विकास के नाम पर खिलवाड़
 इलमा अज़ीम 

21 सदी में दुनिया भर के विकसित व विकासशील देशों के हुक्मरान व लोग तो कम से कम यह अच्छे से जानते हैं कि प्रकृति से किसी भी प्रकार का खिलवाड़ करना धरती पर जीवन के लिए बेहद घातक है और ऐसा करने से भविष्य में बेहद भयावह परिणाम से पृथ्वी वासियों को रूबरू होना पड़ सकता है। लेकिन फिर भी दुनिया के ताकतवर लोगों की यह जमात ही विकास के नाम पर भयावह विनाश की नींव रखने का कार्य अपने ही हाथों से करने का काम कर रही है। 
आलम यह हो गया है कि विकास के नाम पर दुनिया भर में चल रही अंधी दौड़ जल, थल व वायु में उपस्थित सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों आदि के जीवन पर अब भारी पड़ने लगी है। जिस तरह से हमने भूजल का अंधाधुंध दोहन करते हुए उसको प्रदूषित करने का कार्य किया है, उसके चलते ही स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति आज एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है। आज जिस तरह से हम अपने आर्थिक हितों व जरूरतों को साधने के लिए प्रथ्वी के गर्भ में छिपी अथाह प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन करके धरती को खोखला कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है। भूजल को रीचार्ज करने वाले स्रोतों पर कब्जा करके कंक्रीट का जाल बनने से तेज़ी गिरता भूजल का स्तर एक नयी चुनौती है। जिस तरह से हमने वायु प्रदूषण, हवाई यातायात व अन्य कारकों से आसमान को छलनी करने का कार्य किया है, उससे उत्पन्न स्थिति की भरपाई लोगों व जीव-जंतुओं को अपना अनमोल जीवन देकर करनी पड़ रही है। 


लेकिन विचारणीय तथ्य यह है हम फिर भी नहीं सुधरने का नाम ले रहे हैं। दुनिया भर में प्लास्टिक का कचरा, लोहे का कचरा, मेडिकल कचरा, ई कचरा, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का कचरा, टू व फोर-व्हीलर वाहनों का कचरा, विभिन्न प्रकार के केमिकलों का कचरा, परमाणु पदार्थों का कचरा आदि ने हमारे चारों तरफ की स्वच्छ प्राकृतिक आबोहवा को प्रदूषित करते हुए प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाने का कार्य किया है। प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की रही-सही कसर दुनिया में चल रही हथियार बनाने की होड़ व युद्ध पूरी कर रहे हैं। देश में सूखा, सुनामी, वनों के कटान से दमघोंटू प्रदूषण व वनों में आग लगने की घटनाएं आम होती जा रही हैं।


 हालांकि देश में जिस तेजी के साथ हम घर, घेर, खेत, खलिहानों, वन क्षेत्रों आदि से वृक्षों को काट करके कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं, वह प्रकृति से खिलवाड़ का एक सबसे बड़ा उदाहरण है। जिस तरह से हम विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करने में लगे हैं, वह चिंतित करने वाला है। हमें समय रहते प्रकृति के द्वारा दिए जा रहे बार-बार के चेतावनी के संकेतों का समझना चाहिए। देश 140 करोड़ लोगों के जीवन की सुरक्षा की खातिर अब हमें नियमित रूप से प्रकृति के संरक्षण के लिए धरातल पर कार्य करने के लिए एक ठोस रूपरेखा बनानी चाहिए, तब ही भविष्य में स्थिति सामान्य रह सकती है। 


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