संजीव ठाकुर

सत्ता द्वारा विपक्षी दलों, पत्रकारों, न्यायाधीशों एवं अपने विरोधी शख्सियत की जासूसी करवाना कोई नवीन घटना नहीं है। स्वतंत्रता के बाद से जब भी सत्ता या सरकार को किसी व्यक्ति से खतरा महसूस हुआ है, तो तब पेगासस स्पाइवेयर जैसे आधुनिक उपकरण तो नहीं थे, लेकिन फोन टैपिंग तथा अपनी सरकारी एजेंसियों द्वारा विरोधियों की जासूसी करवाई जाती रही है। पर यह लोकतंत्र के लिए सदैव ऋणात्मक ही रहा है। इससे फौरी तौर पर थोड़े फायदे हुए हैं, पर दीर्घकालीन नुकसान ही होता रहा है। सत्तासीन पार्टियां सदैव वामपंथी बुद्धिजीवी पत्रकारों और विपक्ष के खतरनाक निशाने पर रही हैं।



ऐसा कुछ अभी पूरे विश्व में इजरायल की कंपनी एनएसओ द्वारा बनाया गया स्पाइवेयर पेगासस ने हंगामा मचा कर रखा है। प्रथम दृष्टि में विश्व भर के 17 से 20 मीडिया समूह जिनमें अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन के बड़े-बड़े मीडिया समूह जो सत्ता के विरोध में या उनकी आलोचना करते हैं, उनके साथ हजारों नंबरों की पेगासस से जासूसी की जा रही है। निश्चित तौर पर यह लोकतंत्र तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आजादी पर बड़ा प्रश्न चिन्ह पैदा करता है।
पेगासस स्पाइवेयर जासूसी उपकरण का उपयोग इजरायल ने आतंकवादी तथा विदेशी तोड़फोड़ के समय अपने हित में किया था। साथ ही इसे दूसरी सरकारों को आतंकवादी संगठनों तथा तोड़फोड़ जैसी गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए दिया जाता रहा है। इजरायल सरकार की बिना इजाजत यह उपकरण किसी व्यक्तिगत या निजी एजेंसियों को नहीं प्रदान किया जा सकता है। यह किसी भी देश की सरकारी एजेंसियों को ही 50 से 60 करोड़ रुपए में बेचा जाता है।
प्रश्न यह उठता है कि इतना महंगा उपकरण कोई निजी संस्था या व्यक्ति किसी के विरुद्ध जानकारी निकालने या व्यक्तिगत तौर पर दुश्मनी निभाने के लिए तो इस्तेमाल करेंगा नहीं। निश्चित तौर पर इसे विश्व भर में सरकारें ही खरीदती हैं। इसकी वार्षिक फीस इतनी महंगी है कि विकासशील राष्ट्र इसे इस्तेमाल नहीं सकते हैं। अगर यह स्पाइवेयर सही में इस्तेमाल किया जा रहा है, तो लोकतंत्र या प्रजातंत्र की जड़ों को हिलाने वाले परिणाम ही लाएगा।
इस जासूसी उपकरण के खिलाफ कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नियंत्रण के लिए तो बना नहीं है, सबूत तथा बातें कभी सामने नहीं आ पाती हैं, ना ही आने की संभावना है। जैसा कि विपक्षी दलों का आरोप है कि भारत में जरूर कुछ 40 50 पत्रकार बंधु ऐसे हैं जिनकी रिपोर्टिंग सरकार के खिलाफ होती रही है, और सरकार को कई कोणों से प्रभावित भी करती रही। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के जज, विपक्षी राजनीतिक भी इसके निशाने पर रहे हैं। ऐसे में जैसा कि विपक्षी दल बता रहे हैं कि भारत में सरकार इसका बेजा इस्तेमाल कर रही है, पर राज्यसभा में सूचना तथा प्रौद्योगिकी मंत्री अश्वनी वैष्णव ने आधिकारिक तौर पर इस उपकरण का जासूसी के लिए किए जाने से स्पष्ट इनकार किया है। फिर ऐसी सरकार जिसे संसद तथा राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत है उसका इस इस स्पाइवेयर का का उपयोग तर्क संगत दिखाई नहीं देता है।
स्वतंत्रता के बाद और नेहरू युग के पश्चात कांग्रेसी सरकारों ने भी फोन टेपिंग कर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करने का प्रयास किया था। तब भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष में रहकर भरपूर विरोध किया था अब स्थिति उलट है सरकारें बदलती रहती हैं, पर सरकारों का चरित्र सरकारी तंत्र में लिपटा हुआ होता है। विपक्ष ने मांग की है कि जेपीसी से जांच कराई जाए कुछ विपक्षी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज से जांच कराई जाए। पर इसकी जांच तथा सबूत का कोई प्रभावी प्रमाण उपलब्ध हो तो जांच कराया जाना जायज होता है। ऐसा ना हो की जांच कराने के बाद भी यह बात मिथक साबित हो ,और यह केवल विपक्ष का सत्ताधारी दल पर आरोप ही हो। यह तो तय है कि पेगासस जैसे खतरनाक स्पाइवेयर जिसमें एक मिस कॉल देकर आप किसी भी व्यक्ति के मोबाइल को अपने सीधे नियंत्रण में ले सकते हैं, और उसका अनाधिकृत उपयोग कर व्यक्तिगत जानकारी, बैंक की जानकारी एवं उसके द्वारा दूसरे को संदेश भी भेजा जा सकता है। यह स्पाइवेयर जितना खतरनाक है उससे ज्यादा यह अत्यंत अलोकतांत्रिक तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विरोधी भी है।
-  (स्वतंत्र टिप्पणीकार, रायपुर)


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