कृत्रिम बारिश की असफलता
इलमा अज़ीम
लंबे समय से दिल्ली को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए विकल्प के रूप में प्रचारित कृत्रिम बारिश का प्रयोग सिरे नहीं चढ़ सका। राष्ट्रीय राजधानी के आकाश में छाये जहरीले धुएं को धोने के लिए जो करीब सवा तीन करोड़ रुपये खर्च किए गए, वे बूंदाबांदी भी नहीं नहीं ला सके। इसके बाद न केवल आसमान सूखा रहा बल्कि दिल्ली की उम्मीदें भी सूखी रहीं। 

इसके इतर प्रदूषण के समाधान के लिए बहुप्रचारित इस प्रयोग के असफल होने के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में राजनीतिक घमासान शुरू हो गया। दरअसल, कृत्रिम बारिश केवल उन्ही परिस्थितियों में फलीभूत होती है जब वातावरण में पर्याप्त नमी हो, आसमान में घने बादल छाए हों तथा हवा का रुख स्थिर बना रहे। 

दुनिया के कई देशों, मसलन चीन, थाईलैंड और संयुक्त अरब अमीरात में कृत्रिम बारिश के प्रयोग इसलिए सफल हो सके क्योंकि उन्होंने इस प्रयोग को सिरे चढ़ाने के लिये सही समय को चुना था। दिल्ली के शासन-प्रशासन ने इस प्रयोग को अमली जामा पहनाने से पहले इस बात को नजरअंदाज किया कि दिल्ली का आसमान शुष्क है और वातावरण में नमी की कमी है। 

ऐसे में पर्याप्त आर्द्रता यानी बादलों के पर्याप्त घनत्व के बिना सिल्वर आयोडाइड की लपटें बारिश पैदा नहीं कर सकतीं। ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि क्या दिल्ली सरकार समस्या के वास्तविक समाधानों की अनदेखी करते हुए कृत्रिम बारिश को सिरे चढ़ाने वाले महंगे विकल्पों पर दांव लगा सकती है? वास्तव में हमें प्रदूषण की जड़ों पर प्रहार करने की जरूरत है। कृत्रिम बारिश एक फौरी विकल्प तो हो सकता है, लेकिन समस्या का अंतिम समाधान नहीं हो सकता। 



वास्तव में आज जरूरत प्रदूषण उत्सर्जन के स्रोतों को बंद करने की है। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है ताकि लोग निजी वाहनों का उपयोग कम करें। सरकार की प्राथमिकता वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने, साल भर चलने वाले निर्माण कार्य से उत्पन्न धूल को नियंत्रित करने तथा पर्यावरण अनुकूल मानदंडों को सख्ती से लागू करने की होनी चाहिए।  ऐसी नीतियों को सिरे चढ़ाने में सख्त अनुशासन की जरूरत है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts