पृथ्वी दिवस 2025 के बहाने: शुद्ध प्राण वायु
- डॉ. ओ.पी. चौधरी
पृथ्वी हमारी मां है, जन्मभूमि को मां का दर्जा भारतीय संस्कृति में दिया गया है। जिस धरती पर हमने जन्म लिया है, उसके संरक्षण का हमारा नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दायित्व है।प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होने से पर्यावरण असंतुलित होता जा रहा है, इकोसिस्टम पूरा का पूरा ध्वस्त होता जा रहा है।ग्लोबल वार्मिंग आज की ज्वलंत समस्या है।
विश्व पृथ्वी दिवस की इस साल की थीम है,"हमारी शक्ति, हमारा ग्रह"।यह थीम लोगों को अपने ग्रहों तथा प्रकृति की रक्षा करने और पर्यावरण को बचाने के लिए एकजुट होने हेतु प्रोत्साहित करती है। पृथ्वी दिवस के संस्थापक जेरॉल्ड एंटोन नेल्सन एक अमेरिकी राजनेता और पर्यावरणविद थे, जो संयुक्त राज्य के सीनेटर और गवर्नर के रूप में कार्य किये थे,जिन्होंने पर्यावरण चेतना की नई लहर शुरू की।
इसकी पृष्ठभूमि सितंबर,1969 में विस्कोंसिन,वाशिंगटन के एक सम्मेलन से हुई और तय किया गया कि 1970 की वसंत में एक राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन पर्यावरण पर किया जाएगा। जूलियन केनिग 1969 में नेल्सन की संगठन समिति में सीनेटर थे, उन्होंने इस घटना को "पृथ्वी दिवस" नाम दिया।इस नए आंदोलन को मनाने के लिए 22 अप्रैल का दिन चुना गया ,जो केनिग का जन्मदिन भी होता है।" अर्थ डे" " बर्थ डे" के साथ तालमेल मिलता है।इस दिवस का महत्व इसी तथ्य से स्पष्ट है कि जब 22 अप्रैल,1970 को पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया तो अकेले अमेरिका में इसमें 2 करोड़ लोग शामिल हुए।बताया जाता है कि पूरी दुनिया में एक अरब लोग इसमें सम्मिलित हुए।इसका उद्देश्य था पर्यावरण सुरक्षा के समर्थन में व्यापक जन समर्थन जुटाना।समारोह के आयोजकों में से एक ने कहा," हम पर्यावरणीय घटनाओं की एक पूर्ण और बड़ी रेंज पर सार्वजनिक रुचि की काफी मात्रा पर ध्यान केंद्रित करने जा रहे हैं,हम ऐसे तरीके से ऐसा करेंगे ताकि यह उनके बीच अंतरसंबंधों को चित्रित करे और लोग इसके द्वारा स्थिरतापूर्वक एक तस्वीर के रूप में पूरे मामले पर ध्यान दें।
समाज का वह चित्र जो तेजी से गलत दिशा में जा रहा है,इसे रोककर मोड़ना होगा"।पृथ्वी दिवस जीवन संपदा को बचाने तथा पर्यवरण को स्वच्छ एवं संतुलित रखने के बारे में जागरूक करता है।इस दिन हमें पर्यावरणविदों के माध्यम से ग्लोबल वार्मिग का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है।जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है,उपलब्ध संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिये पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व बढ़ गया है।रियो डी जेनेरियो में 1992 में संयुक्त राष्ट्र ने पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन कर,सम्पूर्ण विश्व का ध्यान इस ओर आकर्षित किया।बताते हैं कि 2007 का पृथ्वी दिवस बहुत विशाल था,184 देशों ने प्रतिभाग किया।
वायु प्रदूषण का तात्पर्य है कि जब वायुमंडल में बाह्य स्रोतों से जैसे-धूल, गैस, धुआं, धुन्ध, आंधी, दुर्गंध, वाष्प आदि प्रदूषक अधिक मात्रा में किसी अवधि विशेष में उपस्थितो जाय कि शुद्ध वायु के नैसर्गिक गन9 में अंतर उत्पन्न हो जाय और उससे मानव स्वास्थ्य प्रभावित होने लगे,जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आ जाय।
