- प्रो. नंदलाल
दिन प्रतिदिन कक्षाओं में छात्रों की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है।बहुत कम छात्र कक्षाओं में पढ़ने आ रहे हैं।यह किसी एक जगह या संस्थान की समस्या न होकर यह समस्या सर्व व्यापी हो चली है।इससे शिक्षा का स्तर भी गिर रहा है और छात्रों में इसे लेकर कोई में कोई चिंता भी नहीं दिखती।इसके कारणों को तो हम लोग समझेंगे पर सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि अभिभावक भी अपने बच्चों को स्कूल न भेजकर चैन से बैठे रहते हैं।
उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं कि उनका बच्चा तो घर से विद्यालय के लिए निकला पर वह स्कूल गया और कक्षा अटेंड किया या नहीं इसका वे पता भी नहीं करते न ही उन्हें चिंता रहती है कि संस्थान या विद्यालय कितने दिन के लिए बंद हैं।अभिभावकों में होड़ लगी रहती है कि उनका बच्चे के पास वह सब कुछ होना चाहिए जो दूसरे बच्चों के पास हो।बच्चे मांग करते हैं कि आजकल पढ़ने के लिए एंड्रॉयड फोन की नितांत जरूरत है।
स्कूटी,बाइक और बाइक भी शो बाजी वाली चाहिए।गार्जियन उसे कर्ज लेकर भी पूरा कर देते हैं पर कक्षा अटेंड नहीं करेंगे।उन्हें पुस्तकें तो बिल्कुल नहीं खरीदनी हैं।गूगल बाबा से वे पढ़ने का प्रयोजन पूरा कर लेते हैं।भाषा सीखने की ललक तो उनमें है ही नहीं।हिंदी,संस्कृत,उर्दू, और अंग्रेजी सभी को मिलाकर एक नई भाषा का निर्माण वे स्वयं कर लेते हैं।
अभिभावक अपने बच्चे के कमजोर होने पर सारा दोष शिक्षकों और विद्यालय पर मढ़ देते हैं।शिक्षक भी कुछ ऐसे हैं जो शिक्षक तो बन गए हैं पर उनका ध्यान प्लॉट का धंधा करने में निकलता है।पर अभी भी कुछ शिक्षक ऐसे हैं जो पढ़ने और पढ़ाने में रुचि लेते हैं।विद्यार्थियों में एक अजीब तरह का परिवर्तन देखने को मिलता है।उनका विद्यालय में जब परिणाम आता है तो उनके चेहरे पर किसी प्रकार का संवेग आप नहीं देख सकते हैं।पहले के लोग ढिबरी,लालटेन से पढ़ते थे पर आजकल के बच्चों को पुस्तक पढ़ने का समय नहीं है।उनसे उनकी कक्षा का विषय वस्तु या पाठ्यक्रम या प्रश्न पत्र का नाम पूछ लीजिए तो लगभग साठ प्रतिशत बच्चे तो यही नहीं बता पाते कि वे जो पुस्तक अनुशंसित हैं उनका नाम क्या है।यदि बता भी दिए तो उनसे यह पूछ लीजिए कि कौन कौन इकाई पढ़नी है तो वे तुरंत मोबाइल खोलकर देखने लगते हैं।यह स्थिति सभी विद्यार्थियों की तो नहीं है पर अधिकांश की यही स्थिति है।
उन्हें फेल होने में न तो कोई ग़म होता है न पास होने में उल्लास।यह है आज के विद्यार्थियों की वास्तविक असलियत।किसी पुस्तक जो उनके पाठ्यक्रम में निर्धारित है उसके लेखक का नाम पूछिए तो वे इधर उधर झांकने लगते हैं।प्रकाशक का नाम तो उन्हें दूर दूर तक पता नहीं होता।पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है पर आप किसी भी संस्थान में आप इसे आसानी से देख सकते हैं।इसे हम कह सकते हैं मूल्यों का शिफ्ट।मूल्य शिफ्ट हो रहे हैं जो गंभीर संकेत है नई पीढ़ी के ह्रास का।यदि यह स्थिति बनी रही तो आगामी पीढ़ी के भरोसे भारतीय संस्कृति को और सनातन संस्कार को बचाया नहीं जा सकेगा और एक ऐसी संस्कृति अपने देश में पनपेगी जो खिचड़ी होगी और जिसका कोई निहितार्थ भी नहीं होगा।हम एकाकी होते चले जाएंगे और मानव मूल्य,मानवीय नैतिकता,मानवीय संवेदना सभी कुछ मानव से दूर होता चला जाएगा।
शिक्षा और कक्षा के स्वरूप को रुचिकर बनाने की जरूरत है।गुरुओं के समक्ष भी चुनौती है।छात्रों को कक्षाओं के भीतर लाने की आवश्यकता है।ऑनलाइन लर्निंग,दूरस्थ शिक्षा,मुक्त विद्यालय उनके लिए विकल्प उचित है जो बहुत कुछ सीख चुके हैं।जिनके पास कक्षा अटेंड करने का समय नहीं है तथा जो थोड़े से मार्गदर्शन से भी सीख सकते है और अपनी योग्यता को बढ़ा सकते हैं पर यह उनके लिए उचित नहीं है जो अभी बेसिक ज्ञान सीख रहे हैं।कक्षा और शिक्षण के प्रति आकर्षण पैदा करने का तरीका सोचना होगा।हालांकि आजकल के गुरु शिक्षा को व्यवसाय बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं।गुरुओं के अंदर वह त्याग और भविष्य की पीढ़ी निर्माण की ललक नहीं रही जो पुराने समय के गुरुओं के अंदर था।वह वृक्ष के नीचे अपने शिष्यों को टाट पट्टी पर पढ़ा लेते थे।रात्रि में निःशुल्क पढ़ाने का जज्बा तथा अपने शिष्यों के भविष्य सुधार की चिंता उनके अंदर थी।वहीं भाव समाप्त हो चुका है।घर पर ट्यूशन पढ़ा सकते हैं पर कक्षा में उतना ध्यान नहीं देते न ही उसकी चिंता होती है।यह द्विदिशीय समस्या है।
जिसका समाधान शासकीय स्तर पर होना चाहिए।छात्रों की कक्षा ,पुस्तक अध्ययन की कमी,नोट्स बनाने में अरुचि ,शिक्षकों के प्रति सम्मान का अभाव,कम अंक या फैल हो जाने पर भी चेहरे पर कोई शिकन न आना,शर्मिंदगी महसूस न होना,अभिभावकों की अतिशय अपेक्षा या बिल्कुल रुचि न लेना तथा गुरुओं द्वारा शिक्षा को व्यवसाय के नजरिए से देखना,इत्यादि कारण विद्यार्थियों को कक्षा से दूर कर रहे हैं।राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर बड़े रसूख वाले लोगों द्वारा निजी संस्थान बनाकर डिग्री बेचना कक्षाओं की उपस्थिति को प्रभावित कर रहे हैं।सरकार में सम्मिलित बड़े बड़े नाम वाले लोग शिक्षा को धंधा के रूप में स्थापित करने में मददगार हो रहे हैं।इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।अन्यथा शिक्षा जो लोगों में नवाचार लाती है खुद ही उसका शिकार हो जाएगी।
(महात्मा गांधी ग्रामोदय विवि, चित्रकूट)






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