बदले हालात में आपदा प्रबंधन
इलमा अज़ीम
देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि समूचा हिमालयी क्षेत्र एक बेहद गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। यह टिप्पणी हिमाचल प्रदेश में आपदाओं से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने की।
एक अन्य याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा है कि हमने उत्तराखंड, हिमाचल और पंजाब में अभूतपूर्व बाढ़ और भूस्खलन देखा है। मीडिया में आये वीडियो का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में हमने लकड़ी के गट्ठे पानी में बहते हुए देखे हैं। इससे तो ऐसा लगता है कि पहाड़ों पर बड़ी संख्या में पेड़ों की अवैध कटाई हुई है। हमने पंजाब की तस्वीरें भी देखी हैं। पूरे खेत और फसलें जलमग्न हैं।
यह गंभीर मामला है। याचिका में हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन का मुद्दा उठाते हुए भविष्य के लिए कार्य योजना बनाने की मांग की गई। इसके लिए एसआईटी गठित की जाये जो पर्यावरण कानून एवं उसके दिशा-निर्देशों और सड़क निर्माण के मानकों के उल्लंघन की जांच करे, जिससे इन राज्यों में 2023-2024 और 2025 में ये आपदायें आईं। हिमालयी इलाका 13 राज्यों सहित केन्द्र शासित प्रदेशों में फैला हुआ है। मानसून के दौरान इनको अधिकाधिक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है।
ये अपनी जटिल बनावट, नाजुक हालात और लगातार बदलती जलवायु परिस्थितियों की वजह से विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं की वजह से आने वाली बाढ़ के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं। ये आपदायें आबादी क्षेत्र, बुनियादी ढांचों और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं।
बीते दिनों देहरादून में सहस्र धारा जैसे मैदानी इलाकों तक को इसका प्रकोप झेलना पड़ा। जबकि अभी तक पहाड़ी इलाकों में ही बादल फटने और भूस्खलन जैसी घटनायें घटती रही हैं।नि:संदेह, मौसम में आ रहा बदलाव मानवता के समक्ष अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे हालात में इस अति संवेदनशील इलाके में ऐसे तंत्र विकसित किये जाने की जरूरत है जो एक साथ अतिवृष्टि, भूस्खलन, ग्लेशियरों के पिघलने, ग्लेशियर झीलों के टूटने, पर्माफ्रास्ट से होने वाले नुकसान पर अंकुश लगा सके।




No comments:
Post a Comment