करोड़ों खर्च फिर भी नाले गंदे
सिर्फ कागजों में ही हो रही नाला सफाई

हर साल की भांति इस वर्ष भी निगम प्रशासन ने नालोंं की सफाई के लिए नाला सफाई अभियान चलाया है। जो रोजाना शहर के अलग.अलग इलाकों में नालों की सफाई करने का दावा कर रहा है। लेकिन अभी भी नाले ऐसे हैए जहां कई वर्षों से सफाई हुई ही नहीं। बल्कि इन नालों की सफाई की रिपोर्ट निगम कर्मचारियों ने प्रस्तुत कर दी। ऐसा नहीं कि इस कृत्य के बारें में निगम के आलाधिकारियोंं को जानकारी नहीं, लेकिन सबकुछ जानकर भी अधिकारी अंजान बने बैठे है।
खजाना साफ, बाकी सब माफ
शहर के नाले भले ही साफ न हो, लेकिन निगम के खजाने से प्रति वर्ष 82 करोड़ रुपये जरूर साफ हो रहे हैं। बावजूद इसके शहर अधिकांश नाले बदबू मार रहे है, नालियां उफन रही हैं। गंदगी के कारण शहर की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। मेरठ शहर कितना साफ है उसका खुलासा राष्ट्रीय स्तर पर क्वालिटी ऑफ इंडिया कर चुका है। इस सब के लिए नगर निगम की व्यवस्था और अधिकारियों की लापरवाही सामने आ रही है।
दिखावे का अभियान
शहर को टॉप टेन की सूची में दर्ज कराने का दावा भी महज दिखावा साबित हुआ। टॉप टेन की सूची में शहर को लाने के लिए महापौर सुनीता वर्मा ने अलग-अलग इलाकोंं का जायजा लेकर सफाई अभियान चलायाए लेकिन हालात वही घाट के तीन पाथ रहे। लेकिन देश के अन्य शहरों की नजरों में मेरठ का नाम साफ शहरों में दर्ज नहीं हो पाया। कमी भले ही निगम प्रशासन की हो या फि र सफ ाई कर्मचारियों की, लेकिन जनता के बीच जवाब देही महापौर की ही बनती है।
सदन में उठी आवाजें भी दब गईं
शहर की सफ ाई को लेकर पार्षदों ने कई बार सदन में आवाज बुलंद की। जबकि मुस्लिम पार्षदों ने तो अपने क्षेत्र के नालों की सफाई न होने पर निगम प्रशासन के सिर ठीकरा फोडा लेकिन शहर की स्वच्छता और नालों की सफाई निगम की फ ाइल और टाउन हॉल की चारदीवारी में कैद होकर रह गई।
अगर नालों की नियमित सफाई नहीं की जा रही तो संबंधित अधिकारी की शिकायत की जाएगी। बारिश से पहले सभी नालों को साफ कराया जाएगा।
सुनीता वर्मा- महापौर।
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