रंग लाए प्रयास, मेरठ के फुटबॉल उद्योग से खात्मे की ओर बाल मजदूरी
मेरठ। मेरठ में फुटबाल की सिलाई का उद्योग कभी बाल मजदूरी के लिए कुख्यात था लेकिन इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (आईसीपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार अब इस उद्योग में बाल मजदूरी खात्मे के कगार पर है। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ के 94 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उनके आस पड़ोस में फुटबाल की सिलाई करने वाली इकाइयों में बाल मजदूरी का एक भी मामला नहीं देखा गया। इससे संकेत मिलता है कि भारत के सबसे बड़े फुटबॉल निर्माण केंद्रों में से एक मेरठ के फुटबाल सिलाई उद्योग में बाल मजदूरी का अंत करीब है। अध्ययन में केवल 5 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने इन इकाइयों में बच्चों को मजदूरी करते हुए देखा है।
देश के 416 जिलों में जमीन पर काम कर रहे 200 से भी ज्यादा नागरिक समाज संगठनों के देशव्यापी नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) के सहयोगी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन ने यह शोध जेआरसी के सहयोगियों ग्रामीण समाज विकास केंद्र, जनहित फाउंडेशन और जिला युवा विकास संगठन की मदद से किया।
अध्ययन के निष्कर्षों का स्वागत करते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत ने कहा, कि यह हमारे लिए एक बेहद अहम उपलब्धि और मील का पत्थर है। फुटबॉल सिलाई उद्योग से बाल श्रम लगभग समाप्त होने के कगार पर है और यह सफलता सरकारों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और इस अपराध के खिलाफ एकजुट हितधारकों के सामूहिक प्रयासों से संभव हुई है। अब हमें इस गति को बनाए रखते हुए इस सफलता को अन्य उद्योगों में दोहराना है। हमारा लक्ष्य तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक देश का हर उद्योग, हर दुकान और हर बाजार बाल श्रम से मुक्त नहीं हो जाता। यह एक अपराध है, और हम सब मिलकर इसे समाप्त करके ही रहेंगे।
रिपोर्ट के निष्कर्षों की चर्चा करते हुए गैरसरकारी संगठन जनहित फाउंडेशन की निदेशिका श्रीमति अनिता राणा ने कहा, कि जो भी बाल श्रम और बच्चों की ट्रैफिकिंग की रोकथाम के लिए जमीन पर काम कर रहे हैं, इस रिपोर्ट के निष्कर्ष उन सभी का मनोबल और उत्साह बढ़ाने वाले हैं। हम देशभर में अपने साझेदारों के साथ मिलकर बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं, और बाल श्रम बच्चों के खिलाफ सबसे गंभीर अपराधों में से एक है। हमारे प्रयास अब रंग ला रहे हैं, और हम इस क्षेत्र को जल्द ही बाल श्रम से मुक्त कराने के कगार पर हैं। हमें पूरा विश्वास है कि सभी के सहयोग और प्रतिबद्धता से फुटबॉल सिलाई इकाइयों से जो शुरुआत हुई है, वह जल्द ही अन्य उद्योगों में भी दिखाई देगी।
बाल श्रम की स्थिति के आकलन के लिए जिले में उन क्षेत्रों की पहचान की गई जहां फुटबॉल सिलाई की इकाइयां ज्यादा हैं। इसका उद्देश्य कम से कम 7-8 अलग-अलग इलाकों का चयन करना था। इसके बाद इलाकों के दौरे किए गए और स्थानीय हितधारकों से विचार-विमर्श किया गया। स्थानीय निवासियों और सामुदायिक नेताओं से सीधे संवाद के माध्यम से अतिरिक्त जानकारियां जुटाई गईं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फुटबॉल निर्माण उद्योग की वास्तविक स्थिति हर कोण से इस अध्ययन में प्रकट हो सके।
बताते चलें कि भारत के फुटबॉल सिलाई उद्योग में बाल मजदूरी लंबे समय से चिंता का विषय रही है। 1990 के दशक के अंत और 2000 के शुरुआती वर्षों की रिपोर्टों में खास तौर से उत्तर प्रदेश के मेरठ और पंजाब के जलंधर में इस उद्योग में बड़े पैमाने पर बच्चों के शोषण की खबरें सामने आई थीं। 2008 के एक अध्ययन में मेरठ में फुटबॉल सिलाई से जुड़े कार्यों में बड़े पैमाने पर बाल श्रम और बच्चों के शोषण को उजागर करते हुए कहा गया था कि इसमें काम कर रहे बच्चों को कठिन परिस्थितियों में दिन-रात खटाया जाता था।
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