इमरान प्रतापगढ़ी पर दर्ज एफआईआर रद्दसुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दिलाई याद
नई दिल्ली।इस साल जनवरी में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा मामला रद्द करने से इनकार करने के बाद, शीर्ष अदालत ने पहले कांग्रेस सांसद की एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने एफआईआर को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उस पर लगाई गई सीमाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाज का एक अभिन्न अंग है और इस बात को बरकरार रखा कि बोलने के अधिकार पर उचित प्रतिबंध होना चाहिए, लेकिन यह प्रतिबंध नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए अनुचित और काल्पनिक नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत की टिप्पणी गुजरात पुलिस द्वारा कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए आई, जिसमें एक कविता 'ऐ खून के प्यासे बात सुनो। अदालत ने कहा कि प्रतापगढ़ी के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है, साथ ही यह भी कहा कि पुलिस को ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले लिखित या बोले गए शब्दों का अर्थ समझना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी नागरिक होने के नाते अधिकारों को बनाए रखने के लिए बाध्य हैं। जब धारा 196 बीएनएस के तहत अपराध होता है, तो इसे कमजोर दिमाग या उन लोगों के मानकों के अनुसार नहीं आंका जा सकता है जो हमेशा हर आलोचना को अपने ऊपर हमला मानते हैं। इसे साहसी दिमाग के आधार पर आंका जाना चाहिए।
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