बिहार में जंगलराज
इलमा अज़ीम बिहार की राजधानी पटना में एक बार फिर लोमहर्षक तरीके से कुछ बदमाशों में गैंगस्टर को अस्पताल में घुसकर गोलियों से भून दिया। बिल्कुल साफ है कि बिहार में एक और ‘जंगल-राज’ उभर आया है। पंख पसार लिए हैं और रोजाना की जिंदगी में दिखाई देता है। वैसे इसे ‘सुशासन बाबू’ का राज कहा जाता रहा है। इस मुहावरे का इस्तेमाल कर राजनीतिक सत्ता बटोरी गई होगी! लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि बीते 10 दिन में करीब 30 हत्याएं कर दी गई हैं।
औसतन हर 10 घंटे में एक हत्या…! राजधानी पटना भी ‘हत्याओं का शहर’ बन गई है। पटना से लेकर सीवान, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, बेगुसराय, पूर्णिया और नालंदा तक हत्याएं की जा रही हैं। मौजूदा ‘जंगल-राज’ में प्राथमिकी दर्ज कर जांच भी की जाती है। गिरफ्तारियां भी की जाती हैं। तो क्या इसके मायने ये हैं कि लगातार हत्याओं से आंख मूंद लें? क्या इन हत्याओं को ‘जंगल-राज’ न कहें? पुलिस की जिम्मेदारी तय न करें? दरअसल पुलिस के पास तमाम अपराधों और अपराधियों के सुराग होते हैं।
रिकॉर्ड भी रखते हैं। मुख्यमंत्री से पुलिस तक कोई भी यह स्पष्ट करने को तैयार नहीं दिखा कि आखिर विधानसभा चुनाव से 3-4 माह पहले ही निरंतर हत्याएं क्यों बढ़ गई हैं? एक खोखला-सा आरोप सामने आ रहा है कि लालू का राजद इन अपराधों की पृष्ठभूमि में है। यदि सरकार के पास कोई साक्ष्य है, तो वह ठोस कार्रवाई करे। हत्याओं पर अल्पविराम लग सकता है। बेशक अपराध जिस गति से विस्तार पा रहे हैं, उससे बिहार में हडक़ंप के हालात हैं।
कानून का नहीं, अपराध का राज है। हत्याएं लगातार की जा रही हैं। कह सकते हैं कि राज्य में बालू माफिया, जमीन माफिया, शराब माफिया आदि पहले भी मौजूद थे और आज भी दनदनाते सक्रिय हैं। नीतिश कुमार करीब 20 साल से मुख्यमंत्री हैं और गृहमंत्री का दायित्व भी उनके पास है। हत्याएं की जा रही हैं, लेकिन वह खामोश हैं। सरोकार और चिंता का एक भी बयान नहीं। शायद इसी को ‘सुशासन राज’ कहते रहे हैं। कारोबारी, शिक्षक, नर्स, वकील, पशु चिकित्सक और किसान आदि कोई भी समुदाय हत्याओं से अछूता नहीं है।
न जाने आवेश, आक्रोश, खुन्नस के भाव ऐसे क्या हैं कि बस गोलियां ही चला दी जाती हैं, छुरा भोंक दिया जाता है! उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सफाई देते हैं कि बिहार में कोई संगठित अपराध नहीं है। आपसी विवाद में लोग हत्याएं कर रहे हैं, तो सरकार क्या कर सकती है? सरकार किसलिए होती है, चुनाव में यह बता दिया जा सकता है, लेकिन बिहार की नियति ‘जंगल राज’ ही है। अपराध लोगों के संस्कारों और उनकी सोच में ही निहित है।
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