डोल का बाढ़: पिंक सिटी की शान पर आफत की बाढ़!
- डॉ. ओ.पी.चौधरी
भारतवर्ष भौगोलिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही अदभुत देश है, जहां विभिन्न धर्मों, भाषा-भाषी, रीति-रिवाज, परंपराओं, रहन-सहन, जीवन शैली के लोग भारतीयता के सूत्र में एक होकर निवास करते हैं। मौसम और जलवायु की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, यहां ऋतुओं के अनुसार मौसम में परिवर्तन होता रहता है। जंगल, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, वनस्पतियां, जलवायु भी अपनी एक विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां हम वीरों की धरती राजस्थान की बात करना चाह रहे हैं, जहां शूरवीर महाराणा प्रताप, चेतक और पन्ना धाय की वीरगाथा सभी के जुबान पर है।
पर्यावरण के लिए राजस्थान के विश्नोई समाज का बलिदान सभी जानते हैं। उसी में भारत का गुलाबी शहर जयपुर अपना एक अलग मिजाज रखता है।आजकल पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। वजह है जयपुर के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित *डोल का बाढ़* जो एक महत्वपूर्ण शहरी वन क्षेत्र है, जो शहर के तापमान को नियंत्रित करने, जैव विविधता को संरक्षित रखने और स्थानीय लोगों को शुद्ध हवा प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है।यह लगभग 100-105 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें बहुत अधिक पेड़ हैं,तरह-तरह की वनस्पतियां हैं,अनेक पक्षी प्रजातियां और जैव विविधता है।
इस क्षेत्र में लगभग 2400 से भी अधिक पेड़ हैं जो 30 विभिन्न प्रजातियों से संबंधित हैं, जिनमें पीपल ,केवड़ा, खेजड़ी और अन्य वृक्ष शामिल हैं। इस वन क्षेत्र में 60 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। डोल का बाढ़ में कई प्रकार के जंगली जानवर भी रहते हैं, जिनमें हिरण और खरगोश शामिल हैं। यह जयपुर का ऑक्सिजन बैंक है।
वर्तमान समय में राजस्थान सरकार और आरआईसीओ द्वारा इस वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक विकास परियोजनाओं की योजना बनाई जा रही है, जिसमें पीएम यूनिटी मॉल, एक फिनटेक पार्क और आवासीय परिसर शामिल हैं। इससे पर्यावरण और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है,क्या पर्यावरण प्रभावित होना निश्चित है।जयपुर में शुद्ध प्राण वायु का मिलना भी मुश्किल हो जाएगा।
वन को नष्ट कर अनेक प्रकार की वाणिज्यिक और आवासीय योजनाओं का निर्माण होने से स्थानीय पयार्वरण और जैव विविधता प्रभावित होगी जिससे एक बड़ा संकट भविष्य में उत्पन्न होगा।इसी को ध्यान में रखते हुये स्थानीय निवासी और पूरे देश के पर्यावरण कार्यकर्ता इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं ,और वन क्षेत्र को बचाने के लिए आंदोलन चला रहे हैं। उनका तर्क है कि इस वन क्षेत्र को बचाना आवश्यक है क्योंकि यह शहर के पर्यावरण और जलवायु को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डोल का बाढ़ का वन क्षेत्र बचाने के लिए आने वाले दिनों में एक बड़ा आंदोलन हो सकता है। पीपल नीम तुलसी अभियान पटना के संस्थापक और अध्यक्ष पर्यावरण पुरोधा डॉ. धर्मेन्द्र कुमार सभी पर्यावरण संरक्षण कर्ताओं का आह्वान कर रहे हैं कि जैसे बकस्वाहा जंगल बचाओ अभियान चलाकर उसे संरक्षित किया गया था, वैसे ही डोल के बाढ़ के लिए भी चरणबद्ध तरीके से आंदोलन करना होगा।
प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (रिटा.), मनोविज्ञान
श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज, वाराणसी।
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