2027 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी की नजर दलित वोट बैंक पर
दलित बुद्धिजीवियों से भाजपा का संवाद आरंभ
मेरठ। 2027 को प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव की तैयारी भाजपा ने आरंभ कर दी है। खिसकते दलित वोट बैंक को भाजपा के पाले में लाने के लिए भाजपा ने मेरठ समेत प्रदेश भर में दलित बुद्धिजीवी संवाद आरंभ किया है। यह कार्यक्रम पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा की अगुआई में शुरू किया जा रहा है। आने वाले दिनों में यह संवाद अभियान छात्रावासों तक पहुंचेगा, जहां एससी-एसटी छात्रों से संवाद किया जाएगा।
यूपी में दलित 21% हैं। पिछली बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोटों में 8.50% की गिरावट आई थी। इससे उसकी 26 सीटें घट गई थी। पार्टी को 41.37% ही वोट मिले थे। जबकि 2019 में भाजपा को 49.98% वोट मिले थे। ये गिरावट दलित वोटों के छिटकने से माना जाता है।भाजपा ने बाद में हुए उपचुनाव में काफी हद तक भरपाई की है। लेकिन, 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। इसकी वजह भी है, सपा भी दलित वोटों के लिए काफी प्रयास कर रही है। उधर, मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पद देकर अपने कोर वोटरों को एकजुट करने में जुट गई हैं।
यूपी को 6 हिस्सों में बांटकर होगा संवाद
भाजपा ने प्रदेश को 6 संगठनात्मक क्षेत्रोंपश्चिमी यूपी, काशी, गोरखपुर, अवध, कानपुर, और ब्रज और में बांटा है। हर क्षेत्र में पार्टी प्रभावशाली दलितों से संपर्क करेगी। इसके लिए एक समर्पित टीम बनाई गई है। जो शिक्षकों, रिटायर्ड अफसरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, धार्मिक और पेशेवर हस्तियों की पहचान कर रही है। सूत्र बताते हैं कि यह अभियान दरअसल विपक्षी दलों, खासतौर पर सपा, कांग्रेस और बीएसपी के प्रभाव को कमजोर करने की सधी हुई रणनीति का हिस्सा है।
सेमिनार के जरिए संवाद की धार तेज
पार्टी ने तय किया है कि अनुसूचित जातियों की आबादी वाले जिलों में 160 से ज्यादा सम्मेलन किए जाएंगे। इनमें भाजपा सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों का ब्योरा दिया जाएगा। प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह खुद कई जिलों का दौरा कर संवाद कार्यक्रम की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। दलित पदाधिकारियों को हिदायत दी गई है कि वे बूथ स्तर तक पहुंच बनाएं और विरोधी दलों के प्रोपेगंडा का जवाब दें।
मंडल स्तर पर सामाजिक समीकरणों का संतुलन
भाजपा ने 1918 मंडलों में 61 सदस्यीय कार्यसमितियों का गठन शुरू कर दिया है। हर समिति में 15 पदाधिकारी और 46 सदस्य होंगे। पार्टी का साफ निर्देश है कि इन समितियों में दलितों, महिलाओं और पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिले। यह कदम समाज के सभी वर्गों को एक साथ जोड़कर, भाजपा को एक सर्वसमावेशी पार्टी के रूप में प्रस्तुत करने की रणनीति का हिस्सा है।
लोकसभा 2024 में दलितों का झुकाव इंडी गठबंधन की ओर था
सीएस-डीएस के 2024 लोकसभा चुनाव-पश्चात सर्वे के मुताबिक, यूपी में इंडिया ब्लॉक ने गैर-जाटव दलितों का 56% और जाटवों का 25% समर्थन हासिल किया। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 50% तक दलित वोट मिला था। 2024 में भाजपा की कम सीटों की यही वजह रही। खासकर पश्चिमी यूपी, बुंदेलखंड और कानपुर क्षेत्रों में दलित वोटों का बिखराव भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
भाजपा का नया दलित नेतृत्व और जातिगत गणित
भाजपा अब सिर्फ गैर-जाटव दलितों तक सीमित नहीं रहना चाहती। पार्टी जाटव, पासी, कोरी, खटीक, वाल्मीकि, धनगर और अन्य दलित जातियों के बीच अलग-अलग नेताओं को उभारने की नीति पर काम कर रही है।जनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा का परंपरागत वोट बैंक अब अस्थिर हो चला है।
गैर-जाटव से जाटव तक की यात्रा
2014 से पहले भाजपा ने गैर-जाटव दलितों को साधने पर ज्यादा ध्यान दिया। पासी, कोरी, वाल्मीकि, खटीक जैसी जातियों के बीच भाजपा ने अपनी पहुंच बनाई और नतीजतन 2017 के विधानसभा चुनाव में एससी आरक्षित 84 में से 72 सीटें जीत लीं। लेकिन, 2024 में भाजपा को यूपी में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। खुद पार्टी बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई, जबकि विपक्षी गठबंधन ने “संविधान खतरे में है” का प्रचार कर दलित मतदाताओं को प्रभावी ढंग से साधा।
अब भाजपा पूरे दमखम से 2027 की तैयारी में जुटी है। संवाद, सम्मेलन, भागीदारी और भावनात्मक जुड़ाव के चार स्तरों पर काम चल रहा है। भाजपा की रणनीति का अगला फेज जाटव वोट बैंक में सेंध लगाने का है। अगर पार्टी इसमें आधी भी सफलता पा लेती है, तो यह उसे 2027 में बड़ा फायदा दे सकता है।
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