आज भी उपेक्षित, शोषित हैं प्रेमचंद के पात्र

- शिवचरण चौहान

इधर कुछ दिनों से कथा सम्राट प्रेमचन्द को नकारने की साज़िश चल रही है।  कुछ एक संपादक और कुछ लेखक कह रहे हैं कि प्रेमचन्द की कुछ कहानियां और एक आध उपन्यास ही काम के हैं और प्रासंगिक हैं शेष कूड़ा है। कुछ साहित्यकारों ने इसका विरोध किया है, लेकिन अधिकांश हिंदी लेखक और समाज चुप है। आज हम फिर से मूल्यांकन करना पड़ेगा कि प्रेमचन्द का साहित्य किस कोटि का है? क्या प्रेमचन्द आज भी प्रासंगिक हैं या नहीं?



कहानीकार प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था। पिता ने उनका नाम रखा था धनपत राय। बचपन में ही मा की मौत हो जाने के कारण पिता ने दूसरी शादी कर ली।सौतेली मां प्रेमचन्द को परेशान करती। करीब 15 साल की उम्र में प्रेमचंद की शादी उनके पिता ने कर दी। पत्नी बहुत कुरूप और कर्कश स्वभाव की थी। प्रेमचंद लिखते हैं कि काली कुरूप पत्नी देख कर मेरा खून जल उठा। पिता जी ने भी माना कि समाज के दबाव में गलत जगह शादी कर दी और वह बहुत पछताते रहे।
 प्रेमचंद की शादी के बाद ही एक साल बाद उनके पिता जी गुजर गए। अब प्रेमचंद को अपनी विमाता और उसके दो बच्चों का बोझ उठाना पड़ा। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। पत्नी भी प्रेमचंद से लड़-झगड़ कर अपने मायके चली गई और फिर कभी लौट कर नहीं आई। गरीबी के कारण प्रेमचंद की  पढ़ाई मैट्रिक तक हो पाई। बनारस में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर पांच रुपए माहवारी कमा पाते थे।तीन रुपए अपनी सौतेली मां को भेज देते थे। शेष  2 रुपये से अपना खर्चा चलाते थे। मैट्रिक की आगे की पढ़ाई कर पाना प्रेमचन्द के बस में नहीं था। ऐसे में एक स्कूल में इन्हे बच्चों को पढ़ाने का काम मिल गया।
पहली पत्नी से छूटम्म छुट्टा होने के बाद प्रेमचंद ने एक बाल विधवा शिवरानी देवी से पुनर्विवाह कर लिया। शिवरानी देवी से शादी के बाद से प्रेमचंद की आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार आया। वह स्कूलों के डिप्टी साहब बन गए । इसी बीच उनकी कहानियों का संग्रह सोजे वतन आया। अंग्रेज सरकार ने इसे सरकार  विरोधी मानकर प्रेमचंद को गिरफ्तार कर लिया और प्रेमचंद के सामने ही सोजे वतन कि सारी प्रतियां जलवा दी। इसके बाद अपने प्रकाशक दयाशंकर निगम के सुझाव पर धनपत राय और नवाब राय का नाम छोड़कर प्रेमचंद्र के नाम से लिखना शुरू किया। प्रेमचंद नाम साहित्य में इतना चमका कि अमर हो गया। प्रेमचंद ने किसानों शोषित पीड़ित लोगों के जीवन को अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया और हिंदी को अनेक उपन्यास और मशहूर कहानियां दी।
अब प्रश्न ये है कि प्रेमचंद जो लिखा वह कितना प्रासंगिक है। उनकी कहानियां और उपन्यास आज के समाज पर कितना प्रभाव डालते हैं। प्रेमचंद के तत्कालीन समाज और आज के समाज में कितना परिवर्तन हुआ है। प्रेमचंद ने जब कहानियां लिखनी शुरू की तब अंग्रेजों का शासन था। उस समय मजदूर और किसानों की हालत बहुत खराब थी। गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होता जा रहा था। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई  1880 को हुआ था और 8 अक्टूबर 1936 को उनकी मौत हो गई। गरीबी के कारण इलाज ना कर इलाज ना करा पाने के कारण प्रेमचंद्र की मौत हो गई थी। प्रेमचंद काल गुलामी का काल था और उस समय भारतीय समाज तमाम समस्यायों से घिरा था। प्रेमचन्द का जन्म शहर के पास के गांव में हुआ था फिर भी वह ग्रामीण परवेश ही उनकी कहानियों का मूल बिंदु है। गरीब किसान और मजदूर के दुख दर्द उनकी कहानियों के मुख्य विषय हैं।
