हिमालय हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता व आत्मा है-पद् भूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी
पीड़ित हिमालय-भविष्य की चुनौती पर संगोष्ठी का आयोजन
हमने धाम को दाम बना दिया-प्रो.(डॉ.) आर.पी. जुयाल
प्रकृति के संरक्षण के लिए उसे समझना जरुरी-सांसद चंदन सिंह चौहान
मेरठ। स्वामी विवेकानंद सुभारती विवि में “हिमालय की पीड़ाः पीड़ित हिमालय-भविष्य की चुनौती” पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में हिमालय मैन के नाम से प्रसिद्ध पर्यावरण संरक्षक पद्मश्री व पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी मुख्य वक्ता, बिजनौर से लोकसभा सांसद चंदन सिंह चौहान मुख्य अतिथि, व मेरठ के प्रख्यात शिक्षक एवं पर्यावरणविद् प्रो.(डॉ.) आर.पी.जुयाल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक रूप से उपस्थित गण्यमान्य अतिथियों हिमालय मैन के नाम से प्रसिद्ध पर्यावरण संरक्षक पद्मश्री व पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी, बिजनौर से लोकसभा सांसद चंदन सिंह चौहान, मेरठ के प्रख्यात शिक्षक एवं पर्यावरणविद् प्रो.(डॉ.) आर.पी.जुयाल एवं विश्वविद्यालय की कुलाधिपति डॉ. स्तुति नारायण कक्कड़, सुभारती समूह के संस्थापक डॉ. अतुल कृष्ण, कुलपति प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार शर्मा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. शल्या राज, विश्व विद्यालय के महानिदेशक मेज. जन.(डॉ.) जी.के.थपलियाल,एसएम(से.नि.) के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं घट जलाभिषेक के साथ हुआ।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता पद्मश्री एवं पद्मभूषण से सम्मानित डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि हिमालय केवल मिट्टी, पत्थर व धूल से बना एक पहाड़ नहीं है। यह हमारे देश की सभ्यता, संस्कृति और देश की आत्मा है। लेकिन आज हमारी गलतियों की वजह से यह आत्मा टूट रही है। उन्होंने कहा कि प्रकृति को समझने की आवश्यकता है क्योंकि शहर की गलतियों की सजा पहाड़ भुगत रहा है। प्रकृति से छेड़छाड़ पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति विभिन्न आपदाओं एवं त्रासदियों के माध्य से हमें बताया है कि हम गलतियां कर रहे हैं और प्रकृति से बड़ा कोई नहीं है किंतु हम अभी भी नहीं समझ रहे हैं जिसके कारण हमें बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्होंने आगे कहा कि भोगवादी सभ्यता ने सब बिगाड़ दिया है। प्रकृति का नयम है कि जो भोगेगा वही जोड़ेगा अतः यदि आप वास्तव में आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित एवं समृद्ध पर्यावरण देना चाहते हैं तो आज से ही पर्यावरण में निवेश करना शुरु करें। उन्होंने विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थाओं से कहा कि आज प्रकृति के विज्ञान को समझने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें पाठ्यक्रम में प्रकृति के विज्ञान से संबंधित पाठ्यक्रम लाना होगा
इस दौरान अपने संबोधन में डॉ. आर पी जुयाल ने पहाड़ों पर बढ़ रहे टूरिस्ट कल्चर से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रेखांकित करते हुए कहा कि हमने अपने धामों को दामों में बदल दिया है। आज हमें उपभोक्तावाद से बाहर निकलकर पर्यावरण को हम क्या दे सकते हैं इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं बिजनौर से लोकसभा सांसद चंदन सिंह चौहान ने कहा कि आज इस संगोष्ठी के मंच से “हिमालय की पीड़ाः पीड़ित हिमालय-भविष्य की चुनौती” विषय जो भी निष्कर्ष निकलेगा वह विदेशों तक जाएगा। आज हमें प्रकृति को संरक्षित करने के लिए उसको समझने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें अपने स्वयं में मूलभूत बदलाव लाने होंगे। उन्होंने कहा कि पहरे में रखकर हम किसी भी समाज को नहीं बदल सकते हैं इसके लिए हमारे स्वयं के चरित्र का ईमानदार होना आवश्यक है। समय बहुत बलवान होता है वह हर पीड़ा को अपने साथ ठीक कर देता है, हिमालय की पीड़ा भी समय के साथ ठीक हो जाएगी। आज जरुरत बस इतनी है कि हम अपने आचरण को बदल लें।