आज वायु प्रदूषण इतना बढ़ गया है और घातक हो गया है कि लाखों लोग प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण के कारण काल कवलित हो रहे हैं।अब बाजार में एयर प्यूरीफायर की मांग बढ़ गयी है।पेंट की बिक्री तेज हो गयी कि इसके लगाने से घर की हवा शुद्ध रहेगी।अभी हाल में ही दिल्ली के एक विद्यालय की प्रधानाचार्य को कॉलेज की दीवाल पर गाय के गोबर से पुताई करने का वीडियो वायरल हुआ था।अब हम ऑक्सिजन क्लब की ओर रुख कर रहे हैं।पानी की तरह हवा भी बिक रही है।बोतलबंद हवा की कीमत 1750 रुपये प्रति 10 लीटर है,जिससे 200 बार सांस लिया जा सकता है,अर्थात प्रति सांस की कीमत 8.75 रुपये(हिंदुस्तान,20 अप्रैल,2025)।इसलिए हमें हमेशा प्रकृति के संरक्षण में लगे रहना चाहिए।कोरोना काल मे हम सभी ने ऑक्सिजन के महत्व को भलीभांति समझा है।
वरिष्ठ पत्रकार हरजिंदर जी ने ठीक ही लिखा है कि आज के दिन दुनिया भर के स्कूल, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, दफ्तरों वगैरह में बड़े और भव्य कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं,पर इनमें बदलाव की ऊर्जा कम होती है और पर्व मनाने की औपचारिकता ज्यादा।......पर्यावरण के नाम पर जन -आंदोलन खड़ा करके सरकारों पर दबाव बनाने का जो सपना जेरॉल्ड नेल्सन ने देखा था,आज का पृथ्वी दिवस उससे बहुत दूर जा चुका है।
पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का वर्षभर में जितना उपयोग होता है,उसे पूरा करने में डेढ़ साल लग जायेगा।हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरी पृथ्वी की जरूरत है,जो संभव नही है।हमारे प्रतिदिन कुछ ऐसे क्रिया कलाप होते हैं जो धरती, जल और वन को क्षति पहुंचा रहे हैं,और हम उनके प्रति सचेत नहीं हैं।
आइये हम सभी पृथ्वीवासी यह संकल्प लें कि भोजन व जल की बरबादी को रोकेंगे।फसलों में कीटनाशकों का उपयोग न के बराबर करेंगे।किचन गार्डन को बढ़ावा देना होगा,जहर मुक्त खेती पर जोर देना होगा,केंचुओं को अपने खेतों में वापस लाना होगा।प्लास्टिक का उपयोग बन्द करना होगा।विद्युत का प्रयोग कम करें,अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा दें।वाहन प्रदूषण को रोकें,कम दूरी तय करने के लिए साईकल का प्रयोग करें।अधिक से अधिक सार्वजनिक वाहन का प्रयोग करें।वनों और वनस्पतियों की रक्षा करें,जैव विविधता को बढ़ावा दें।
जल, जंगल,जमीन संरक्षण जब जन आंदोलन का स्वरूप धारण कर लेगा तभी हम जलवायु परिवर्तन की तबाही से बच सकेंगे और आगामी संतति को एक स्वच्छ व स्वस्थ पर्यावरण प्रदान कर सकेंगे। रूजवेल्ट ने ठीक ही लिखा है जंगल धरती के फेफड़े हैं।ये न सिर्फ ताजी हवा पैदा करते हैं बल्कि वायु में घुला जहर भी पीते हैं।जो देश अपने जंगलों को नष्ट कर रहे हैं,वे अपने अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर रहे हैं।लेखक का मानना है कि "प्रत्येक व्यक्ति एक पेड़ अवश्य लगाए और उसकी देखरेख करे"-हम जब ऐसे कृत संकल्पित होंगे, तभी पृथ्वी को स्वस्थ और स्वच्छ रूप में अगली पीढ़ी को सुरक्षित रूप से सौंप सकेंगे।सम्प्रति हमें शुद्ध प्राणवायु मुफ़्त में मिल सकेगी।
(सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पीजी.कॉलेज,वाराणसी)
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