आज के दौर में हमें साहित्य के मानक बदलने होंगे : डॉ. तकी आबिदी

जो लोग बाल साहित्य पर काम कर रहे हैं, वे निश्चित रूप से बहुत अच्छा काम कर रहे हैं : फारूक सैयद

21वीं सदी में नए चलन और नई तकनीक पर आधारित कहानियां लिखें : डॉ. रौनक जमाल

बाल साहित्य लेखकों को विश्वसनीयता और सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता : सिराज अजीम

उर्दू विभाग ने "उर्दू में बाल साहित्य: परंपरा और मुद्दे" विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया

मेरठ ।इकबाल की सबसे अच्छी प्रार्थना "बच्चों की कविता" है। इकबाल ने 1906 में तेरह कविताएँ लिखीं, जो बच्चों की नैतिकता और चरित्र को लेकर लिखी गईं। हाली ने भी बच्चों पर चौदह कविताएँ लिखीं। बाल साहित्य पर एम.फिल और पीएचडी की जा रही हैं, लेकिन उनके साहित्य पर कोई सेमिनार, किताबें या लेख आदि नहीं लिखे जाते हैं। आज के दौर में हमें साहित्य के मानक बदलने होंगे। यह शब्द थे प्रख्यात आलोचक डॉ. तकी आबिदी [कनाडा] के, जो आयुसा एवं उर्दू विभाग द्वारा आयोजित “उर्दू में बाल साहित्य: परंपरा एवं मुद्दे” विषय पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि उर्दू पर रोना रोने के बजाय हमें साहित्य पर काम करना होगा। हमें उर्दू को 21वीं सदी की तकनीक से जोड़ना होगा।

 कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से हुई।अध्यक्षता प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम की रही। मुख्य अतिथि 'गुलबूटे' के संपादक फारूक सैयद थे, तथा विशिष्ट अतिथियों में प्रसिद्ध कहानीकार डॉ. रौनक जमाल(दुर्ग), डॉ. अता आबिदी (बिहार)और सिराज अजीम(दिल्ली)शामिल थे। कार्यक्रम में लखनऊ से आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन विशेष वक्ता के रूप में उपस्थित थीं। जबकि डॉ. शादाब अलीम ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण मुहम्मद नदीम ने, धन्यवाद ज्ञापन सरताज जहां ने और संचालन शोध छात्र शाहे ज़मन ने किया। विषय प्रवेश कराते हुए डॉ. इरशाद स्यानवी ने कहा कि समाज का निर्माण और विकास इस बात पर भी निर्भर करता है कि बच्चे कैसे सपने देखते हैं, किन चीजों के बारे में सोचते हैं और किन चीजों से प्रभावित होते हैं। इस विषय पर सैकड़ों लेखकों और साहित्य समीक्षकों ने लेख लिखे हैं, लेकिन यह भी सच है कि बाल साहित्य को लेकर अभी तक बहुत अधिक काम नहीं हुआ है। इस अवसर पर प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि आज भी बहुत से लोग बच्चों की कहानियां लिख रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आज का कार्यक्रम बाल साहित्य में चार चांद लगाएगा। आज के बच्चों को फिल्मों और टीवी की कहानियां पसंद नहीं आती, जबकि उन्हें साहित्यिक कहानियां देखना पसंद है।  आज बाल साहित्य पर बहुत कम लिखा जा रहा है, हालांकि यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस विषय पर बहुत शोध हो रहा है, लेकिन मेरे हिसाब से अभी बहुत शोध होना बाकी है। डॉ. अता आबिदी ने कहा कि उर्दू में बाल साहित्य में परंपरा की बजाय समस्याओं पर विचार करना चाहिए। बच्चों से सभी प्यार करते हैं, लेकिन लोग बाल साहित्य पर बहुत कम ध्यान देते हैं। हर कोई चाहता है कि हमारे बच्चे सबके लिए आदर्श बनें। बहुत से लेखक बाल साहित्य लिखकर वयस्कों की कतार में आ गए हैं और जो लोग साहित्य लिख रहे हैं, उनमें बाल साहित्य की स्थिति बहुत नाजुक है और इतिहास में बाल साहित्य पर चर्चा न होना हमें निराश करता है। सिराज अज़ीम ने कहा कि कोई भी प्रोफेसर बच्चों के साहित्य पर उतना ध्यान नहीं देता जितना देना चाहिए और जो लोग बच्चों का साहित्य लिखते हैं उन्हें विश्वसनीयता और सम्मान की नज़र से नहीं देखा जाता। अगर हम बच्चों के बारे में नहीं लिखेंगे तो हम महान लेखकों और महान कवियों को कैसे जानेंगे? बच्चों के साहित्य की आलोचना भी होनी चाहिए। इस अवसर पर डॉ. शादाब अलीम ने अपने शोधपत्र में कहा कि इस्माइल मेरठी ने बच्चों के साहित्य के लिए बहुत ही मानक और नायाब काम किया है। उन्होंने अपनी कविताओं में बच्चों को उच्च नैतिकता की शिक्षा दी, वहीं उन्होंने बच्चों को वैज्ञानिक और भौगोलिक तथ्यों से अवगत कराने का कर्तव्य भी निभाया। इसके अलावा मौलाना ने अस्तित्व के लिए संघर्ष यानी डर के दर्शन को भी खूबसूरती से रचा। डॉ. रौनक जमाल ने कहा कि बच्चों का साहित्य उच्च साहित्य की नींव है। दुनिया आज एक वैश्विक गांव बन गई है। आज के बच्चे आज के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई कहानियां पढ़ना चाहते हैं। आज के बच्चे वैज्ञानिक साहित्य पर कहानियां पढ़ना चाहते हैं। आज ऐसी दादी-नानी नहीं हैं जो बच्चों की रुचियों पर आधारित कहानियां सुनाएं, बल्कि वे विज्ञान और तकनीक पर आधारित कहानियां लिखकर उन्हें सुनाती हैं। आज की जरूरत है कि हम 21वीं सदी में नए चलन और नई तकनीक पर आधारित कहानियां लिखें। मुख्य अतिथि फारूक सैयद ने कहा कि भारत में करीब बीस अकादमियां और करीब सौ से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं, लेकिन उनमें बाल साहित्य कहीं नजर नहीं आता। जो लोग बाल साहित्य पर काम कर रहे हैं, वे निश्चित रूप से बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और इस समय भारत में करीब ढाई सौ ऐसे लेखक हैं। बाल साहित्य के लिए कोई बजट नहीं है। प्रोफेसर रेशमा परवीन ने कहा कि इकबाल और इस्माइल मेरठी की कविताओं ने हमारी शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आज हमारे बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन है जो बहुत हानिकारक है, हालांकि हमारी नींव बाल साहित्य है। हमें न केवल इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा बल्कि बच्चों की रुचि वाले साहित्य का निर्माण भी करना होगा और आज की स्थिति में यह बहुत आवश्यक हो गया है। अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम ने कहा कि खुशहाल जैदी ने घर-घर जाकर बाल साहित्य से संबंधित पुस्तकें वितरित कीं। इस्माइल मेरठी ने बच्चों को लेकर बहुत काम किया। यूपी में बच्चों को लेकर बहुत महत्वपूर्ण काम हुए हैं। “गुल बूटे” ने भी बहुत अच्छी सेवाएं की हैं। आज के बच्चों के दिलों में कहानियों के प्रति रुचि क्यों नहीं पैदा हो रही है, हमें इसका न केवल कारण ढूंढना होगा बल्कि विशेषज्ञों के माध्यम से इसका समाधान भी निकालना होगा। कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. अलका वशिष्ठ, मुहम्मद शमशाद, फरहत अख्तर और छात्र जुड़े रहे।


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