डिजिटल दुनिया में भटकता बचपन

आज डिजिटल दुनिया में बचपन हैं भटक रहा,
पेरेंट्स को अनसुना कर गूगल संग मटक रहा।
बच्चे नई तकनीक से कदम से कदम मिला रहें,
रिश्ते-नाते संग यार-दोस्त सब बहुत दूर जा रहें।
सोशल मीडिया की गिरफ्त में खुद ही समा रहें,
एक ही कमरे में बैठकर नजरें भी ना मिला रहे।

आज डिजिटल दुनिया में बचपन हैं भटक रहा,
पेरेन्ट्स को अनसुना कर गूगल संग मटक रहा।
जिज्ञासु बच्चे अल्फा पीढ़ी के दुनिया में जी रहें,
वर्तमान में पर्व,रीति-रिवाज से अनभिज्ञ हो रहें।
ऑनलाइन पढ़ाई, शॉपिंग कर घर में वो सो रहें,
परिवेश और संस्कार बिन काम घर बैठे हो रहें।

आज डिजिटल दुनिया में बचपन हैं भटक रहा,
पेरेन्ट्स को अनसुना कर गूगल संग मटक रहा।
बच्चे घर और कक्षा में क्या? एक्टिविटी कर रहें,
मॉम-डैड मोबाइल से रील बनाकर मस्त हो रहें।
बच्चों को बचपन से हाथों में टेबलेट पकड़ा रहें,
समयाभाव में कार्टून फिल्म का चस्का लगा रहें।
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- संजय एम तराणेकर, इन्दौर।


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