समाज को आईना दिखाता है डा.अंबेडकर जीवन दर्शन

- जगतपाल सिंह
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन दर्शन समाज  को एक ऐसा आईना दिखाता है जिसमें दलित, शोषित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और समाज के कमजोर लोगों को उनकी प्रगति और उत्थान का रास्ता दिखता है। डॉ. अंबेडकर ने  समाज को महत्वपूर्ण सूत्र दिया शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो इस सूत्र को जीवन में जिसने अपनाया उस घर, परिवार, समाज का उत्थान हो गया।
यह कहना न्याय संगत होगा कि एक ऐसा विद्वान जिसने अपने संघर्ष से देश में ही नहीं विदेश में भी भारतीयों को सम्मान दिलाया उदाहरण है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 125वी जयंती पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के तीन सौ वर्ष के इतिहास में शिक्षा लेने वाले छात्रों के ऊपर सर्वे कराया गया कि शिक्षा के उच्चतम स्थान पर सबसे योग्य छात्र कौन रहा डॉक्टर बीआर अंबेडकर को प्रथम स्थान दिया गया। और उनकी कांस्य प्रतिमा कोलंबिया विश्वविद्यालय के गेट पर  लगाई गई जो वहां भी प्रेरणा दे रही हैऔर यह हम सब भारतीयों के लिए गौरव की बात है।
 यही नहीं दो वर्ष पूर्व कनाडा सरकार ने भी डॉ. बी आर अंबेडकर जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करके देश को सम्मान दिया। डॉ भीमराव अंबेडकर ने साधारण से असाधारण व्यक्ति होने का सफर अपने संघर्ष और योग्यता से  पूरा करके समाज को आईना दिखाया। उनके द्वारा जीवन पर्यंत लिखी गई दास्तान दलितों, शोषितों, पिछड़ों, कमजोरों को प्रेरणा दे रही है और अंधकार से उजाले की ओर ले जाने का रास्ता दिखाती है। सवाल यह उठता है कि क्या बाबा साहब के द्वारा बताए गए मार्ग पर समाज चल रहा है? यह एक सोचनीय और चिंतनीय प्रश्न भारतीय समाज में बना हुआ है क्योंकि आज देखने को मिल रहा है कि भारतीय राजनीति में डॉ भीमराव अंबेडकर को राजनीतिक पार्टियों ने वोट का हथियार बनाकर अपनी राजनीति चलाने का माध्यम बना लिया है। इसमें राजनीतिज्ञ लोग नहीं समाज का वह वर्ग भी आगे है जो बाबा साहब के नाम से लाभ लेकर स्वयं  आगे  बढ़ गया लेकिन उसने बाबा साहब के मिशन को आगे नहीं बढ़ाया और ना ही उसने अपने दलित, शोषित, कमजोर वर्ग को सहयोग किया। परिणाम स्वरूप दलितों में भी अति दलित वर्ग बन गया।


सवाल यह उठता है की क्या वास्तव में डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा दिखाए गए रास्ते का समाज अनुसरण कर रहा है या सरकार ? देश की राजनीति मे पक्ष और विपक्ष सत्ता तक सिमट कर रह गया है इसलिए महान पुरुषों को भी जाति धर्म में बांटकर राजनीतिक लाभ लेने तक रह गया है। इस सोच को बदलना होगा और समाज को डॉ. बीआर अंबेडकर के बताए रास्ते पर चलकर घर, परिवार, समाज, राष्ट्र की सेवा करने का संकल्प लेना होगा। तभी उनकी जयंती मनाने का सार्थक अर्थ निकलेगा।

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