गोदान में जो विषय उन्होंने तब उठाया था वह विषय आज भी प्रासंगिक है।
आज भी भारतीय किसान कर्ज के ही मार से परेशान है, बेहाल है। सवा सेर गेहूं एक ऐसे किसान की कहानी है जो सवा सेर गेहूं कर्ज लेता है और कभी नहीं चुका पाता क्योंकि महाजन उस कर्ज को दो गुना, तीन गुना बढ़ाता चला जाता है और किसान कर्ज दार होकर मर जाता है तो फिर उसका बेटा महाजन के यहां बंधुआ मजदूरी करता है। आज वही काम सरकारी बैंक कर रहे हैं सरकार कर रही है। सस्ते कर्ज का झांसा देकर किसान के उपर बैंक चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर कर्ज की राशि इतनी बड़ी कर देता है कि किसान उसे अदा नहीं कर पाता और आत्महत्या कर लेता है। किसानों की आत्महत्या सरकार के माथे पर आज भी कलंक है।
गोदान की कहानी भी आज भी प्रासंगिक है। बैंक या अन्य संसाधनों से कर्ज लेकर किसान मजदूर उसे चुका नहीं पाता और अंततः  उसके खेत संपत्ति बैंक नीलाम कर देता है। दो बैलों की कहानी बदले हुए परिवेश में आज भी प्रासंगिक है। आज गांव , गांव में ट्रैक्टर आ गए हैं। बैलों से खेती का काम अब नहीं होता फिर भी बहुत से गरीब किसानो की कृषि का सहारा अभी भी दो बैलों की जोड़ी ही है। बूढ़ी काकी आज भी समाज में ठोकरें खा रही हैं। आज के बेटे तो सारी संपत्ति लेकर अपने मां बाप को घर से निकाल देते हैं। वृद्ध माता-पिता वृद्ध आश्रम में रहने को मजबूर होते हैं।
प्रेमचंद ने ग्रामीण परिवेश जो भी पात्र चुने वह सभी आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी समस्याएं आज भी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। किसान परेशान है और मजदूर पिस रहा है। बेरोजगार घूम रहा है। तब हैजा महामारी थी आज कोरोना। पूंजीवादी व्यवस्था तब भी थी और आज भी है। पहले से ज्यादा आज बेरोजगारी बढ़ी है। सरकारी गरीबी मिटाओ गरीबी हटाओ का नारा तो देती हैं पर गरीबों के लिए कुछ नहीं करती। प्रेमचंद ने इन विषयों पर अपनी कलम चलाई है। यह दुर्भाग्य है कि आजादी के पूर्व जो समस्याएं हमारे देश के किसानों, गरीबों मजदूरों के सामने थीं, आज भी मौजूद हैं।
प्रेमचन्द ने अपने उपन्यास प्रेम आश्रम, सेवासदन,कर्मभूमि रंगभूमि, गोदान आदि में किसानों गरीबों शोषित पीड़ित लोगों की समस्यायों को ही बहुत शिद्दत से उठाया है। गांव में जितनी विसंगतियां हैं सभी उनके उपन्यासों में हैं। जमीदारों भू सामंतों, के अत्याचार, जाति धर्म की कट्टरता, महाजनी सभ्यता की विसंगतियां उनके उपन्यासों में मुखर हैं और वही परिस्थितियां आज भी समाज में मुंह बाए खड़ी हैं।
प्रेमचंद ने विधवा विवाह, बाल विवाह , दहेज की समस्या, अनमेल विवाह, वेशयावृत्ति,  दिखावा आदि समस्याओं को देखा था और उनके दुष्परिणाम देखे थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने इन कुप्रथाओं के समाधान भी सुझाए हैं।
आज के समाज को जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि प्रेमचंद ने जो तब लिखा था वह आज भी प्रासंगिक है। आज वही सारी समस्याएं कुछ बदले हुए स्वरूप में समाज में मौजूद हैं।
- (स्वतंत्र लेखक एवं विचारक)

No comments:

Post a Comment

Popular Posts