शिवचरण चौहान

पिछले दिनों सरकार ने स्वीकार किया था कि सरसों के तेल में मिलावट की जाती थी। अब मिलावट रोक दी गई है तो सरसों के तेल महंगा हो गया है। यह स्वीकारोक्ति स्वयं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने की थी। महंगा सरसों का तेल और उसमें मिलावट कैंसर जैसे भयानक रोगों का प्रमुख कारण है। तेल में मिलावट पाए जाने पर कठोर सजा का प्रावधान भारतीय संविधान में है। 20 जुलाई 2021 से प्रभावी आवश्यक वस्तु अधिनियम में भी मिलावट करने पर आजीवन कारावास अथवा प्राणदंड का प्रावधान किया गया है। उपभोक्ता को चाहिए कि वह खरीदते समय मिलावट के बारे में अच्छी तरह पहचान कर ले और अगर कोई शिकायत मिलती है तो उपभोक्ता अदालतों में अथवा स्थानीय प्रशासन से शिकायत कर सकता है। जानलेवा मिलावट के लिए आजीवन कारावास अथवा फांसी की सजा भी दी जा सकती है किंतु सरकार ऐसा नहीं करती और मिलावटखोर आम लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते रहते हैं।

अभी तक तो ऐसा ही होता आया है। सरसो के तेल में जहरीली मिलावट के लिए जितना कसूरवार लालची व्यापारियों को ठहराया जा रहा है, उतना ही दोष सत्यानाशी अथवा कंटीली नाम के पौधे पर भी आ रहा है। सत्यानाशी को अंग्रेजी में आर्जीमोन कहते हैं। दरअसल सरसों के तेल में इसी के बीजों के  तेल की मिलावट की जाती है। कंटीली, पीला धतूरा, सियाल कांटा, कंडियारी या सत्यानाशी के नाम से पहचाने जाने वाले इस कंटीले पौधे को वैज्ञानिक आर्जीमोन मैक्सिकाना के नाम से पुकारते हैं। यह पौधा सबसे पहले अमरीका में पाया गया था।
पैपेवरेसी कुल का यह छोटा सा पौधा दरअसल एक जंगली पौधा यानी खरपतवार है। यह लगभग पूरे भारत में बेकार पड़ी भूमि, सड़क किनारे, खेतों की मेड़ पर अपने आप उगता रहता है। इस पर छोटे, सुंदर व आकर्षक पीले फूल खिलते हैं। काली सरसों यानी राई (लाही) के पौधे और इसमें सिर्फ इतना अंतर है कि इसकी पत्तियों में कांटे निकले होते हैं। इसके बीजों से मिलने वाला तेल दिया-बत्ती में जलाने के काम आता है। साथ ही इसे स्नेहक यानी 'लुब्रिकेट' के रूप में भी उपयोग करते हैं। तेल को साफ करके तरल साबुन बनाने के काम में भी इसे लाया जाता है। इसके अलावा बीजों को पेट कीगड़बड़ और कब्ज दूर करने वाली दवाइयां बनाने में भी इस्तेमाल करते हैं। इस पौधे का रस पीलिया दूर भगाने में मदद करता है और जड़ें चमड़ी के पुराने रोगों का सफाया करने में सहायक होती हैं। इतना उपयोगी होने के बावजूद आर्जीमोन के बदनाम होने की वजह यह है कि इसके बीज रूप-रंग और आकार में ठीक सरसों लाही के बीज जैसे होते हैं। लालची व्यापारी आर्जीमोन की इसी खूबी' का फायदा उठाते हुए इसके बीज आसानी से लाही अथवा सरसों के साथ मिलाकर पेर देते हैं। इस तरह निकले सरसों के तेल में आर्जीमोन के जहरीले तेल की मिलावट हो जाती है, पर इस मिलावट को बिना रासायनिक जांच के नहीं पकड़ा जा सकता।
यह मिलावट कोई नयी बात नहीं है। काफी पुराने समय से ही सरसों के तेल के व्यापारी ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए ऐसा करते आ रहे हैं। ऐसी पहली मिलावट सन् 1926 में सामने आयी थी, लेकिन तब मिलावट काफी कम मात्रा में की जाती थी। आमतौर पर इसकी मात्रा 0.01 फीसदी रहती थी। बढ़ते लालच के कारण धीरे-धीरे आर्जीमोन की मात्रा बढ़ती गयी और मौजूदा हालातों में यह मिलावट 10 से 30 फीसदी तक देखी गयी। मुनाफे के अलावा इस मिलावट की एक वजह और भी है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सरसों की नयी संकर किस्मों के बीजों से निकले तेल में परंपरागत किस्मों की तुलना में तीखापन काफी कम होता है। जबकि उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत के लोग तब तक सरसों के तेल को बढ़िया नहीं मानते, जब तक इसमें पर्याप्त तीखापन झार मौजूद न हो। सरसों के तेल में तीखापन एलिल आईसोथायोसायनेट नामक एक रसायन को मौजूदगी के कारण होता है। ठीक यही रसायन आर्जीमोन के बीजों में भी पाया जाता है। इसलिए आर्जीमोन के बीज मिलाने से सरसों के तेल में तीखापन झार आ जाता है और उपभोक्ता इस तेल को बढिया क्वालिटी का मानने लगते हैं।
रसायन बीज में एक एंजाइम के साथ बंधा पड़ा रहता है। घानी में तेल निकालने की प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाली गर्माहट एंजाइम को सक्रिय करके रसायन छोड़ने पर मजबूर कर देती है। इस तरह यह रसायन तेल में आ जाता है सरसों के तेल में मिलावट के मौजूदा दौर में कुछ तेल व्यापारियों द्वारा कहा जा रहा है कि आर्जीमोन के बीज प्राकृतिक रूप से सरसों के तेल में मिल जाते हैं। यह कथन सरासर गलत है। पहली बात तो यह कि आर्जीमोन के पौधे कभी भी सरसों के खेत में नहीं उगते। ये हमेंशा बेकार और खाली भूमि में उगते हैं। दूसरे, सरसों की फसल मार्च के महीने पककर तैयार हो जाती है, जबकि आर्जीमोन पर मई जून के गर्म महीने में फूल खिलते हैं। उस समय खेतों में सरसों दिखायी भी नहीं देती। जाहिर है सरसों लाही में आर्जीमोन के बीज जानबूझ कर मिलाये जाते हैं।
इसी मिलावट के चलते गांवों के गरीब परिवारों के लिए आर्जीमोन का पौधा कमाई का साधन बनता जा रहा है। सरसों के व्यापारी गरीब परिवार की महिलाओं और बच्चों से दिहाड़ी पर आर्जीमोन इकट्ठा करवाते हैं और नियमित रूप से सरसों लाही में मिलाते हैं। इतने बड़े पैमाने पर आर्जीमोन की उपलब्धता इसी का नतीजा है जैसे-जैसे बाजार में सरसों के तेल की कीमत बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे आर्जीमोन को मांग भी जोर पकड़ती जा रही है। जन साधारण में जागरूकता और सख्त प्रशासनिक कदमों द्वारा ही इस जानलेवा मिलावट पर अंकुश लगाया जा सकता है।
                         - (लेखक स्वतंत्र विचारक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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