शहरीकरण व जलवायु परिवर्तन
इलमा अज़ीम
देश में चल रहे मानसून मौसम में पूरे देश में सामान्य से अधिक वर्षा हुई है, जैसा कि भारत के मौसम विज्ञान विभाग ने पूर्वानुमान दिया था। कई राज्यों में भारी बारिश हुई है, जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश के कारण आपदाएं जैसे भूस्खलन और अचानक बाढ़ की घटनाएं सामने आई हैं। हिमालयी क्षेत्र- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर में लगातार, व्यापक और तीव्र बारिश हुई है।
इस मौसम की सबसे भयंकर आपदाओं में से एक उत्तरकाशी जिले के धराली में आई, जहां कथित रूप से बादल फटने से आई अचानक बाढ़ ने जान-माल का नुकसान किया। यह क्षेत्र की पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील स्थिति में अनियंत्रित विकास के खतरे की गंभीर याद दिलाता है। मैदानों में भी मानसून का कहर जारी है, जहां बड़े शहरों में सड़कों पर जलभराव, जान-माल के नुकसान और पुरानी संरचनाओं का ढह जाना देखा जा रहा है।
सोशल मीडिया पर जलजमाव के कारण भारी ट्रैफिक जाम, सड़कों और राजमार्गों पर कार और ट्रकों का सिंक होल में गिरना, स्कूलों और कार्यालयों में फंसे लोग तथा बिजली की चपेट में आने जैसी दुखद घटनाओं की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। बारिश से होने वाले प्रभावों को केवल ‘प्रकृति का क्रोध’ मान लेना गलत होगा। जो कुछ भारतीय शहर मानसून में जलभराव बढ़ने की जिस चुनौती को झेल रहे हैं, वह अतार्किक शहरी नियोजन, बुनियादी ढांचे की अनदेखी, नगर निगम के नियमों के उल्लंघन, हरियाली और खुले क्षेत्रों के कटाव, बड़े पैमाने पर कंक्रीट का उपयोग आदि का संयुक्त परिणाम है।
इसके ऊपर जलवायु परिवर्तन भी है, जो स्वयं मानव निर्मित समस्या है। दशकों से वैज्ञानिक अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि की चेतावनी दे रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। यह स्थिति केवल बिगड़ती ही जाएगी क्योंकि भारत में तीव्र गति से शहरीकरण हो रहा है। वर्तमान अनुमान के अनुसार, 2050 तक लगभग एक अरब भारतीय शहरों में रह रहे होंगे। लेकिन अगर भारतीय शहर अपनी वर्तमान विकास दिशा पर चलते रहे, तो वे अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाएंगे, जैसा कि विश्व बैंक की हाल की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है।
हर साल मानसून के कारण हो रही इस अराजकता को देखते हुए स्पष्ट है कि हमारे शहर आगे के शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन की दोहरी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं। शहरों के पास इन प्रभावों को प्रबंधित करने की सीमित क्षमता है। उनका नियोजन और प्रबंधन प्रणाली तेजी से हो रहे शहरीकरण, जलवायु प्रभावों और विकास तथा सेवाओं की मांग के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है। शहरों को जलग्रहण क्षेत्र आधारित बाढ़ सुरक्षा योजनाएं बनानी चाहिए ताकि बाढ़, मैदानों के विकास और वर्षाजल प्रबंधन को नियंत्रित किया जा सके।
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