मेरठ। सदर बाजार स्थित मदरसा इमदादुल इस्लाम के संचालक मौलाना शाहीन जमाली का आज इंतकाल हो गया है। बताया गया कि वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका आनंद अस्पताल में उपचार चल रहा था। उन्होंने बुधवार दोपहर को आनंद अस्पताल में अंतिम सांस ली।
बता दें कि उन्हें उर्दू और अरबी भाषाओं के साथ संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। वे मंत्रोच्चारण के साथ स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस पर कई बार ध्वजारोहण भी कर चुके थे। चारों वेदों का ज्ञान रखने वाले मौलाना शाहीन जमाली चतुर्वेदी के नाम से जाने जाते थे।
बताया गया कि वे इस्लाम को लेकर कई किताबें लिख चुके थे। कोरोना के दौरान लॉकडाउन में भी किताबें लिखने में मशरूफ रहे। वे सदर बाजार क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल थे। हिंदू बाहुल्य क्षेत्र के बीच मदरसा चला रहे थे। एक बड़े आलिमों में उनकी गिनती होती थी।
मौलाना महफूजुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी ने न सिर्फ मदरसा दारुल उलूम देवबंद से इस्लामिक शिक्षा की उच्च डिग्री ‘आलिम’ हासिल की है, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से संस्कृत से एमए (आचार्य) भी किया था। चारों वेदों का अध्ययन करने पर उन्हें चतुर्वेदी की उपाधि मिली थी। वे सदर बाजार स्थित 130 साल पुराने मदरसा इमदादउल इस्लाम के प्रधानाचार्य थे।
इनके गुरु की भी अलग है कहानी
मौलाना चतुर्वेदी ने बताया था कि उन्होंने प्रो. पंडित बशीरुद्दीन से संस्कृत की शिक्षा हासिल करने के बाद एएमयू से एमए (संस्कृत) किया था। अपने उप नाम (चतुर्वेदी) की तरह बशीरुद्दीन के आगे पंडित लिखे जाने के बारे में बताया था कि उन्हें संस्कृत का विद्वान होने के चलते पंडित की उपाधि देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दी थी। उन्होंने चारों वेदों का अध्ययन किया तो उन्हें भी चतुर्वेदी कहा जाने लगा।
हिंदू और मुस्लिम दर्शन की दे रहे थे तालीम
मौलाना चतुर्वेदी ने काफी पहले बताया था कि मदरसे में देश के विभिन्न राज्यों के 200 से ज्यादा छात्र हैं। छात्रों को अरबी, फारसी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू की तालीम दी जाती है। यहां हाफिज, कारी और आलिम की डिग्री मिलती है। यहां वह मदरसे के छात्रों को इस्लाम के साथ हिंदू दर्शन के बारे में जानकारी देते थे।
सर्वधर्म-संस्कृति सम्मेलनों में करते थे शिरकत
मौलाना चतुर्वेदी देश के विभिन्न शहरों में होने वाले सर्वधर्म-संस्कृति सम्मेलनों में हिस्सा लेते रहते थे। मौलाना ने बताया था कि देश का ऐसा कोई राज्य नहीं, जहां वह न गए हों। देश प्रेम, सांप्रदायिक सौहार्द और आपसी भाईचारा कायम करने के लिए वह सभी धार्मिक मंचों पर जाते रहते थे।
मजहबी गलत फहमियां दूर करने का प्रयास
मौलाना चतुर्वेदी 40 साल तक देवबंद के एक समाचार पत्र में चीफ एडिटर रहे और इसे चलाया। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक विषयों पर एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके थे। इनमें खासतौर पर इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच गलत फहमियों को दूर करने का प्रयास किया गया।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts