इन्फ्लुएंसरों पर नैतिकता के नाम पर हमला
इलमा अज़ीम 
महिला सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों पर देश में हो रहे हमले गंभीर चिंता की बात है। कभी ऐसे मामले पाकिस्तान व अफगानिस्तान में सामने आते थे। अब भारत में कथित सांस्कृतिक शुचिता व नैतिकता के नाम पर ऐसे हमले किए जा रहे हैं। एक खतरनाक घटना में, एक लोकप्रिय यूट्यूब शो में दिखाई देने वाली एक डिजिटल निर्माता अपूर्वा मुखीजा को बलात्कार और जान से मारने की ऑनलाइन धमकी दी गई। इस पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने हस्तक्षेप करते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग की। 
हालिया घटनाक्रम में बठिंडा की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कंचन कुमारी उर्फ कमल कौर भाभी की निर्मम हत्या कर दी गई। यह हत्या हमें इस बात की याद दिलाती है कि कथित नैतिकता के नाम पर मोरल पुलिसिंग, जो कभी ऑनलाइन ट्रोलिंग तक सीमित थी, अब हिंसक आपराधिकता में बदल गई है। इन घटनाक्रमों का पैटर्न स्पष्ट है। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों, विशेष रूप से महिलाओं को कथित सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के नाम पर तेजी से निशाना बनाया जा रहा है। सवाल उठता है कि उनके इन मूल्यों को कौन परिभाषित करता है… और किसने उन्हें इस सतर्कता को लागू करने का अधिकार दिया… बठिंडा की दुर्भाग्यपूर्ण घटना की पंजाब महिला आयोग ने निंदा करके सही कदम उठाया है, लेकिन केवल आधिकारिक निंदा पर्याप्त नहीं है।


 कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे मामलों को सुनियोजित अपराधों के रूप में दर्ज करना चाहिए, जो हमारे सामाजिक ताने-बाने को खतरा पहुंचाते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भी इस दिशा में जिम्मेदारी उठानी चाहिए कि वे समय रहते सोशल मीडिया के दुरुपयोग रोकें व घृणास्पद सामग्री को अपने प्लेटफॉर्म से हटाएं। साथ ही सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वाले तत्वों पर कड़ी नजर रखें। किसी भी लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी एक अपरिहार्य अंग है।


 निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की आजादी की अपनी सीमाएं भी हैं। हालांकि, यह आजादी आलोचना से प्रतिरक्षा नहीं देती, लेकिन यदि आलोचना किसी की मर्यादा को नुकसान पहुंचाने या हत्या की धमकी में तब्दील होने लगे, तो शासन-प्रशासन को सख्त संदेश देना चाहिए। खासकर डिजिटल सतर्कता बढ़ाने की जरूरत है। विशेषकर जब डिजिटल निगरानी शारीरिक हिंसा में बदलने लगे। जिसे किसी कीमत पर सहन नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसे मामलों में अभी से सख्ती न दिखाई गई तो समाज में ऐसी हिंसक कार्रवाई की घटनाओं को थामना मुश्किल हो जाएगा। यह उस दुराग्रही सोच की कड़ी का ही हिस्सा है, जो हिंसा और धमकियों के माध्यम से महिलाओं की अभिव्यक्ति पर सोशल पुलिसिंग के जरिये शिकंजा कसने की कोशिश में रहती है। गाहे-बगाहे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समूहों द्वारा ऐसे कृत्यों को अंजाम दिया जाता रहा है।

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