शिक्षित बेरोजगारी
इलमा अज़ीम
भारत में शिक्षित बेरोजगारी एक गंभीर समस्या के रूप में उभरी है, जिसमें पढ़े-लिखे एवं उच्च शिक्षित युवा भी नौकरी पाने को दर-दर भटक रहे हैं। 'अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन' की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत मे शिक्षित बेरोजगारों की संख्या 65.7 प्रतिशत हो चुकी है। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय युवाओं, जिन्होंने ग्रेजुएशन कर लिया हैं, इनमें बेरोजगारी सबसे गंभीर समस्या बन चुकी है, और जो लगातार बढ़ रही है।
'इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024' के मुताबिक, देश में काम की तलाश कर रहे कुल बेरोजगारों में करीब 66 प्रतिशत तो शिक्षित युवा हैं, यानी पढ़े-लिखे होने के बावजूद उनके पास रोजगार नहीं है। देश मे बेरोजगारी हमेशा से सबसे बड़ा राजनीति मुद्दा रहा है। चुनाव के समय बड़े दल के नेता देश मे रोजगार पैदा करने और गरीबी दूर करने के बड़े बड़े वादे करते हैं। लेकिन चुनाव बाद भी समस्या जस की तस रह जाती है, और बढ़ रही शिक्षित बेरोजगारों की जनसंख्या को देख कर रोजगार के वादे खोखले नजर आते है।
देश में स्नातक पास युवाओं में बेरोजगारी का एक मुख्य कारण है, संचार समाधान जैसी तकनीक का ज्ञान न होना और टीम वर्क की योग्यता न रखना है। आधुनिक टेक्नोलॉजी विकास के अनुरूप शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता न होना भी डिग्रीधारी बेरोजगारी का कारण है। प्रौद्योगिक विकास के क्षेत्र में रोजगार अवसर की कमी एवं तेजी से बढ़ती जनसंख्या भी शिक्षित बेरोजगारी का मुख्य कारण है।
देश में सरकारी नौकरियों के लिए हर एग्जाम में हजार पदों की वेकैंसी पर लाखों युवा परीक्षा देते है, इससे ही देश में व्याप्त बेरोजगारी का अंदाज लगाया जा सकते है। आज देश में पढ़े लिखे युवा चाट कचौरी के ढेले लगाने और रिक्शा या ऑटो चलाने को मजबूर है। देश में शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के लिए आर्थिक विकास की गति तेज करनी होगी। वर्तमान परिवेश की माँग के अनुसार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं प्रशिक्षण को बढ़ावा देना होगा। घरेलू उद्योग धंधे तथा नए उद्योगों के विकास पर अधिक ध्यान देना होगा। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए सरकार को स्वरोजगार स्कीम के तहत ऋण देने में लचीलापन रखना चाहिए।
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