इलमा अज़ीम
कोई भी समाज तभी समृद्ध बन सकता है, जब इसकी युवा पीढ़ी स्वस्थ एवं सुंदर हो। यह स्वस्थता एवं सुंदरता केवल शरीर से ही नहीं, अपितु विचारों में भी झलकनी चाहिए। यह युवा शक्ति ही किसी प्रदेश या देश का आने वाला कल निर्धारित करती है। जिस तरह एक बीज में पूरे पौधे अथवा पेड़ की संरचना, रंग-रूप, फल इत्यादि सब निहित होता है, उसी तरह युवा पीढ़ी समाज का बीज है। बीज अच्छा हो और उसका रोपण एवं पालन-पोषण अच्छा हो, तभी वह फलदार वृक्ष बनता है। इसी तरह यदि हमारी युवा पीढ़ी अच्छे वातावरण में पले-बढ़े, तो हम एक समृद्ध प्रदेश एवं खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं।
नशाखोरी केवल कानून व्यवस्था का ही विषय नहीं है, वरन शिक्षा व्यवस्था, रहन-सहन, पारिवारिक वातावरण, बच्चों की परवरिश एवं अन्य मनोरंजन सुविधाएं आदि इसको प्रभावित करते हैं। शराब, सिगरेट, भांग, चरस, हेरोइन, तंबाकू, चिट्टा इत्यादि हमारी युवा पीढ़ी की नसों में जहर घोल रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के करीब 45 फीसदी नौजवानों को नशे की लत लग गई है। इनमें से भी ज्यादातर युवा 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग से संबंधित हैं। हिमाचल के लिए भी ये आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं।
नशा माफिया पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा अन्य रास्तों से लगातार हिमाचल प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है, जिसकी पुष्टि पुलिस विभाग खुद करता आया है। आज के युग में नशा एक प्रमुख चुनौती है, जो कि नौजवान पीढ़ी को बर्बाद करने पर तुला है। नशे के बढ़ते चलन के पीछे जो तर्क दिख रहे हैं, वे सतही हैं। इसके पीछे छिपे रहस्यों को जानना जरूरी है।
इन रहस्यों को अगर हम जान पाएंगे तो दूसरी आधुनिक बीमारियों के मूल तक पहुंचने में भी हमें आसानी होगी। एक तो आज की युवा पीढ़ी कुछ पथ भ्रष्ट लोगों के संपर्क में आकर इन बुरी आदतों की तरफ बढ़ रही है। दूसरा उनके हाथ में मां-बाप की दरियादिली की वजह से पैसा ज्यादा आ रहा है, जिससे वे आसानी से सिगरेट, शराब, चरस, भांग इत्यादि खरीद पा रहे हैं। तीसरा ज्यादातर माता-पिता भी अपने बच्चों पर समुचित ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। यह भी कि हमारा नौजवान, चाहे वह लड़के हों या लड़कियां, तनावग्रस्त एवं स्पर्धा युक्त वातावरण में जी रहे हैं। ऐसे में वे नशे को ही अपना एकमात्र त्राणदाता (संतुष्टिदाता) मान रहे हैं। नशाखोरी की प्रवृत्ति पर गंभीरता से चिंतन होना चाहिए।
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