प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जातीय समीकरणों को लेकर चर्चाएं तेज
विधायकों में असंतोष और असुरक्षा की बात भी सामने आई
मेरठ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जातीय समीकरणों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। हाल ही में हुई ब्राह्मण विधायकों की बैठक के बाद बीजेपी के भीतर हलचल साफ देखी जा रही है। इससे पहले ‘ठाकुर कुटुंब’ की बैठक ने सियासी संकेत दिए थे, और अब ब्राह्मण विधायकों की सक्रियता को कई राजनीतिक विश्लेषक ठाकुर बनाम ब्राह्मण की नई सियासी धुरी के रूप में देख रहे हैं।
सत्ता और संगठन में भागीदारी को लेकर बढ़ा दबाव
सूत्रों के अनुसार, ब्राह्मण विधायकों की बैठक में पार्टी के भीतर उनकी भूमिका, प्रतिनिधित्व और प्रभाव को लेकर गंभीर मंथन हुआ। चर्चा इस बात पर केंद्रित रही कि सरकार और संगठन दोनों स्तरों पर ब्राह्मण समाज की भागीदारी पहले जैसी मजबूत नहीं रह गई है। इसी भावना के चलते विधायकों में असंतोष और असुरक्षा की बात भी सामने आई है।
बीजेपी के लिए हल्की नहीं यह सियासी हलचल
बीजेपी के लिए यह बैठक साधारण नहीं मानी जा रही है, क्योंकि ब्राह्मण और ठाकुर दोनों ही वर्ग पार्टी के पारंपरिक और मजबूत वोट बैंक रहे हैं। जानकार मानते हैं कि अगर इन दोनों जातियों के बीच संतुलन बिगड़ता है, तो इसका असर आगामी चुनावी समीकरणों पर पड़ सकता है।
योगी सरकार पर पहले भी लगते रहे हैं आरोप
योगी सरकार के दौरान ब्राह्मण समाज की अनदेखी के आरोप समय-समय पर सामने आते रहे हैं। विपक्षी दल, खासकर समाजवादी पार्टी, इस मुद्दे को लगातार उठाती रही है। सपा की ओर से मुख्यमंत्री की जाति विशेष (ठाकुर) के लोगों को संरक्षण देने जैसे आरोप भी लगाए जाते रहे हैं, जिससे यह बहस और गहराती चली गई।
आंकड़ों में समझिए जातीय प्रतिनिधित्व का गणित
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी लगभग 10 से 11 प्रतिशत है, जबकि ठाकुर समाज की हिस्सेदारी करीब 6 से 7 प्रतिशत मानी जाती है।
विधानसभा में बीजेपी के कुल 258 विधायक हैं, जिनमें—
42 ब्राह्मण
45 ठाकुर
84 ओबीसी
59 अनुसूचित जाति
28 अन्य सवर्ण वर्ग (वैश्य, कायस्थ, पंजाबी, खत्री आदि)
मुस्लिम प्रतिनिधित्व शून्य
वहीं विधान परिषद में बीजेपी के 79 एमएलसी हैं, जिनमें—
14 ब्राह्मण
23 ठाकुर
26 ओबीसी
2 अनुसूचित जाति
2 मुस्लिम
12 अन्य सवर्ण वर्ग
इन आंकड़ों पर नजर डालें तो जनसंख्या के अनुपात में ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम दिखता है, खासकर जब तुलना ठाकुर समाज से की जाती है।
दो बैठकों, दो संदेश
इस साल मानसून सत्र के दौरान हुई ठाकुर विधायकों की बैठक को मुख्यमंत्री के समर्थन और एकजुटता के रूप में देखा गया था। लेकिन ब्राह्मण विधायकों की हालिया बैठक पर पार्टी की ओर से संयम और अनुशासन की नसीहत सामने आना कई सवाल खड़े करता है।
चुनावी चुनौती बन सकता है असंतुलन
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी के भीतर जातीय संतुलन को लेकर उभरता असंतोष अगर समय रहते नहीं संभाला गया, तो इसका असर आने वाले चुनावों में दिख सकता है। पार्टी के सामने अब अपने दो सबसे मजबूत कोर वोट बैंक—ब्राह्मण और ठाकुर—के बीच संतुलन साधने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।


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