दुर्भाग्यपूर्ण भाषा विवाद

 इलमा अज़ीम 

        पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र, ख़ासकर मुंबई में भाषा के मुद्दे पर राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। इस विवाद के केंद्र में हिंदी भाषा है। महाराष्ट्र सरकार के एक फ़ैसले से शुरू हुआ यह विवाद केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक दलों ने सड़क पर उतरकर विरोध किया। पिछले हफ़्ते भाषा विवाद से जुड़ी कम से कम तीन घटनाएं मुंबई और आस-पास के इलाकों में हुई हैं। 
इन घटनाओं में शामिल होने का आरोप राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के कार्यकर्ताओं पर लगा है। लेकिन दोनों दलों का कहना है कि वे किसी भाषा के ख़िलाफ़ नहीं हैं और अहिंसा का रास्ता अपनाते हुए विरोध कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि आजादी के सात दशक बाद भी देश में जनता को विकास व तार्किक मुद्दों के बजाय संकीर्ण अस्मिता के नाम पर बरगलाया जा रहा है। उन मुद्दों को हवा दी जा रही है जिनके बूते महाराष्ट्र में शिव सेना अस्तित्व में आयी।


 विडंबना यही है कि ऐसे तत्वों को यदि राजनीतिक मंसूबे पूरा करने में सफलता मिलती है तो इसका नकारात्मक संदेश पूरे देश में जाएगा। बहुत संभव है कि देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी संकीर्ण भाषायी विरोध की राजनीति मुखर होने लगे। जो राष्ट्रीय एकता व सद्भाव के लिये एक बड़ी चुनौती होगी। निस्संदेह, भारतीय लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि राजनीतिक दल सकारात्मक मुद्दों व विकास की प्राथमिकताओं को अपना एजेंडा बनाएं। दरअसल, सकारात्मक राजनीति में हाशिये पर गए दल ही सफलता के शॉर्टकट के रूप में ऐसे भावनात्मक मुद्दों को हवा देकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। 
आज पूरी दुनिया विज्ञान की क्रांति व अभिव्यक्ति के तकनीकी विकास से एकजुट हो रही है, वहीं हम भाषीय संकीर्णताओं में उलझकर प्रगति के पहिए को थामने की कोशिशों में लगे हुए हैं। भले ही हमारी मातृभाषा कुछ भी हो, लेकिन पूरे देश में एक संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की उपयोगिता को खारिज नहीं किया जा सकता है। कई राज्यों में त्रिभाषा फार्मूले के रूप में शिक्षा के प्रसार में सात समुंदर पार की अंग्रेजी भाषा के अंगीकार में तो कोई परहेज नहीं है, लेकिन तमाम भारतीय भाषाओं के शब्दों को समेटे देश के स्वतंत्रता आंदोलनकारियों द्वारा स्वीकृत हिंदी का विरोध किया जा रहा है। ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है।

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