कार्यक्रम में अपने स्वागत उद्बोधन में कुलपति प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा कि हिमालय केवल एक पहाड़ नहीं है यह हमारी सभ्यता, संस्कृति और सीमाओं का प्रहरी व संरक्षक भी है। हिमालय को बचाने एवं पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए डॉ. शर्मा ने इसके कारकों की चर्चा करते हुए भविष्य की चुनौतियों के साथ इसके निदान के लिए पांच सूत्र दिए। उन्होंने कहा कि यदि हम प्रकृति से ले रहे हैं तो हमें उसे देना भी होगा। आने वाली पीढियों का भविष्य हमारे आज पर निर्भर करता है।
इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विवि की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. शल्या राज ने अपने प्रेरणादायक संबोधन में कहा कि आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। आज हम एक ऐसी समस्या पर चर्चा एव उसके निदान को खोजने के लिए एकत्रित हुए हैं जिसके बारे में हमें बहुत पहले ही सोचना चाहिए था। हम वो लोग हैं जो समदर्शी हैं। हमारी संस्कृति में पर्यावरण को देवत्व के साथ जोड़ा गया है जिससे हम उसके प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसको विनष्ट ना करें। प्रकृति को हमारी संस्कृति में मां का स्थान हासिल है। उन्होंने आगे कहा कि प्रकृति मां हमें बारम्बार सजग कर रही है कि हम अपनी गलतियों को सुधार ले नहीं तो हमें फिर से कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जुझना पड़ सकता है।
इस दौरान पवनेश गौड़ द्वारा पर्यावरण संरक्षक एवं गीतकार व कवि लोकेश रोहेला रचित गीत अजर अमर अविरल गंगा गीत की सुरमयी प्रस्तुति एवं गौरव साहा की गंगा क्यो बहती है नृत्य प्रस्तुतियों ने इस संगोष्ठी को और अधिक गहराई से जनसमूह के साथ जोड़ा।
इस संगोष्ठी के अंत में मेरठ में पर्यावरण के संरक्षण में कार्य कर रहे विभिन्न विद्यालयों व संस्थाओं को सम्मानित प्रशस्ति पत्र देकर किया गया। इसमें जागरुक नागरिक संघ मेरठ के गिरिश शुक्ला, चंद्रासन प्रकृति फाउंडेशन मेरठ के कैप्टन सी.पी.एस यादव, सारथी फाउंडेश्न मेरठ की कल्पना पांडेय, मेरठ के प्रसिद्ध पर्यावरण अधिवक्ता डॉ. अवधेश प्रताप, एनवायरमेंट क्लब मेरठ के आयुष गोयल एवं पीयुष गोयल, इनर व्हील क्लब मेरठ की संस्थापक सदस्या पूनम रस्तोगी आदि के साथ ही शिक्षण संस्थाओं में पर्यावरण के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए डॉ. राजेश कुमार अग्रवाल प्रधानाचार्य जसवंत मिल्स इंटर कॉलेज, इंटरनेश्ल पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या राणा लुबाना, जवाहर इंर कॉलेज मवाना के शिक्षक अरविंद गौरव एवं जिला शिक्षा समन्वयक भूपेंद्र सिंह शामिल रहे।
इस दौरान स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायो के विद्यार्थियों ने भी पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता को अपने लघु भाषणों के रुप में रखा जिनमें विधि संकाय के ओम ठाकुर, प्रकृति सुभारती इंजिनियरिंग संकाय की नंदिनी, बीपीटी से वर्णिका एवं फिजियोथेरेपी के डॉ. करन पंवार शामिल रहे।
इस संगोष्ठी का सफल संचालन स्वामी विवेकानंद पीठ की कन्वीनर एवं प्रो. डॉ. मोनिका मेहरोत्रा ने किया तो वहीं आयोजन समिति के अध्यक्ष एवं विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष डॉ. रविंदर कुमार जैन ने सारगर्भित रूप से सभी का धन्यवाद किया।
इस अवसर आयोजन समिती के सदस्यों डॉ. मुकेश रुहेला, डॉ. रितेश चौधरी, डॉ. प्रीति सिंह, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. सोकिंद्र कुमार सहित डीन ललित कला संकाय डॉ. पिंटू मिश्रा, आयुष संकाय के डॉन डॉ. अभयशंकर गौड़ा, विधि संकाय के डीन डॉ. वैभव गोयल भारतीय, डॉ. मनोज कपिल डॉन सुभारती इंजिनियरिंग संकाय सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय सदस्य व विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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