जंक फूड पर हो प्रभावी नीति
इलमा अज़ीम
जंक फूड के ज़्यादा इस्तेमाल से जीवनशैली संबंधी रोग बढ़ने के सबूत सामने आ रहे हैं। जो चिंताजनक है। इसे रोकने को ठोस नीतिगत उपाय जरूरी हैं। लेकिन नीति नियंताओं का इस पर निर्णय लेने में रवैया टालमटोल वाला है। ऐसा इसलिए कि जंक फ़ूड इंडस्ट्री इतनी ताकतवर है कि यह लॉबिंग, मार्केटिंग और जन संपर्क के ज़रिए नियम व नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करती रहती है। जंक फ़ूड मार्केटिंग का उद्देश्य सांस्कृतिक पसंद प्रभावित कर मांग पैदा करना और अस्वास्थ्यकारी भोजन पदार्थों का आम प्रचलन बनाना है। जंक फ़ूड कंपनियों को उनकी वैश्विक उत्पादन एवं विपणन सामर्थ्य राजनीतिक ताकत प्रदान करती है।
अधिकांश खाद्य पदार्थ कुछ हद तक प्रसंस्करण से गुज़रते हैं-गेहूं पीसकर आटा बनाना और चावल व दाल की मिलिंग कर उन्हें पकाने या सुरक्षित रखने लायक बनाना। समस्या तब पैदा होती है जब कृषि उत्पाद कारखानों में अत्यधिक प्रोसेस किये जाते हैं, उन्हें स्वस्थ, कुदरती बताकर पैक, ब्रांडेड व विपणन किया जाता है। भोजन को प्रसंस्कृत करने और सुरक्षित रखने के परंपरागत तरीके जैसे सुखाना, ठंडा करना, फ्रीज़ करना, पाश्चराइजेशन, फर्मेंटेशन, बेकिंग और बॉटलिंग, खाने के कुदरती स्वरूप को काफी हद तक बनाए रखते हैं, लंबे समय कायम रखते हैं व स्वाद भी बढ़ाते हैं। दूसरी ओर, अल्ट्रा-प्रोसेसिंग भोजन पदार्थ के अवयवों में रासायनिक बदलाव कर देते हैं, उनमें एडिटिव्स मिलाकर रेडी-टू-कंज्यूम या लंबे समय बने रहने वाले उत्पाद में परिवर्तित कर देते हैं।
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड के ऐसे उदाहरणों में मीठे ड्रिंक्स, पैकेज्ड स्नैक्स, पोटैटो चिप्स, इंस्टेंट नूडल्स, रीकॉन्सटिट्यूटेड मीट, कुछ ब्रेकफ़ास्ट सीरियल्स और फ़्लेवर्ड योगर्ट शामिल हैं। कंपनियां सरकारों के फैसलों को धमकी देकर प्रभावित करती हैं कि उनके धंधा शिफ्ट करने पर नौकरियां, निवेश हाथ से निकल जाएंगे। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कॉर्पोरेट जगत की राजनीतिक गतिविधियों की पहचान अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फ़ूड संबंधी नुकसान कम करने हेतु असरदार पब्लिक नीतियां लागू करने में बड़ी बाधा के तौर पर की है।
अतिविशाल कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किए वाले ढंग तंबाकू, शराब उद्योग के तरीकों जैसे हैं। उनका मकसद विरोध से निपटना और नियामक रोकना है, और यह काम वे अपने आनुषंगिक गुटों और अपने पैसे से बनाए शोध साझेदारों के वैश्विक नेटवर्क के ज़रिए करते हैं। लॉबिंग के अलावा, वे सरकारी एजेंसियों में अपने लोगों की घुसपैठ करते हैं, कॉर्पोरेट अनुकूल प्रशासनिक मॉडल व नियामक को बढ़ावा देते हैं, और 'वैज्ञानिक भ्रम' बनाने की कोशिश करते हैं। लिहाजा अब जरूरत इस बात की है कि जंक फूड के लिए प्रभावी नीति बने।





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