Meena  verma 


एक समय था जब कहा जाता था, ‘खाना मन भाया और कपड़ा जग भाया’, लेकिन वक्त के साथ सब बदल गया। अब ‘खाना जग भाया’ हो गया। कुछ लोग जो खा रहे हैं, वही सभी लोग खाने लगे, अच्छा लगे या नहीं। एक भेड़चाल की सी स्थिति हो गई है। वहीं दूसरों की पसंद व नापसंद से पहना जाने वाला कपड़ा अब पूरी तरह ‘मन भाया’ हो गया, चाहे लोगों को अच्छा लगे, न लगे। लोग वही पहनने लगे हैं जो खुद उन्हें अच्छा लग रहा हो और इस मामले में सबसे आगे हैं किशोर और किशोरियां।
ड्रैसकोड और सभ्य समाज का आपस में गहरा संबंध है। बिना ड्रैसकोड का पालन किए हम सभ्यता या विकास की बात सोच भी नहीं सकते हैं। हर पेशे, हर कार्यालय एवं हर अवसर का अलग-अलग ड्रैसकोड हुआ करता है। किसी को पसंद आए या न आए, चाहे कितनी असुविधा क्यों न हो, उसका पालन करना ही पड़ता है और यह उचित भी है। इन दिनों तो पार्टियों में भी ‘थीम पार्टी’ के नाम पर एक प्रकार का ड्रैसकोड ही अपनाया जा रहा है।
कपड़े मौसम के अनुसार हों
बदन ढकने के बाद कपड़े का दूसरा सब से बड़ा उपयोग मौसम से बचाव करना होता है लेकिन जाने क्यों किशोरकिशोरियों को इस बात की ज्यादा परवा नहीं होती। उन्हें मौसम के विपरीत कपड़ों में भी देखा जा सकता है। कड़ाके की ठंड में भी बिना सिर ढके बिना कान ढके, हलकी-फुलकी जैकेट में भी ये लोग नजर आ सकते हैं। ठंड से चाहे थरथरा रहे हों मगर गरम कपड़े पहनना या उनकी भाषा में कहें तो लादना उन्हें पसंद नहीं। गरमी के मौसम में टाइट जींस एवं काले कपड़ों में नजर आना उनका शौक है। अब उन्हें कौन बताए कि फैशन के नाम पर वे मौसम की मार झेल रहे हैं।
कपड़े सेहत के अनुसार हों
सेहत दो तरह की होती है- पहली, अंदरूनी सेहत और दूसरी, बाहरी डीलडौल। किसी की सेहत के हिसाब से कौन सी ड्रैस सही है, यह सिर्फ वही व्यक्ति, स्वयं ही जान सकता है। ड्रैस के चुनाव में अपनी लंबाई, चौड़ाई, त्वचा के रंग आदि का भी ध्यान रखना चाहिए। नाटे कद की मोटी लड़की अगर पटियाला सूट पहने तो प्यारी लगेगी, लेकिन लेगिंस या टाइट शर्ट लोगों की नजर में उसे अनाकर्षक बना देगा।
इसी तरह कपड़ों के रंगों का चुनाव करते वक्त त्वचा के रंगों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। त्वचा का रंग बदला नहीं जा सकता है, यह एक सचाई है लेकिन कपड़ों के रंगों का सही चुनाव कर के खूबसूरत दिखा जा सकता है। जैसे काली त्वचा वालों को पीला, सफेद, नेवी ब्लू जैसे रंगों से गुरेज करना चाहिए। ऐसी रंगत पर पिंक, क्रीम कलर खिलते हैं। ये सावधानियां लड़केलड़कियों दोनों के लिए हैं।
कपड़े बजट के अनुसार हों
किशोर बच्चों को कपड़े खरीदते समय ब्रैंडेड के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि उन्हें किसी बोर्ड मीटिंग या इंटरव्यू में तो जाना नहीं है, न ही खुद को प्रैजेंट करना है। उन्हें तो हर जगह बिंदास एवं मस्त लगना है, इसलिए 1 कीमती ड्रैस की जगह कम कीमत के 2-3 कपड़े भी बदलबदल कर पहनने के लिए अच्छे होते हैं।

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