संत प्रेमानंद पर स्वामी रामभद्राचार्य ने की आपत्तिजनक टिप्पणी, संतों ने जताया ऐतराज
मुंबई। आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद पर की गई टिप्पणी को लेकर संत समाज में नाराजगी बढ़ गई है। कई प्रमुख संतों ने इसे सनातन धर्म की एकता के लिए हानिकारक बताया और कहा कि ऐसी बातें समाज व विशेषकर युवा पीढ़ी पर नकारात्मक असर डालती हैं।
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने कहा कि रामभद्राचार्य हमेशा विवादास्पद बयान देते रहे हैं और यह उनकी आदत बन गई है। उन्होंने कहा कि सनातन परंपरा में ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं ली, फिर भी समाज को दिशा दी। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री और स्वामी विवेकानंद के गुरु जैसे संतों का जिक्र किया। स्वामी चिदंबरानंद ने प्रेमानंद के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वे समाज को सरल जीवन का संदेश दे रहे हैं और इसे महत्व देना चाहिए।
अखिल भारतीय संत समिति ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी गोपालाचार्य महाराज ने भी कहा कि जब एक संत दूसरे संत पर आक्षेप लगाता है तो इससे युवाओं में भ्रम की स्थिति पैदा होती है। उन्होंने कहा कि युवाओं को संतों के प्रवचनों से प्रेरणा मिलती है और यदि संतों के बीच विघटन दिखेगा तो यह नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
उन्होंने सूरदास और मीराबाई जैसे संतों का उदाहरण दिया, जिन्होंने बिना औपचारिक शिक्षा के भी समाज का मार्गदर्शन किया।
स्वामी गोपालाचार्य ने यह भी कहा कि रामभद्राचार्य का समाज में योगदान बड़ा है, लेकिन उन्हें ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि संत समाज, रामभद्राचार्य के आरक्षण संबंधी विचारों का समर्थन करता है। उनका मानना है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए, केवल जातिगत आधार पर नहीं।
वहीं, आचार्य मधुसूदन महाराज ने कहा कि प्रेमानंद के बारे में रामभद्राचार्य का यह कहना कि वे विद्वान नहीं हैं, चमत्कारी नहीं हैं और कुछ नहीं जानते, पूरी तरह निराधार और निंदनीय है।
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