डिजिटल एडिक्शन


कवलजीत सिंह 

ऑनलाइन शिक्षा जहां छात्रों की पढ़ाई के लिए कारगर विकल्प मानी जाती रही है, वहीं अब इसे दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं। इससे छात्र डिजिटल एडिक्शन के शिकार होते चले गए। मुश्किल यह है कि डिजिटल लत के शिकार बच्चों को यह बताना कठिन होता है कि वे डिजिटल लत के शिकार हैं। वे मानने को तैयार ही नहीं होते कि वे कुछ असामान्य कर रहे हैं। उनके लिये यह व्यवहार सामान्य घटनाक्रम है। 

लेकिन डि-एडिक्शन सेंटर में काउंसलिंग और कुछ सेशन के बाद उन्हें लगता है कि कुछ गड़बड़ जरूर है। दरअसल, सोशल मीडिया का जाल हमारे समाज का ग्रास इतनी तेजी से कर रहा है, बच्चों को लगता ही नहीं कि वे कुछ असामान्य कर रहे हैं। जिसके चलते किशोर, इससे रोकने पर आक्रामक व्यवहार करने लगते हैं। कुछ मामलों में वे अवसादग्रस्त होने लगते हैं या फिर उनके मन में आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। इन हालातों से चिंतत होकर ही केरल के पलक्कड़ में कुछ डि-एडिक्शन सेंटर भी खोले गए हैं। 



इनसे साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। सूचना है  पिलक्कड़ में पिछले दो साल में साढ़े बारह सौ बच्चों को डिजिटल लत से मुक्ति दिलायी गई है। बच्चे मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ महसूस कर रहे हैं। दरअसल, आज जरूरत इस बात की है कि स्कूलों में शिक्षक व अभिभावक पढ़ाई और इंटरनेट के प्रयोग में संतुलन बैठाने का प्रयास करें। सही मायने में यह संकट सिर्फ केरल के किसी एक जिले का ही नहीं है, यह संकट पूरे देश का है। जिसको लेकर केंद्र सरकार को यथाशीघ्र नीति बनाने और डि-एडिक्शन सेंटर खोलने की जरूरत है। इस दिशा में केंद्र व राज्यों के सहयोग से सकारात्मक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

 इस कार्य में स्वयंसेवी संगठनों की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। हाल के दिनों में पढ़ाई के माध्यमों और जीवनशैली में बदलाव के चलते बच्चे तेजी से डिजिटल लत के शिकार होने लगे हैं। मगर उन्हें ये सब सामान्य लगता था। यदि मां-बाप उन्हें इससे रोकते हैं, तो टोका-टाकी उन्हें बर्दाश्त नहीं होती है। उनका व्यवहार आक्रामक भी होने लगता है। कहीं-कहीं तो मां-बाप की सख्ती के बाद छात्रों के आत्महत्या करने के मामले भी सामने आए।

 केरल में सिर्फ पलक्कड़ में चार साल के भीतर 41 बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के दुखद समाचार आए, जिसने प्रशासन और अभिभावकों की नींद उड़ा दी। डिजिटल लत से बच्चों को मुक्त करने के लिए केरल सरकार ने नई पहल की। पलक्कड़ में छह डि-एडिक्शन सेंटर शुरू किए हैं, जिनमें बच्चों की काउंसलिंग की जाती है। यहां मौजूद साइकोलॉजिस्ट लत के शिकार बच्चों का इंटरनेट एडिक्शन टेस्ट करते हैं, जिससे पता लगाया जाता है कि लत का स्तर क्या है। जिसके आधार पर उनकी काउंसलिंग की जाती है। 

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