वैज्ञानिक सोच जरूरी
इलमा अज़ीम
आज विज्ञान का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक्स-रे, एमआरआई, अल्ट्रासाउंड और रोबोटिक सर्जरी जैसी तकनीकों ने चिकित्सा को अत्याधुनिक बना दिया है। संचार क्रांति के कारण मोबाइल फोन, इंटरनेट, 5जी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने सूचना के आदान-प्रदान को तेज और प्रभावी बना दिया है।
खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में जीन संपादन, ड्रोन तकनीक और स्मार्ट इरिगेशन सिस्टम जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों ने खेती को अधिक टिकाऊ और कुशल बनाया है। परिवहन और अंतरिक्ष विज्ञान में भी भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। हाल ही में भारत के चंद्रयान-3 और गगनयान मिशन ने अंतरिक्ष में नई संभावनाओं को जन्म दिया। मिशन मंगल और अन्य अंतरिक्ष अभियानों ने भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई है। भारत ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं।
हालांकि, विज्ञान ने दुनिया को आगे बढ़ाने में मदद की है, लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। वैज्ञानिक सोच का अभाव और अंधविश्वास समाज के विकास में बाधा डालते हैं। आज भी लोग बिना वैज्ञानिक आधार के कई धारणाओं को मानते हैं, जिससे समाज में रूढ़िवादिता बनी रहती है। इसे दूर करने के लिए वैज्ञानिक शिक्षा को प्राथमिक स्तर से ही बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहलों को सशक्त करने के लिए अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना जरूरी है। इसके अलावा, पर्यावरण और कृषि में विज्ञान के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है। बायो-प्लास्टिक, अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छ ऊर्जा जैसी तकनीकों को अपनाने से न केवल प्रदूषण की समस्या से निपटा जा सकता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोका जा सकता है। इसी तरह कृषि क्षेत्र में टिकाऊ खेती, जल संरक्षण और जैविक खेती को प्रोत्साहित करके खाद्यान्न और पोषण के संकट से पार पा सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र पर बढ़ते दबाव को भी कम किया जा सकता है।
लेखिका एक स्वत्रंत पत्रकार
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