वृद्धों की उपेक्षा रुके
इलमा अज़ीम
वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करने वाला देश एवं उसकी नवपीढ़ी आज एक व्यक्ति, एक परिवार यानी एकल परिवार की तरफ बढ़ रहे हैं, वे अपने निकटतम परिजनों एवं माता-पिता को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, उनके साथ नहीं रह पा रहे हैं।
आधुनिक समाज में वृद्ध माता-पिता और उनकी संतान के बीच दूरियां बढ़ना त्रासदी है। भौतिक जिंदगी की भागदौड़ में नई पीढ़ी नए-नए मुकाम ढूंढने में लगी है, उनकी सुविधाओं एवं स्वच्छंदता का शिकार सर्वाधिक वृद्ध हो रहे हैं। आज वृद्धजन अपनों से दूर जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर कवीन्द्र-रवीन्द्र की पंक्तियां गुनगुनाने को क्यों विवश है-‘दीर्घ जीवन एकटा दीर्घ अभिशाप’, दीर्घ जीवन एक दीर्घ अभिशाप है। निश्चित ही वृद्ध जीवन अभिशाप बन रहा है, क्योंकि आज वृद्धों को अकेलापन, परिवार के सदस्यों द्वारा उपेक्षा, दुर्व्यवहार, तिरस्कार, कटुक्तियां, घर से निकाले जाने का भय या एक छत की तलाश में इधर-उधर भटकने का गम हरदम सालता रहता। वृद्ध समाज इतना कुंठित एवं उपेक्षित क्यों है, एक अहम प्रश्न है।
देश ही नहीं, दुनिया में वृद्धों के साथ उपेक्षा, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, हिंसा तो बढ़ती ही जा रही है, लेकिन अब बुजुर्ग माता-पिता से प्रॉपर्टी अपने नाम कराने या फिर उनसे गिफ्ट हासिल करने के बाद उन्हें यूं ही छोड़ देने, वृद्धाश्रम के हवाले कर देने, उनके जीवनयापन में सहयोगी न बनने की बढ़ती सोच आधुनिक समाज का एक विकृत चेहरा है। संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों के बढ़ते चलन ने वृद्धों के जीवन को नरक बनाया है। बच्चे अपने माता-पिता के साथ बिल्कुल नहीं रहना चाहते।
ऐसे बच्चों के लिए सावधान होने का वक्त आ गया है, सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। अपने इस महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर बच्चे माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, तो माता-पिता की ओर से बच्चों के नाम पर की गई संपत्ति की गिफ्ट डीड को रद्द किया जा सकता है।
यह फैसला माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत दिया गया है, जिससे वृद्धों की उपेक्षा एवं दुर्व्यवहार के इस गलत प्रवाह को रोकने में सहयोग मिलेगा। सरकारों को भी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए बेरोजगारों को या वृद्धजनों को सरकारी आर्थिक सहायता का प्रावधान करना चाहिए।
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