निर्धारित मानक से निम्न स्तर की दवाओं से लोगों की जा रही जानें
एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा के चलते मार्केट में सस्ती दवाइयां उतार रही कंपनियां
संजय वर्मा
मेरठ। नकली दवाओं का जाल लोगों की सेहत के लिए संकट बनता जा रहा है। मलेरिया, निमोनिया व अन्य बीमारियों के इलाज के नाम पर बिक रही नकली व निर्धारित मानक से निम्न स्तर की दवाओं से हर साल सैकड़ों लोग जान गंवा रहे हैं। जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए बेची गईं अधिकतर दवाइयों के सैंपल फेल मिले हैं। दूसरा पहलू ये भी है कि कंपनियां एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा के चलते सस्ती दवाइयां मार्केट में उतार रही हैं। जागरूक न होने के कारण लोग खरीद रहे हैं। यही कारण है कि दवाइयां असर नहीं कर रही।
मेडिकल क्षेत्र में मेरठ का अपना अलग स्थान है। सैकड़ों से अधिक अस्पताल और इतनी ही संख्या में दवा कंपनी की फैक्ट्रियां हैं। अस्पतालों में इलाज कम तो लूट ज्यादा होती है। दवा कंपनियां भी मरीज का फायदा कम और अपना ज्यादा देख रही है। हाल ही में एक रिसर्च के मुताबिक एंटीबोयोटिक लोगों पर असर कम कर रही है। इस शोध ने चिकित्सकों को दुविधा में डाल दिया था। चिकित्सों ने सेमिनार किए और लोगों को बताया कि एंटीबायोटिक का असर क्यों कम हो रहा है। बताया कि लोग एंटीबायोटिक का कोर्स पूरा नहीं करते और उसको अधूरा छोड़ देते हैं। हालांकि, इस सच्चाई में चिकित्सकों में मतभेद देखा गया। मेरठ ड्रग्स एंड केमिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री रजनीश कौशल ने बताया कि एंटीबायोटिक इसलिए असर नहीं कर रही कि दवा कंपनियां लोगों के साथ धोखा कर रही है। कंपनियां अपना फायदा ज्यादा देख रही है। निर्धारित मानक से निम्न स्तर की दवाइयां लोगों को दी जा रही है। डाक्टर पांच दिन की दवा मरीज को देता है, लेकिन दवा में निर्धारित मानक से कम साल्ट होने के कारण दवा अपना असर नहीं करती, यही कारण है कि अब डाक्टर भी 10 दिन की दवा मरीज को दे रहे हैं। इससे मरीज की जेब पर अधिक भार तो पड़ ही रहा है, वह दवा भी पांच दिन के स्थान पर दस दिन ले रहा है।
नकली दवा सप्लाई का हब बन रहा मेरठ
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में दस में से एक नकली या घटिया दवा की सप्लाई होती है। सारे संसार में नकली दवाइयों का 35 फीसदी हिस्सा भारत से ही जाता है और इसका करीब 4000 करोड़ रुपए के नकली दवा बाजार पर कब्जा है। भारत में बिकने वाली लगभग 20 फीसदी दवाइयां नकली होती हैं। सिर दर्द और सर्दी जुकाम की ज्यादातर दवाएं या तो नकली होती हैं या फिर घटिया किस्म की होती हैं। नकली दवाइयों का जाल भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। मेरठ इससे अछूता नहीं है। दिल्ली नजदीक होने के कारण यहां नकली दवाइयों की सप्लाई ज्यादा है। कोरोना काल में दवा कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाही न होने पर चांदी काटी जा रहीहै। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड रहा है।
गुणवत्ता जांच के लिए प्रयोगशालाओं की कमी
रजनीश कौशल ने बताया कि दवाओं की गुणवत्ता जांचने के लिए प्रयोगशालाओं की भारी कमी है। इसके चलते यह पता करना अत्यंत कठिन है कि बाजार में चल रही कौन सी दवा असली है और कौन सी नकली। सरकार के पास न तो पर्याप्त संख्या में ड्रग इंस्पेक्टर हैं और न ही नमूनों की जांच के लिए सक्षम प्रयोगशालाएं हैं। नकली दवा माफिया इस कदर हावी है कि उसे केंद्रीय औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम के गैर जमानती और आजीवन कारावास जैसे सख्त प्रावधानों की भी परवाह नहीं है।
No comments:
Post a Comment