमट कर रहने की इच्छा से आप मुक्त हो जाएंगी। सवेरे या शाम अथवा दोनों समय घर से बाहर नियमित रूप से घूमने जाएं, पास पड़ोस के लोगों से मिलें।
घूमते वक्त भीड़ भरी बस में चढ़ते-उतरते लोगों को भी देखें जिससे आपका हल्का मनोरंजन भी होगा, साथ आप में भी चढऩे का साहस आएगा। अगर घर के निकट रेलवे स्टेशन है तो कभी कभार प्लेटफार्म पर जाइए।
 वहां इधर उधर से आती जाती लोगों को टेऊन में चढ़ती उतरती लोगों की भीड़ को देखिए।
यदि आप इन परिस्थतियों से भागने के लिए गोलियां खाने की आदत पालती हैं तो उसे धीरे-धीरे छोड़ती जाइए। दवाइयां खाना कोई अच्छी बात नहीं। जब कोई शारीरिक बीमारी न होकर मात्र मानसिक रोग हो तो दवाइयां खाने का भला क्या औचित्य। यह तो व्यवहार चिकित्सा से ही संभव है।
ये सब बड़े सरल इलाज हैं लेकिन एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इलाज का कभी-कभी हल्का सा प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है। उदाहरण के लिए आपने भीड़ भरी बस में यात्र करने में होने वाली घबराहट से मुक्ति पा ली और सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा है कि तभी एकाएक किसी दिन आपको भीड़ भरी बस में यात्र करते समय 'नर्वसनेस' हो सकती है लेकिन परेशान न हों क्योंकि यह जरूरी नहीं कि इस बार आप भीड़ के कारण नर्वस हुई हो।
इसका कारण अत्यधिक थकान भी हो सकती हैं और यदि यह मान लिया जाए कि कारण भीड़ ही है जिससे आप पहले भी भयभीत रहती थी तो भी अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं इस बात को मत भूलिए कि इस बार एक लम्बे अरसे के बाद आप नर्वस हुई हैं।


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