अनूठी पहल

  इलमा अज़ीम 

  देश में पहली बार उत्तराखंड वन विभाग ने संकटग्रस्त और दुर्लभ वनस्पतियों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक वास में पुनःस्थापित करने की पहल शुरू की है। वन विभाग की अनुसंधान शाखा द्वारा चलाई जा रही इस महत्वाकांक्षी परियोजना के पहले चरण में 14 ऐसी पौधों की प्रजातियों को शामिल किया गया है जो या तो अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त या अति संकटग्रस्त श्रेणी में सूचीबद्ध हैं, या फिर राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा दुर्लभ और संकटग्रस्त घोषित की गई हैं।


 अब तक इस तरह के संरक्षण कार्यक्रम केवल वन्यजीवों के लिए ही संचालित होते थे, लेकिन यह पहली बार है जब वनस्पतियों के लिए इस प्रकार की वैज्ञानिक और व्यवस्थित पहल की जा रही है। इन पौधों का अत्यधिक औषधीय महत्व है, जिसके कारण जंगलों से इनका अत्यधिक दोहन हुआ और इनकी संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई। इस परियोजना के लिए चुनी गई प्रमुख प्रजातियों में त्रायमाण, रेड क्रेन ऑर्किड, सफेद हिमालयन लिली, गोल्डन हिमालयन स्पाइक, दून चीजवुड, कुमाऊं फैन पाम, जटामांसी, पटवा और हिमालयन अर्नेबिया शामिल हैं। इन प्रजातियों को बीज, कंद और राइजोम के माध्यम से तैयार कर, उच्च हिमालयी केंद्रों पर पौध रूप में विकसित किया गया है।             विभाग ने इन पौधों के पुराने वास स्थलों की पहचान कर उनका मानचित्रण भी कर लिया है, और मानसून की शुरुआत के साथ ही रोपण कार्य आरंभ कर दिया गया है। जुलाई के अंत तक पहले चरण का रोपण कार्य पूरा कर लिया जाएगा। इसके साथ ही परियोजना के आगामी चरणों में और अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों को भी इस प्रयास में शामिल किया जाएगा। 


 यह योजना केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के साथ एक संवेदनशील संवाद है। यह साबित करता है कि यदि सही दिशा और समर्पण के साथ काम किया जाए, तो संकट में आई प्रकृति की अमूल्य धरोहर को पुनः जीवन दिया जा सकता है। उत्तराखंड का यह प्रयास देश में वनस्पति संरक्षण की दिशा में एक नई इबारत लिख रहा है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts