भारत की टैरिफ कूटनीति के लाभ
- डॉ. जयंतीलाल भंडारी
यकीनन इस समय टैरिफ वॉर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति और अमेरिका के लिए शुल्कों में कमी की रणनीति रंग लाते हुए दिखाई दे रही है। 9 अप्रैल को अमेरिका के ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पूरी दुनिया में भारत एक ऐसे पहले देश के रूप में सामने आया है, जो अमेरिका के साथ सबसे पहले टैरिफ पर प्रभावी बातचीत करते हुए दिखाई दे रहा है। वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी की टैरिफ कूटनीति के लाभ उभरकर दिखाई दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जहां अमेरिका के द्वारा चीन पर 145 फीसदी रेसिप्रोकल टैरिफ लागू कर दिया गया है, वहीं अमेरिका पर जवाबी टैरिफ नहीं लगाने वाले भारत सहित सभी देशों के लिए 90 दिनों तक टैरिफ के अमल को स्थगित कर दिया है।

 ट्रंप के इस निर्णय के बाद चीन ने अमेरिका पर 125 फीसदी टैरिफ लगा दिया है। इससे अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध शुरू हो गया है। ट्रंप के इस ऐलान के बाद भारतीय निर्यात पर मंडरा रही अनिश्चितता फिलहाल रुक गई है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के द्वारा विभिन्न देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू किए जाने के बाद नई व्यापार दुनिया ने जन्म ले लिया है। यह नई व्यापार दुनिया राष्ट्रपति ट्रंप की उस हठ पर आधारित है जिसमें वे विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन और अमेरिका के साथ कथित आर्थिक दुव्र्यवहार को रोकने के लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था और उपभोक्ताओं को होने वाले किसी भी तरह के कष्ट की अनदेखी करने को भी तैयार हैं।



नई व्यापार दुनिया पहले की व्यापार दुनिया से पूरी तरह से अलग है। कल तक दुनिया में मजबूत आर्थिक विश्व व्यवस्था और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के आधार पर विकास की कहानी आगे बढ़ती रही है, वहीं अब संरक्षणवाद तथा द्विपक्षीय और मुक्त व्यापार समझौतों का नया सितारा उदित हो रहा है। ऐसे में भारत को अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों और दुनिया की बदलती आर्थिक सूरत की नई हकीकत के मद्देनजर नई रणनीति के साथ आगे बढऩा होगा। गौरतलब है कि ट्रंप के द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लागू किया गया है। ट्रंप का टैरिफ वियतनाम पर 46 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत तथा थाइलैंड पर 36 प्रतिशत सुनिश्चित किया गया है।


वित्त वर्ष 2023-24 में भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 फीसदी रही, जो करीब 77.5 अरब डॉलर थी, निर्यात की ऐसी ऊंचाई अमेरिका को भारत का बड़ा व्यापारिक साझेदार बनाती है। ट्रंप के टैरिफ से भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। इनमें आईटी, टेक्सटाइल और परिधान, ऑटोमोबाइल पाट्र्स, रत्न और आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स, कृषि उत्पाद शामिल हैं। भारत के दवा और सेमीकंडक्टर उद्योग पर भी टैरिफ की तलवार लटक रही है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर 26 फीसदी पारस्परिक टैरिफ लगाने के अमेरिकी फैसले से भारत के द्वारा अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात में करीब 5.76 अरब डॉलर की गिरावट आ सकती है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब 0.2 फीसदी घटने की आशंका रहेगी। खास बात यह भी है कि ट्रंप के टैरिफ की आपदा के बीच भारत के लिए मौके भी छिपे हैं। जहां अमेरिका के द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ दूसरे कई प्रतिस्पर्धी देशों से कम होने से अमेरिका सहित दुनिया में भारत के निर्यात बढऩे की संभावना है।

भारत जिस तरह से अमेरिका के साथ नए व्यापार समझौते के लिए तथा अन्य देशों के साथ भारत द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के लिए रणनीतिपूर्वक कदम बढ़ा रहा है, उससे भारत के लिए अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न देशों में निर्यात और कारोबार बढ़ाने के मौके भी बढ़ सकते हैं। चूंकि एशिया के उभरते बाजारों में भारत पर टैरिफ फिलीपींस को छोडक़र सबसे कम है, ऐसे में तुलनात्मक रूप से कम टैरिफ से भारत को वैश्विक व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में अमेरिकी बाजार में भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा मजबूत होगी।

प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यातक देशों की तुलना में भारत पर कम टैरिफ लगा है। खास तौर पर चीन और वियतनाम के मुकाबले भारत बेहतर स्थिति में है। टेक्सटाइल के निर्यात बाजार में अभी से भी बेहतर अवसर मिल सकते हैं। अन्य देशों के सामान अमेरिका में ज्यादा महंगे होने से अमेरिका में भी भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ेगी। टैरिफ की चुनौतियों के बीच भी भारत की विकास दर बढऩे की संभावनाएं हैं। हाल ही में प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट के मुताबिक टैरिफ चुनौतियों के बीच भी चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहेगी और यह स्थिति अर्थव्यवस्था के मजबूत और स्थिर विस्तार का संकेत देती है। साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनी रहेगी। यद्यपि भारत में सरकार ने संसद में ट्रंप की नई टैरिफ नीति के मद्देनजर घरेलू उद्योगों के संरक्षण की बात कही है, लेकिन अब देश के उद्योग जगत के द्वारा टैरिफ संरक्षण की बजाय वैश्विक प्रतिस्पर्धा व अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) पर ध्यान दिया जाना होगा।
इस बात को ध्यान में रखना होगा कि वर्ष 1991 में उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ाने की जो रणनीति लागू हुई, उससे देश को उदारीकरण के लाभ मिले हैं। चूंकि टैरिफ प्रतिस्पर्धा से जुड़े हैं, अगर हम टैरिफ की आड़ में रहेंगे तो प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाएंगे। नए अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए भारत को कारोबार करने में आसानी बढ़ानी होगी। लॉजिस्टिक्स व बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा और नीतिगत स्थिरता कायम रखनी होगी।

हम उम्मीद करें कि अमेरिका के द्वारा चीन पर लागू किए गए 145 फीसदी टैरिफ से शुरू हुए अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बीच वैश्विक आर्थिक मौकों को मुठ्ठी में लेने के साथ-साथ भारत पर लागू किए जाने वाले 26 फीसदी टैरिफ की चुनौती का मुकाबला करने में भारत के लिए अमेरिका के साथ नया कारोबार समझौता, विभिन्न देशों के साथ नए द्विपक्षीय और मुक्त व्यापार समझौते और मजबूत घरेलू आर्थिक घटक असरकारक आर्थिक हथियार के रूप में उपयोगिता देते हुए दिखाई देंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार नई व्यापार दुनिया में भारत को रचनात्मक देश बनाने के लिए ऐसी नई आर्थिक रणनीति के साथ आगे बढ़ेगी, जिसमें बड़े-बड़े उद्योगों के साथ सूक्ष्म, छोटे और मझौले उद्योगों के लिए भी अनुकूलताएं हों। चूंकि अब दुनिया में नए डिजिटल दौर की नई संपत्तियों से विकास की मंजिलें तय होंगी, अतएव ऐसी सबसे कीमती संपत्तियों के विकास पर भारत को ध्यान देना होगा।


अब भारत में भारी पूंजी वाले उद्योगों को सबसिडी देने के बजाय शिक्षा और कौशल विकास पर अधिक निवेश किया जाना अधिक लाभप्रद होगा। भारत को सेवा क्षेत्र की नई चमकीली राजधानी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना होगा। साथ ही भारत को अधिक डिजिटल महारत हासिल करने पर ध्यान देना होगा। निश्चित रूप से ऐसी नई आर्थिक और द्विपक्षीय वैश्विक व्यापार रणनीति से भारत नई व्यापार दुनिया के आकाश में एक चमकते हुए आर्थिक और प्रभावी सितारे के रूप में दिखाई दे सकेगा।

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