सुभारती लॉ कॉलिज में कार्यशाला का आयोजन



Meerut
। स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के सरदार पटेल सुभारती इन्स्ट्टीयूट ऑफ लॉ  में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण एवं सबंर्धन हेतू संकल्प एवं प्रतिज्ञा डॉ0 मनोज कुमार त्रिपाठी द्वारा उपस्थित शिक्षक एवं कर्मचारियों को दिलवायी गयी। इसके साथ ही ऑनलाइन कार्यशाला ‘‘भारत में सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण कानून’’ के विषय पर आयोजित की गयी।
वर्चुअल गोष्ठी में आमंत्रित दिद्धवतजनों का स्वागत करते हुए कार्याशला के विषय की प्रांसगिकता के संदर्भ में डॉ मनोज कुमार त्रिपाठी ने प्रकाश डाला एवं उन्होंने कहा कि भारत में पर्यावरण संरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है हडप्पा संस्कृति पर्यावरण से ओत-प्रोत थी तो वैदिक संस्कृति पर्यावरण-संरक्षण हेतु पर्याय बनी रही। भारतीय मनीषियों ने समूची प्रकृति ही क्या सभी प्राकृतिक शक्तियाँ को देवता स्वरूप माना। ऊर्जा के स्त्रोत सूर्य को देवता माना तथा उसकों सूर्य भव कहकर पुकारा। भारतीय संस्कृति में जल को भी देवता माना गया है। सरिताओं को जीवन दायिनी कहा गया है। इसलिए प्राचीन संस्कृतियां सरिताओं के किनारे उपर्जी और पनपी, भारतीय संस्कृति में केला, पीपल, तुलसी, बरगद, आम आदि पेड़ पौधों की पूजा की जाती है मध्यकालीन एवं मुगलकालीन भारत में भी पर्यावरण प्रेम बना रहा। अंग्रेजों नें भारत में अपने आर्थिक लाभ के कारण पर्यावरण को नष्ट करने का कार्य प्रारंभ किया। विनाशकारी दोहन नीति के कारण पारिस्थितिकीय असंतुलन भारतीय पर्यावरण में ब्रिटिश काल में ही दिखने लगा था। स्वतंत्र भारत के लोगों में पश्चिमी प्रभाव, औधोगीकरण तथा जनसंख्या विस्फोट के परिणामस्वरूप तृष्णा जाग गई जिसने देश में विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को जन्म दिया एवं सतत विकास की अवहेलना की।
आज कोविड-19 महात्रासदी के दौर में सतत विकास के माध्यम से पर्यावरण संरक्षए एवं पारिस्थितिक तंत्र की बहाली की महत्ती आवश्यकता है।
वर्चुअल गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए सरदार पटेल सुभारती इन्स्ट्टीयूट ऑफ लॉ, के प्राचार्य एवं संकायाध्यक्ष ने कहा कि कोविड-19 महाआपदा की लड़ाई सतत विकास माडल को पहचानने और अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। यह मॉडल स्वस्थ और खुशहाल सामुदायिक जीवन में पर्यावरण जागरूकता की महत्ता को प्रतिपादित करता है। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानन्द सुभारती विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति अपनी प्रतिबदृता एवं दायित्वों को समझते हुए पर्यावरणनूकूल एवं सतत परिसर विकास का सर्वोत्तम उदाहरण है। सुभारती विश्वविद्यालय अपनी ऊर्जा और पानी के कुशल उपयोग, अपशिष्ट सवर्धन, दूषित पानी शोधन, तथा प्रदूषण को कम करने में एवं पर्यावरण शिक्षा और सततता शिक्षा, पर्यावरण कानूनों को पाठयक्रमों में समाहित कर पूरी मानव आबादी के लिए न्यायसंगत और सतत भविष्य बनाने में प्रकृति के सदभाव बनाते हुए अपना योगदान दे रहा है। सुभारती विधि माहविद्यालय शिक्षा, अनुसंधान, नीति निर्माण और सूचना विनिमय के माध्यम से पर्यावरणीय अनूकूल सतत भविष्य बनाने के लिए प्रयासरत है। पाठयक्रम, सहपाठयक्रम, पाठयेत्तर गतिविधियो के माध्यम से हरित जीवन शैली, सततता सि़द्धांतों और व्यवहारो को अपनाने के िलिए प्रोत्साहित कर सतत सोच विकसित कर पारिस्थितिक तंत्र की बहाली की दिशा में सार्थक प्रयास कर रहा है।
