मुक्त व्यापार की प्रासंगिकता
इलमा अज़ीम
अमेरिका के राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर के कई देशों से आयात पर उच्च टैरिफ (जवाबी आधार पर) लगाने की अपनी मंशा की घोषणा करके द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी वैश्विक मुक्त व्यापार प्रणाली पर सीधा हमला बोल दिया। 1990 के दशक से, एक दृष्टिकोण जोर पकड़ रहा था कि उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की नीति ही दुनिया के लिए, खासकर विकासशील देशों के लिए आगे बढऩे का एकमात्र रास्ता है।
यह उल्लेखनीय है कि यह अमेरिका और उसके सहयोगी ही थे जिन्होंने दुनिया को मुक्त व्यापार की ओर धकेला था, खासकर विश्व व्यापार संगठन के गठन के साथ, जिसने नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली की शुरुआत की। विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व में आने के साथ, टैरिफ धीरे-धीरे कम हो गए और गैर-टैरिफ बाधाओं की संख्या और तीव्रता भी कम हो गई। मुक्त व्यापार के समर्थक व्यापार नीति पर चर्चा में हावी हो गए, क्योंकि वे विश्व व्यापार संगठन के बाद के दौर में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर भरोसा कर रहे थे, जिसने उनके अनुसार विकासशील देशों को उच्च विकास दर हासिल करने में मदद की थी।
डोनाल्ड ट्रम्प ने सबसे पहले विश्व व्यापार संगठन व्यापार प्रणाली की अवहेलना शुरू की। अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान पैनलों के न्यायाधीशों के नामांकन को अवरुद्ध कर दिया। इसने विश्व व्यापार संगठन में विवाद निपटान तंत्र को लगभग पंगु बना दिया, जो नियम आधारित व्यापार प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है।
अब अपने दूसरे कार्यकाल में, डोनाल्ड ट्रम्प एकतरफा टैरिफ तय करके विश्व व्यापार संगठन के मूल नियम को ही पलट रहे हैं। इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि विश्व व्यापार संगठन में, संयुक्त राज्य अमेरिका को देश विशिष्ट टैरिफ लगाने का एक विशेषाधिकार है। डोनाल्ड ट्रंप का तर्क बहुत सरल है कि यदि अन्य देश अमेरिकी निर्यात पर उच्च टैरिफ लगा रहे हैं, तो अमेरिका भी उच्च टैरिफ लगाएगा, जिसे वे जवाबी टैरिफ कहते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप की इस कार्रवाई से विश्व अब उच्च टैरिफ की ओर आगे बढ़ेगा। यह डब्ल्यूटीओ व्यापार प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
लेखिका एक सत्रत्रंत पत्रकार है
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