कामकाजी महिला : चुनौतियां
इलमा अज़ीम
भारतीय परिवारों पर आर्थिक दबाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। देश में जीवन निर्वाह लागत, बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च और आवास संपत्तियों की लागत में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे हर परिवार को अपनी आय बढ़ाने के 5 तरीके तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस कारण देश में रोजगार मामले में महिलाओं की सहभागिता बढ़ी है। भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की रपट के अनुसार असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों की संख्या वर्ष 2022-23 के 22.9 फीसद से स बढ़ कर वर्ष 23-24 में 26.2 फीसद हो गई। देश के रोजगार परिदृश्य में बदलाव आ रहा है और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
एक रिपोर्ट के अनुसार 2023 के मुकाबले 2024 में महिला पेशेवरों के औसत वेतन में भी 28 फीसद की वृद्धि हुई। इस सब के बावजूद संगठित क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र की तुलना में महिलाओं के कम रोजगार का मुख्य कारण कम कौशल और कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार होने की मजबूरी है। देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन में लगभग 25.4 फीसद का अंतर है।
अधिकांश असंगठित क्षेत्र के व्यवसाय जैसे मिट्टी के बर्तन बनाने, कृषि, निर्माण कार्य, हथकरघा, घरेलू सेवाएं और घरेलू उद्यमों में महिलाएं कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र में महिला श्रमिक आमतौर पर बहुत कम वेतन पर बीच-बीच में काम करने वाले आकस्मिक श्रमिक के रूप में कार्यरत हैं। उनको अत्यधिक शोषण का सामना करना पड़ता है, जिनमें काम की लंबी अवधि अस्वीकार्य कार्य परिस्थितियां और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बनी रहती हैं।
एक रपट के अनुसार भारत में दस में से पांच महिला कर्मचारियों ने किसी न किसी तरह के लैंगिक भेदभाव का अनुभव किया है। यह भेदभाव वेतन, कार्य के घंटे, अवकाश, अवसर और पदोन्नति के मामले में है। इस सर्वेक्षण के अनुसार, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों वाली महिलाओं को भी भर्ती प्रक्रिया के दौरान और नौकरी की संभावनाओं के लिए प्रतिस्पर्धा करते समय नुकसान उठाना पड़ता है।
कामकाजी महिलाएं हों या अपना कारोबार करने वाली, उन्हें काम पर तुलनात्मक रूप से अधिक चुनौतियों का सामना सिर्फ इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि वे महिला हैं। भले ही कानून भर्ती और पारिश्रमिक में समानता की घोषणा करता है, लेकिन इसका हमेशा पालन नहीं किया जाता है। एक ही काम के लिए महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग वेतन मिलता है। देश में संगठित और असंगठित कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में सुधार के लिए समय-समय पर प्रयास भी किए गए हैं। बावजूद इसके अपेछित परिणाम सामने नहीं आ पाए है।
लेखिका एक स्वत्रंत पत्रकार है
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