चिकित्सा सेवा में नई उम्मीदें
 इलमा अज़ीम 
    
हाल ही में ड्रोन की गतिशीलता के दृष्टिगत किया गया पायलट अध्ययन स्वास्थ्य उपचार की दिशा में आशा की एक नई किरण लेकर आया है। आपातकालीन चिकित्सा परिस्थितियों में रक्त एवं रक्त-घटकों का समय रहते उपलब्ध होना किसी उपचाराधीन व्यक्ति के लिए संजीवनी बन सकता है। भारत जैसे बड़े देश की विविध क्षेत्रीय भौगोलिक विभिन्नता का जायज़ा लें तो सड़क मार्ग द्वारा समयानुकूल आपूर्ति होने में शंकाएं बनी रहती हैं। 
उखड़ती सांसों के लिए प्रतिक्षण के महत्व को भांपते हुए वैज्ञानिकों ने दिल्ली तथा एनसीआर के तीन संस्थानों; लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, ग्रेटर नोएडा के गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज तथा जेपी इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने साथ मिलकर एक अध्ययन किया, जिसमें ड्रोन तकनीक का प्रयोग चुनौती के प्रभावी समाधान के रूप में उभर कर सामने आया। 


विशेषज्ञों के तहत, दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में किए गए इस अध्ययन के दौरान ड्रोन ने लगभग 36 किलोमीटर की दूरी मात्र आठ मिनट में तय कर ली, जबकि पारंपरिक वैन को यही दूरी तय करने में 55 मिनट का समय लगा। अध्ययन में कुल 60 ब्लड बैग्स का उपयोग किया गया; जिसमें पूर्ण रक्त, पैक्ड रेड ब्लड सेल्स, फ्रेश फ्रोज़न प्लाज्मा तथा प्लेटलेट्स शामिल थे। ड्रोन व वैन दोनों द्वारा भेजे गए इन नमूनों की बाद में उनके जैव-रासायनिक मानकों की तुलना करने पर परिणाम सकारात्मक ही रहे। अध्ययन की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता बनाए रखने हेतु नमूनों की गुणवत्ता जांचने के लिए ‘डबल ब्लाइंड’ पद्धति अपनाई गई। वैज्ञानिकों की मानें तो भविष्य में यह तकनीक वैक्सीन, इमरजेंसी ड्रग्स तथा सर्जिकल उपकरणों की आपूर्ति में भी उपयोगी हो सकती है।


 इससे ग्रामीण व दूरगामी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना सरल हो जाएगा। आईसीएमआर तथा साझेदार संस्थाओं की यह पहल, निस्संदेह, आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य वितरण प्रणाली में बड़ा बदलाव लाएगी। निश्चय ही, प्रत्येक क्षेत्र में नित्य नई क्रांति ला रहे ड्रोन हमारे काम करने के तरीके बदलकर असंभव को संभव बना रहे हैं।

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