अस्पतालों की लूट
 इलमा अज‍़ीम 
भारतीय समाज में आज भी यदि डॉक्टरी पेशे को इज्जत भरी निगाहों से देखा जाता है तो इसके पीछे चंद कतिपय ईमानदार और काबिल डॉक्टरों की मरीजों के प्रति समर्पित सेवा भावना को ही श्रेय जाता है। लेकिन बदलते वक्त के साथ साथ जैसे जैसे ‘बाप बड़ा न भैय्या सबसे बड़ा रुपैया’ वाली भावना हर पेशे के लोगों में बढ़ती जा रही है। 
प्राय: निजी अस्पतालों अथवा सरकारी चिकित्सालयों में लापरवाही की ऐसी न जाने कितनी घटनाएं घटती रहती हैं, लेकिन हमारे कमजोर सिस्टम की वजह से फिर भी दोषी साफ बच निकलते हैं और भुक्तभोगी आम आदमी मन मसोस कर रह जाता है। कई मामलों में देखने में आया है कि सरकारी अस्पतालों के विशेषज्ञ डॉक्टर अपने घरों में ही निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं या प्राइवेट अस्पतालों में भी सेवारत हैं।
 अभी पिछले दिनों आयुष्मान भारत योजना में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा किए गए बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। दरअसल, जब सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं अपर्याप्त साबित होती हैं, तब आम नागरिक मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों का रुख करता है। प्राय: देखने में आता है कि निजी अस्पतालों द्वारा छोटी सी जांच या इलाज के लिए हजारों से लेकर लाखों रुपए तक का बिल बना दिया जाता है। 


आईसीयू चार्ज, मॉनिटरिंग फीस, डिस्पोजेबल सामान, यहां तक कि बिस्तर की चादर और ग्लब्स के नाम पर भी पैसे वसूले जाते हैं। बहुत से मामलों में देखा गया है कि मरीज को केवल कमाई का साधन समझा जाता है और उनके जबरन एमआरआई, सीटी स्कैन, ब्लड टेस्ट आदि कराए जाते हैं, जो कई बार अनिवार्य भी नहीं होते हैं। 


कई बार मामूली समस्याओं को जटिल बताकर ऑपरेशन करने का भी दबाव डाला जाता है। याद रखें कि स्वास्थ्य सेवा व्यापार नहीं, जन हितैषी सेवा है। वक्त आ गया है कि स्वास्थ्य सेवा को शोषण नहीं, सेवा एवं सहयोग का माध्यम बनाया जाए ताकि सर्वे संतु निरामया: की भावना की सर्वोच्चता बरकरार रहे। बहरहाल, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार जरूरी है।

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