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संपूर्ण स्वास्थ्य की उम्मीद
इलमा अज़ीम
आम लोगों का स्वास्थ्य कभी भी राजनीति का मुख्य एजेंडा रहा ही नहीं, जबकि आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया में स्वास्थ्य एक बेहद ज़रूरी विषय के रूप में खड़ा हो गया है। हां, भारत में एकमात्र राज्य राजस्थान की पूर्व कांग्रेस की सरकार ने नागरिकों के स्वास्थ्य को उनके मौलिक अधिकार के रूप में क़ानून बनाकर लागू कर दिया।
आज़ादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी देश में जनस्वास्थ्य की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे अनेक स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं अभियानों के बाद भी हम अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सके हैं। महज़ आंकड़ों की बाजीगरी और झूठे प्रचार से जन-स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनायी थी जिसके अंतर्गत विभिन्न रोगों से बचाव एवं उपचार के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रमों का संचालन लंबे समय से किया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ का संचालन भी किया जा रहा है, इन सबके बावजूद जनस्वास्थ्य को हम सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि महिलाओं में प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं तथा नवजात शिशुओं और बच्चों की रुग्णता व मृत्यु दर को कम करने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चाहता है कि दुनिया भर में नवजात शिशुओं और माताओं का स्वास्थ्य बेहतर हो ताकि भविष्य की आबादी में स्वस्थ लोगों की अच्छी संख्या हो। हम जानते हैं कि दुनिया भर में महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति समाज और सरकारें सदैव दोयम दर्जे की दृष्टि रखते हैं।
हालांकि, पश्चिमी देशों में महिलाओं की स्थिति काफ़ी बेहतर है लेकिन भारत एवं एशियाई देशों में महिलाओं को स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए पुरुषों की अपेक्षा ज़्यादा जद्दोजहद करनी पड़ती है। आज़ादी के बाद से अब तक भारत में दो बार राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण हुए। इसमें केंद्र सरकार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या अध्ययन संस्थान ने भी हिस्सा लिया।
सार्वजनिक रूप से अप्रकाशित इन सर्वेक्षण रिपोर्टों के अनुसार प्रत्येक एक लाख जीवित शिशु के जन्म पर लगभग 540 माताओं की मृत्यु हो जाती है। भारत में औरतों की नाज़ुक सेहत की वजह जानने के लिए उनकी ज़िंदगी पर जन्म के बाद से ही नज़र दौड़ानी होगी।
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