विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (31 मई) पर विशेष

युवाओं को नशे की लत से बचाकर मुख्यधारा से जोड़ना जरूरी : मुकेश शर्मा  

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर असर डाल रही तम्बाकू को छोड़ने में ही हर किसी की भलाई

लखनऊ। तम्बाकू का किसी भी रूप में इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए बहुत ही नुकसानदेह है। छोटी उम्र में ही बच्चे आस-पास के लोगों को देखकर बीड़ी-सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू (खैनी) का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं। यही शुरुआत उनको नशे की लत की ओर धकेलती है। आज खासकर युवाओं को सचेत होने की जरूरत है कि झूठी शान के लिए सिगरेट का छल्ला उड़ाना उनको अँधेरे कुँए की ओर ले जाता है, जिससे निकल पाना बहुत ही कठिन है।

 पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुकेश शर्मा का कहना है कि युवाओं के जीवन में जागरूकता की रोशनी फैलाते हुए उनको नशे की लत से मुक्ति दिलाकर देश की मुख्यधारा से जोड़ना बहुत जरूरी है ताकि वह देश की समृद्धि में सहायक बन सकें और स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकें। इसी को ध्यान में रखते हुए हर साल 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है, जिसका मूल मकसद हर वर्ग में जागरूकता की अलख जगाते हुए लोगों को नशे की काली कोठरी से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना है। इस बार इस खास दिवस की थीम- “अपील का पर्दाफाश : तम्बाकू और निकोटीन उत्पादों पर उद्योग की रणनीति को उजागर करना” तय की गयी है। यह थीम उन रणनीतियों को उजागर करने की ओर ध्यान खींचती है जो तम्बाकू और निकोटिन उद्योग हानिकारक तम्बाकू उत्पादों को आकर्षक बनाने के लिए उपयोग करते हैं। 

 तम्बाकू उत्पादों में खासकर धूम्रपान शरीर के करीब हर अंग पर घातक असर डालता है। बीड़ी-सिगरेट का धुँआ फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी बीमारियों को जन्म देता है जो कि व्यक्ति की जमा-पूँजी को इलाज पर खर्च करने पर मजबूर करता है। बीड़ी-सिगरेट का धुंआ शरीर की रक्त वाहिकाओं को संकुचित करते हुए रक्त प्रवाह को भी बाधित करता है। इस कारण लोगों को अस्थमा और क्रानिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी गंभीर बीमारियाँ घेर लेती हैं। इतना ही नहीं यह धुआं हड्डियों, दांतों, मसूड़ों और आँखों को भी नुकसान पहुंचाता है। यह भी जानना जरूरी है कि बीड़ी या सिगरेट का धुआं केवल पीने वालों को ही नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि आस-पास रहने वालों को भी परोक्ष रूप से अपनी चपेट में ले लेता है। धूम्रपान करने वालों के फेफडे़ में महज 30 प्रतिशत धुंआ जाता है और आस-पास के वातावरण में 70 प्रतिशत धुंआ रह जाता है। इस धुंए से परिवार के लोग और विशेषकर बच्चे प्रभावित होते हैं। इस परोक्ष धूम्रपान से यदि गर्भवती महिला प्रभावित होती है तो इसके गर्भ में पल रहे शिशु का विकास तक प्रभावित हो सकता है तथा गर्भ के अन्दर शिशु की मृत्यु भी हो सकती है। श्री शर्मा का कहना है कि आज के इस खास दिन पर हर किसी को बीडी-सिगरेट व तम्बाकू न सेवन करने की शपथ लेने की जरूरत है ताकि स्वस्थ भारत का निर्माण किया जा सके। तम्बाकू उत्पादों से मुक्ति पाने का सबसे आसान तरीका है कि अपना ध्यान योग, प्राणायाम या अपनी अन्य पसंदीदा चीजों में लगाएं ताकि बुरी लत से ध्यान हट सके।

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