समानता ही नहीं सामाजिक न्याय के पुरोधा थे अंबेडकर: टीवी पैनलिस्ट सतीश प्रकाश 

अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की जिंदा मिसाल थे अंबेडकर: प्रो मनोज रावत 

मेरठ। भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष में मेरठ कॉलेज के ऐतिहासिक सभागार में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध टीवी पैनलिस्ट डॉ सतीश प्रकाश। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ मनोज रावत ने एवं कार्यक्रम का संचालन डॉ रेखा राणा ने किया। 

संगोष्ठी का विषय था हमारा संविधान हमारा स्वाभिमान। डॉ सतीश प्रकाश ने अपने भाषण में कहा कि भारत का संविधान केवल एक विधिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह भारत के करोड़ों नागरिकों की आशाओं, आकांक्षाओं और स्वाभिमान का प्रतीक है। इसका निर्माण स्वतंत्रता संग्राम के बाद एक ऐसे समाज की परिकल्पना के तहत हुआ, जहां सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय मिले। इस महान दस्तावेज के शिल्पकार, डॉ. भीमराव अंबेडकर, ने न केवल संविधान निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाई, बल्कि उन्होंने सामाजिक न्याय की भावना को संविधान की आत्मा बनाया। डॉ. अंबेडकर का जीवन स्वयं सामाजिक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की मिसाल रहा है। एक दलित परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें बचपन से ही सामाजिक भेदभाव और छुआछूत का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया और दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर यह स्पष्ट रूप से समझ लिया था कि भारत को एक सशक्त और समतामूलक राष्ट्र बनाने के लिए सामाजिक न्याय अनिवार्य है।

 कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मेरठ कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर मनोज रावत ने बताया कि संविधान निर्माण के दौरान डॉ. अंबेडकर ने इस बात पर विशेष बल दिया कि समाज के वंचित, शोषित और कमजोर वर्गों को समान अवसर प्रदान किए जाएं। उन्होंने अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करके उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। यह केवल एक नीति नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सोच थी, जो वर्षों से चले आ रहे जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक मजबूत कदम था। संविधान में निहित मौलिक अधिकार, जैसे समानता का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विधिक संरक्षण, सभी नागरिकों को आत्मसम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार प्रदान करते हैं। ये अधिकार न केवल व्यक्तियों की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं, बल्कि सामाजिक विषमताओं को दूर करने में भी सहायक हैं। आज जब हम “हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान” कहते हैं, तो यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि हमारी संवैधानिक चेतना का उद्घोष है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत का संविधान हर नागरिक को बराबरी का हक देता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग या लिंग से संबंधित हो। यह हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है और इसे बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। 

मेरठ कॉलेज के मंत्री विवेक कुमार गर्ग ने अपने संदेश में कहा कि डॉ अंबेडकर ने एक बार कहा था कि संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं है, यह जीवंत है, यह विचारों का एक माध्यम है। उनका यह कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है। जब हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम केवल नीतियों पर ही न रुकें, बल्कि अपने व्यवहार में भी समानता और न्याय को स्थान दें। सभागार को संबोधित करते हुए विधि विभाग के एमपी वर्मा ने बताया कि आज भी समाज में जातिवाद, भेदभाव और असमानता जैसी चुनौतियां मौजूद हैं। ऐसे में संविधान की शिक्षाओं और अंबेडकर के विचारों को समझना और अपनाना पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है। सामाजिक न्याय तभी संभव है जब हम हर व्यक्ति को एक समान दृष्टि से देखें और उसे अपने अधिकारों का वास्तविक लाभ मिले। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रो नीरज कुमार, प्रो अनीता मलिक, प्रो चंद्रशेखर भारद्वाज, डॉ अवधेश कुमार, डॉ वीरेंद्र सिंह, डॉ अशोक शर्मा, डॉ सचिन, डॉ अनुराधा डॉ अनिल राठी, डॉ हरजिंदर एवं विक्रांत आदि ने विशेष सहयोग दिया।

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