निदेशक सुभारती लॉ कॉलेज, राजेश चन्दा, पूर्व न्यायाधीश प्रयागराज उच्च न्यायालय उ0प्र0 ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संविधान में पर्यावरण की रक्षा हेतु अनेक प्रावधान किए गए है। इसलिए प्रत्येक नागरिक को अपने दायितव का निर्वहन करना चाहिए। संविधान में मूल अधिकारों के साथ-साथ मूल कर्त्तव्यों का भी समादेश किया गया है। मूल कर्त्तव्यों की श्रखंला में पर्यावरण संरक्षण भी शामिल है। भारतीय न्यायपालिका एवं उसके अधिकरण अंग भारतीय पारिस्थतिक तंत्र के क्षरण को रोकने, थामने एवं उलटने के लिए पुनकल्पना के अनुरूप भारतीय पारिस्थितिक तंत्र की बहाली में में अपनी महत्ती भूमिका निभा रहा है। पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके प्रयासों से स्वच्छ पर्यावरण मौलिक अधिकार का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। दिल्ली में प्रदूषित इकाइयों की बंदी तथा स्थांनातरण, सी.एन.जी. का प्रयोग, ताजमहल को प्रदूषण से बचाना, पर्यावरण को शैषणिक पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाना तथा संचार माध्यमों के द्वारा पर्यावरण के महत्व का प्रचार-प्रसार आथ्द न्यायपालिका के सराहनीय प्रयासों की एक झलक है। जनहित याचिकाओं ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में गैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज तथा आम आदमी की भागीदारों को प्रोत्साहित किया है। यह इसके प्रयासों का ही फल है कि आज सरकार तथा नीति निर्माताओ की सूची में पर्यावरण प्रथम मुदा है तथा वे पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभी हो गए है।
कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए मिस आफरीन अल्मास, असिटेन्ट प्रोफेसर, सुभारती लॉ कॉलेज ने सतत विकास की वैश्विक अवधारण सिद्धान्तों एवं वैश्विक सतत मूल्यों से अवज्ञत कराया एवं  उन्होंने अपने उदबोधन मे कहा भारत संसार के उन थोड़े से देशो में से एक है जिनके संविधानों में पर्यावरण का विशेष उल्लेख है। भारत ने पर्यावरणीय कानूनों का व्यापक निर्माण किया है तथा हमारी नीतियाँ पर्यावरण संरक्षण में भारत की पहल दर्शाती है। पर्यावरण संबंधी सभी विधेयक होने पर भी भारत में पर्यावरण की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है। नालें, नदियां तथा झीलें औधोगिक कचरे से भी हुई है। दिल्ली में यमुना नदी एक नाला बनकर रह गई है। वन क्षेत्र में कटाव लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में जिस प्रकार से पर्यावरण कानूनों को लागू किया जा रहा है। उसे देखते हुए लगता है कि इन कानूनों के महत्व को समझा ही नही गया है। इस दिशा में पर्यावरण नीति को गंभारता से लागू करने की आवश्यकता है। पर्यावरण को सुरक्षित करने के प्रयासों में आम जनता की भागीदारी भी सुनिचित करने की जरूरत है।
डॉ0 रीना बिश्नोई, एसोसिएट प्रोफेसर ने कार्यशाला में कहा भारतीय संविधान जिसे 1950 में लागू किया गया था परन्तु सीधे तौर पर पर्यावरण संरक्षण के प्रावधानों से नहीं जुड़ा था। सन् 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन ने भारत सरकार का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की और खिंचा। सरकार ने 1976 में संविधान में संशोधन कर दो महत्वपूर्ण अनुच्छेद 48 ए तथा 51 ए (जी) जोड़े। अनुच्छेद 48 ए राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा और उसमें सुधार सुनिश्चित करें तथा देश के वनों तथा वन्यजीवन की रक्षा करें। अनुच्छेद 51 ए (जी) नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें तथा उसका संवर्धन करे और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहे। स्वतंत्रता के पश्चात बढ़ते औधोगिकरण, शहरीकारण तथा जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण की गुणवता में निरंतर कमी आती गई। पर्यावरण की गुणवता की इस कमी में प्रभावी नियंत्रण व प्रदुषण के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून व नियम बनाए। इनमें से अधिकांश का मुख्य आधार प्रदूषण नियंत्रण व निवारण था। वर्चुअल संगोष्ठी के उपरान्त सुभारती लॉ के प्राचार्य एवं संकायाघ्यक्ष प्रो0 डॉ0 वैभव गोयल भारतीय ने सुभारती विश्वविद्यालय स्थित अपशिष्ट जल शोधन क्रेन्द्र एवं जैव सवर्धन केन्द्र का कर्मचारियों एंव शिक्षकों को भम्रण कराया एवं उसकी पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में महत्ता एवं उपयोगिता के बारे मे बताया।
इस वर्चुअल संगोष्ठी में सभी विदृवतजनों, प्रतिभागियों एवं छात्र/छात्राओं का धन्यवाद ज्ञापित डॉ0 मनोज कुमार त्रिपाठी ने किया।
इस कार्यक्रम में सुभारती लॉ कॉलेज की समस्त शिक्षकगणों ने भाग लिया।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts