परमाणु हथियार नियंत्रण के लिए युद्ध

- प्रमोद भार्गव
इजरायल और ईरान के बीच युद्ध आरंभ हो गया है। इजरायल ने ईरान के विरुद्ध बड़ा सैन्य अभियान चलाया है। इसे ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ नाम दिया गया है। यानी इजरायल एक ऐसा युद्ध करता हुआ देश है, जो ईरान की ओर शेर की मस्तानी चाल से बढ़ रहा है। नेताजी सुभाशचंद्र बोस ने जब आजाद हिंद फौज की कमान संभाली थी, तब उन्होंने अपने झंडे पर छलांग लगाते शेर को प्रतीक बनाया था। बेंजामिन नेतन्याहू ने एक वीडियो संदेश जारी कर इस आक्रमण की पुष्टि करते हुए कहा है, जब तक इजरायल के अस्तित्व पर खतरे बने रहेंगे, ईरान पर हमले जारी रहेंगे। साथ ही यह कोई सीमित कार्यवाही नहीं है, बल्कि एक व्यापक और लंबा चलने वाला रणनीतिक अभियान है। इजरायल ने 13 जून, 2025 को 200 लड़ाकू विमानों से ईरान के लगभग 100 ठिकानों को निशाना बनाया। ये हमले 20 प्रमुख सैन्य अधिकारियों और परमाणु वैज्ञानिकों के घरों पर भी किए गए। ईरान की राजधानी तेहरान में 78 लोग मारे गए। सामरिक ठिकानों पर ये हमले संभावित खतरों को टालने के नजरिए से किए गए।
इजरायल की सर्तकता यह रही कि उसने अपने खुफिया संगठन ‘मोसाद’ के जरिए ईरान के गुप्त ठिकानों पर पहुंचकर कम ऊंचाई वाले ड्रोन छोड़े और ईरान की सुरक्षा प्रणाली एवं मिसाइल प्रक्षेपण प्रणाली को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद इजरायली विमानों को ईरान का खुला आसमान मिल गया। ईरान ने 100 ड्रोन से जवाबी हमला किया भी लेकिन ये सभी ड्रोन इजरायली डिफेंस सिस्टम ने इजरायल की सीमा लांघने से पहले ही नेस्तनाबूद कर दिए। इधर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की जो कूटनीतिक प्रतिक्रिया आई है, उससे साफ है कि वे दोहरी नीति अपना रहे हैं। ट्रंप ने कहा है कि ईरान को परमाणु समझौता करने के लिए 60 दिन का समय दिया था, आज 61वां दिन था। फलत: इजरायल ने ईरान पर हमला बोल दिया। अब ईरान को समझौता करने के लिए दूसरा मौका दे रहा हूं, वह इस अवसर का लाभ उठाए। क्योंकि इजरायल का दूसरा हमला कहीं ज्यादा आक्रामक और भयावह होगा। साफ है ट्रंप की सहमति के बाद ही ईरान ने यह हमला किया है।

दरअसल ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए ये हमला किया गया। इसीलिए इस हमले को नेतन्याहू ने न्यायसंगत ठहराते हुए कहा है कि ईरान उसके अस्तित्व के लिए संकट बन रहा है। क्योंकि यह एक हकीकत है कि ईरान ने बड़े पैमाने पर यूरेनियम संवर्धन प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जो परमाणु हथियार बनाने की प्रक्रिया को बेहतर बनाती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत यूरेनियम 235 के निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाता है। अतएव इजरायल के लिए ईरान का परमाणु हथियार संपन्न देश हो जाना चिंता की स्थिति उत्पन्न करने वाली बात है। दरअसल, परमाणु हथियार संपन्न देश होना एक ऐसी सैन्य रणनीति हैं, जिसके चलते दूसरे देश परमाणु संपन्न देश पर हमला करने से बचते हैं। इसका बुनियादी कारण है कि यदि कोई देश शत्रु देश पर परमाणु हमला करता है तो जवाबी कार्यवाही में उसे भी परमाणु हमले का सामना करना पड़ सकता है।


ऐसा होता है तो देनों देशों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। रूस ने यूक्रेन पर आसानी से इसलिए हमला बोल दिया था, क्योंकि उसके पास परमाणु हथियार नहीं है। रूस और अमरीका के बहकावे में आकर उसने अपने परमाणु हथियार, परमाणु निरस्त्रीकरण संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद समुद्र में नष्ट कर दिए थे। इसका खामियाजा उसे आज उठाना पड़ रहा है। ईरान परमाणु संपन्न देश न बन जाए, इसलिए उस पर अमरीका ने लंबे समय से परमाणु संबंधी प्रतिबंध लगाए हुए थे। परंतु बराक ओबामा के कार्यकाल में अमरीका और ईरान के बीच एक परमाणु समझौता हुआ और ईरान से परमाणु प्रतिबंध समाप्त कर दिए गए थे। तब भी इजरायल ने इस समझौते का खुला विरोध किया था। नेतन्याहू ने यहां तक कहा था कि यह संधि एक ऐतिहासिक भूल है। किंतु उस समय इस संधि को ओबामा की बड़ी उपलब्धि बताया गया था। ईरान और इजरायल के बीच तनाव लंबे समय से चला आ रहा है।
लेकिन इन देशों ने लंबे समय तक छद्म युद्ध लड़ा है। परंतु जब एक अप्रैल 2024 को इजरायल ने सीरिया पर हमला किया था तब ईरान ने इजरायल पर सीधा हमला बोला था। क्योंकि इस लड़ाई में ईरान समर्थित इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड के ब्रिग्रेडियर जर्नल मोहम्मद रजा जाहेदी समेत 8 अधिकारी मारे गए थे। ईरान ने इस हमले के जवाब में अप्रत्याशित रुख अपनाते हुए लगभग 320 द्रोण और क्रूज मिसाइलों से हमला किया था।। ईरान इजरायल से करीब 1800 किमी. की दूरी पर स्थित होने के बावजूद हमला करने में सफल रहा। ईरान ने 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद इजरायल से लंबी दुश्मनी के चलते पहली बार यह सैन्य हमला इसलिए किया था।
इस लड़ाई में इजरायल को अमरीका ने खुली सामरिक मदद की थी। उस संदर्भ में ईरान ने अमरीका को चेतावनी देते हुए कहा था कि उसने यदि अब इजरायल की मदद की तो नतीजा भुगतने को तैयार रहे। ईरान ने यह पलटवार इसलिए भी किया था, जिससे मध्य-पूर्व की राजनीति में उसके वर्चस्व की महिमा को स्वीकार लिया जाए। यदि वह जवाबी हमला नहीं बोलता तो इजरायल और अमरीका के खिलाफ उसकी जो धारणा है, वह ध्वस्त हो जाएगी। दरअसल ईरान इजरायल के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करता है। उसका मानना है कि इजरायल ने मुस्लिमों की जमीन पर कब्जा कर रखा है। हालांकि हमले के बाद ईरान ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर मामले को यहीं समाप्त करने की गुहार भी लगाई थी। बावजूद ईरान ने चेतावनी दी थी कि यदि इजरायल ने जवाबी कार्यवाही की तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।

हालांकि इस परिप्रेक्ष्य में यह विरोधाभास भी देखने में आया था कि ईरान ने अमरीका को इजरायल पर सीमित और नियंत्रित हमला करने की जानकारी पहले ही दे दी थी। ईरान के विदेश मंत्री ने ही इस आशय का बयान दिया था। वाकई यह बयान सच था तो यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि अमरीका दोतरफा कुटिल चालें हमेशा ही चलता रहा है। क्योंकि अमरीका ब्रिटेन और फ्रांस को ईरान द्वारा इजरायल पर किए जाने वाले हमले की जानकारी थी, इसलिए इन मित्र देशों ने द्रोण और मिसाइलों को आसमान में ही नष्ट करने में इजरायल का सहयोग भी किया था। इस मानसिकता को क्या माना जाए यह सोचने की बात है? इस परिप्रेक्ष्य में युद्ध विश्लेशकों ने यह अनुमान लगाया था कि इजरायल और हमास युद्ध तो अभी खत्म होने वाला नहीं है, लेकिन ईरान-इजरायल का संघर्ष और बढ़ेगा? इस हमले के करीब 2 साल बाद यही स्थिति प्रत्यक्ष देखने में आ गई है। रूस भले ही इस समय यूक्रेन से ही युद्ध में उलझा हुआ है, बावजूद रूस ने ईरान के रणनीतिक भागीदार के रूप में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ईरान पर इजरायल का यह हमला उकसावे को बढ़ावा देने वाला है। हालांकि रूस ने यह भी कहा कि अमरीका और ईरान के बीच परमाणु समझौते के लिए जो वर्ता चल रही है, वह उसमें सहयोगा करेगा।


इस युद्ध को लेकर भारत दुविधा में है। क्योंकि पाकिस्तान के विरुद्ध भारत ने जब ऑपरेशन सिंदूर चलाया था तब इजरायल उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा था। इजरायल भारत का रक्षा साझेदार भी है। दूसरी तरफ ईरान से भारत के ऐतिहासिक संबंध है। ईरान ने कई अवसरों पर इस्लामिक देशों के संगठन के मंच पर भारत की मदद की है। इसलिए भारत किसी को भी छोडऩा नहीं चाहता। इसलिए भारत ने दोनों देशों के बीच कूटनीति व शांति बरतने की अपील की है। बहरहाल इस युद्ध के साथ बड़ी आशंका यह जुड़ गई है कि यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध की ओर न बढ़ जाए।

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