संमकेतिक कीट प्रबंधन वर्तमान में कृषि की आवश्यकता की दी जानकारी

मेरठ।
 कीट बीमारियां एवं खरपतवार यह तीनों कृषक शत्रु 20 से 40ः तक फसलों को नष्ट कर सकते हैं जिनकी रोकथाम हेतु विभिन्न रसायनों का प्रयोग कीटनाशकों के रूप में कृषकों द्वारा किया जाता है जहां ये कीटनाशक मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हैं वही इनके अत्यधिक प्रयोग से विभिन्न प्रजातियों के जीव नष्ट होकर विलुप्त हो रहे हैं तथा इनके प्रयोग से पृथ्वी जल एवं वायु भी प्रदूषित हो रहे है इस समस्या के निदान हेतु वैज्ञानिकों ने इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (आईपीएम) अथवा संमकेतिक कीट प्रबंधन प्रणाली विकसित की जिसमें केवल अति आवश्यक एवं कम विषैले रसायनों का प्रयोग किया जाता है तथा इन कीटो का नियंत्रण जैविक एवं फसल चक्र में बदलाव के आधार पर किया जाता है। जैविक नियंत्रण में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न जीव एवं फेरोमोन ट्रैप आदि का निर्माण कर कृषि एवं विज्ञान विषय के विद्यार्थी इसे उद्यमिता का आधार भी बनाकर व्यवसाय कर सकते हैं इन्हीं बिंदुओं पर आज की वेबीनार का आयोजन आईआईएमटी मेरठ के कृषि विज्ञान विभाग द्वारा इस विषय के विशेषज्ञ एवं जैव कीट नियंत्रण लैब के प्रभारी डाॅ राजेंद्र सिंह उपाचार्य कीट विज्ञान विभाग सरदार वल्लभभाई पटेल विश्वविद्यालय मेरठ द्वारा करवाया गया उक्त विषय पर डाॅक्टर सिंह ने बताया कि इस पद्धति से कीट नियंत्रण करने पर कृषकों को अत्यधिक कम खर्च से कीट नियंत्रण किया जा सकता है जिससे न केवल कृषक अपनी आए में वृद्धि करने में सक्षम होंगे वही पर्यावरण संतुलन में भी यह पद्धति उल्लेखनीय योगदान करती है वेबीनार की विजय वस्तु एवं उद्यमिता के आयाम पर डाॅ एन के परूथी डीन कृषि संकाय ने प्रकाश डाला। वेबीनार के संयोजक डाॅ प्रताप सिंह एवं सह-संयोजक राजकुमार रहे।वैवनार को सफल बनाने में डा प्रतिमा गुप्ता एवम् श्री अनुज मिश्रा का सहयोग रहा।

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