यशोदा इंस्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर केयर ने IGRT से आगे बढ़ते हुए, उत्तर भारत के पहले ETHOS हाइपरसाइट और आइडेंटिफाई SGRT की शुरुआत की
मेरठ : यशोदा मेडिसिटी के वाइस चेयरमैन और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख, डॉ. गगन सैनी दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के पहले सुपर-स्पेशलिस्ट बन गए हैं, जिन्होंने उत्तर भारत की पहली एथोस हाइपरसाइट और आइडेंटिफाई एंड सरफेस गाइडेड रेडिएशन थेरेपी (SGRT) पेश की है। यह एक अत्याधुनिक, बिना चीर-फाड़ वाली रेडिएशन थेरेपी की तकनीक है, जो कैंसर के सटीक इलाज में एक बड़ी प्रगति को दर्शाती है। इस रेडिएशन ऑन्कोलॉजी सिस्टम की गुणवत्ता बेमिसाल है, जो फिलहाल पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त होने के साथ-साथ सबसे महंगी और अत्याधुनिक तकनीकों में से एक है, जो अब इस क्षेत्र के अलावा देश भर के मरीजों के लिए आसानी से उपलब्ध है।
IGRT से एक कदम आगे बढ़कर यह तकनीक अपनाई गई है, जिसमें पारंपरिक इमेज-गाइडेड रेडिएशन थेरेपी (IGRT) के तहत हर उपचार के पहले मरीजों की सटीक स्थिति निर्धारित करने के लिए हर दिन इमेजिंग का उपयोग किया जाता है। हालाँकि, स्टैंडर्ड कोन-बीम सीटी स्कैन में 60 सेकंड तक का समय लग सकता है, जिसके लिए मरीजों को लंबे समय तक स्थिर रहना या साँस रोककर रखना पड़ सकता है — और यह अनुभव तनाव भरा और कभी-कभी असहज भी हो सकता है। नया ETHOS हाइपरसाइट CBCT इस प्रक्रिया को पूरी तरह से बदलने वाला है, जो मरीज को केवल 6 से 8 सेकंड में स्कैन करके कम मोशन ब्लर के साथ ज़्यादा साफ़ तस्वीरें देता है। पुराने सिस्टम के विपरीत, ETHOS इन तस्वीरों का इस्तेमाल करके हर दिन इलाज की योजना में बदलाव लाता है— तो अगर कोई ट्यूमर सिकुड़ता है या कोई अंग अपनी जगह से हटता है, तो रेडिएशन प्लान में भी उसी समय अपने आप बदलाव हो जाता है। इसे एडैप्टिव RT कहते हैं।
साथ ही, आइडेंटिफाई SGRT सिस्टम मरीज को अतिरिक्त रेडिएशन के संपर्क में लाए बिना उसकी स्थिति पर लगातार नज़र रखता है। बहुत अधिक सटीकता वाले कैमरे थोड़ी-सी भी हलचल का पता लगा लेते हैं, और ज़रूरत पड़ने पर अपने आप ही ट्रीटमेंट बीम को रोक देते हैं, जिससे सुनिश्चित होता है कि रेडिएशन की डोज केवल ट्यूमर पर ही केंद्रित रहे।
यशोदा मेडिसिटी के वाइस चेयरमैन और रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख, डॉ. गगन सैनी बताते हैं, "ETHOS हाइपरसाइट के साथ आइडेंटिफाई SGRT एक आधुनिक रेडिएशन थेरेपी सिस्टम है, जो बहुत तेज, हाई-डेफिनिशन इमेजिंग को लगातार सतह पर नज़र रखने की तकनीक के साथ जोड़कर सही मायने में जरूरत के अनुरूप उपचार प्रदान करता है। इसके विपरीत, पारंपरिक IGRT तकनीक में उपचार से पहले केवल ट्यूमर की स्थिति की जाँच की जाती है, लेकिन अब इस तकनीक से हमारी टीम को वास्तविक समय में मरीज की शारीरिक संरचना देखने, ज़रूरत पड़ने पर हर दिन उपचार योजना में बदलाव करने और पूरे सत्र के दौरान मरीज की स्थिति पर नजर रखने की सुविधा मिलती है — और यह सब बेजोड़ सटीकता और आराम के साथ संभव हो पाता है। इसका सीधा मतलब है कि, रेडिएशन की मात्रा हर दिन मरीज के शरीर की ख़ास बनावट के हिसाब से तय की जाती है, ताकि ट्यूमर को पूरा रेडिएशन मिले और स्वस्थ ऊतक अच्छी तरह सुरक्षित रहें।”
डॉ. सैनी आगे कहते हैं, "ये हमारे लिए गर्व का लम्हा है। रीयल-टाइम एडैप्टिव थेरेपी को निरंतर सतह ट्रैकिंग के साथ जोड़कर, हम सही मायने में पारंपरिक IGRT को पीछे छोड़ रहे हैं। हमारे मरीजों को इंदिरापुरम में ही सटीकता, सुरक्षा और सहूलियत के मामले में दुनिया भर में अपनी जाने वाली सबसे बेहतर तकनीक का लाभ मिलता है।”
SGRT तकनीक से इलाज के कई फ़ायदे हैं, जिससे उपचार की सटीकता में सुधार हो सकता है, त्वचा पर निशान या टैटू की ज़रूरत कम हो सकती है, साथ ही इलाज में लगने वाला समय भी कम हो सकता है। इसका उपयोग स्तन कैंसर के उपचार के लिए डीप इंस्पिरेशन ब्रीद होल्ड (DIBH) जैसी तकनीकों को आसान बनाने में भी किया जा सकता है।
अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि, हर दिन इस्तेमाल की जाने वाली एडैप्टिव थेरेपी और SGRT इलाज के अंतराल को कम करने में मदद करते हैं, जिससे स्वस्थ ऊतक अधिक सुरक्षित रहते हैं तथा थकान या अंग में जलन जैसे दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं, और ये सारी बातें बेहतर सटीकता और अधिक आराम के मायने को बदलने वाली हैं। मरीजों को इलाज के कमरे में कम वक़्त बिताना पड़ता है, उन्हें कम समय के लिए साँस रोकनी पड़ती है, और वे अक्सर — खासकर उपचार की लंबी अवधि के दौरान ज़्यादा सुकून महसूस करते हैं। ऊपर बताई गई सभी सुविधाएँ ETHOS द्वारा पहली बार प्रदान की जा रही हैं।
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