मखदुमपुर घाट, गंगा नदी,में कछुआ शावकों का विमोचन कार्यक्रम आयोजित
मेरठ। रविवार को, गंगा नदी के तट पर स्थित मुखदुमपुर घाट, मेरठ में एक महत्वपूर्ण संरक्षण कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस दौरान बाटागुर ढोंगोका (Batagur dhongoka), पंगशुरा स्मिथी (Pangshura smithi) और पंगशुरा टेंटोरिया (Pangshura tentoria) प्रजातियों के कुल 150 कछुआ शावकों को उनके प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रूप से विमोचित किया गया। यह पहल क्षेत्र की जल जैव विविधता को संरक्षित और पुनर्जीवित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
वैज्ञानिक प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करते हुए, कछुआ शावकों को अत्यंत सावधानीपूर्वक छोड़ा गया। तनाव को कम करने और उनके जीवित रहने की संभावना को अधिकतम करने के लिए सभी आवश्यक सुरक्षा उपाय अपनाए गए। यह कार्यक्रम जिम्मेदार वन्यजीव संरक्षण प्रथाओं के प्रति एक सशक्त प्रतिबद्धता को दर्शाता है और सतत पर्यावरणीय प्रबंधन के लिए विभिन्न हितधारकों की सामूहिक भागीदारी को मजबूत करता है।
यह संरक्षण प्रयास न केवल मीठे पानी के कछुओं के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने में सहायक होगा, बल्कि नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह पहल भारत की समृद्ध जलीय जैव विविधता की सुरक्षा हेतु किए जा रहे सामूहिक संरक्षण कार्यक्रमों के महत्व को रेखांकित करती है।कछुआ विमोचन में आये हुये अधिकारीयों के द्वारा डोल्फिन, घड़ियाल, प्रवाआदि अक अवलोकन किया
कार्यक्रम में नुपुर गोयल, मुख्य विकास अधिकारी (CDO) मेरठ,राजेश सिंह, प्रभागीय वन अधिकारी (DFO) मेरठ, WWF-India, नदी एवं वेटलैंड डिवीज़न के सदस्य ( अर्जित मिश्रा, एसोसिएट डायरेक्टर; डॉ. हरी मोहन, एसोसिएट कोऑर्डिनेटर; रामअवतार; सीटू आदि), मखदुमपुर गाँव के मुख्य गंगा मित्र सदस्य (नरेन्द्र, नेपाल, राजू, रोहताश एवं महिपाल आदि) और वन विभाग के कर्मचारी उपस्थित रहे। इनकी सहभागिता ने वन अधिकारियों, संरक्षण संगठनों और स्थानीय समुदायों के सामूहिक प्रयासों को उजागर किया, जो गंगा नदी की पारिस्थितिकीय संतुलन की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।
150 कछुआ शावकों के विमोचन सहित, वर्ष 2024-25 में कुल 3048 कछुआ शावकों का विमोचन किया जा चूका है। वर्तमान ने WWF-इंडिया और उत्तर प्रदेश वन विभाग के सयुक्त प्रयास से मेरठ जिले के मखदुमपुर घाट पर इस-सीटू कछुआ संरक्षण हेचरी बनाई गई है जिसमें 181 कछुआ नेस्टों (2017 अण्डे) को रेस्क्यू करके रखा गया है, जिनसे जून माह में शावक निकलेंगे तथा उनको फ्लड के बाद प्रकृतिक परिवेश में विमोचित किया जायेगा ।
2012 से, WWF-इंडिया और उत्तर प्रदेश वन विभाग ऊपरी गंगा में सयुक्त इन-सीटू और एक्स-सीटू कछुआ संरक्षण के प्रयास किया जा रहे है, जिसका मुख्य उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी और आवास संरक्षण के माध्यम से संकटग्रस्त मीठे पानी के कछुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। नदी तट के किसानों को घोंसले बनाने के स्थलों की रक्षा करने और घोसलों के प्रेडेशन को कम करने के लिए शामिल करना इस पहल की प्रमुख रणनीति रही है, जिसमें भारतीय संस्कृति में कछुओं के प्रति श्रद्धा को स्थानीय संरक्षण भावना बढ़ाने के लिए उपयोग किया गया है। यह कार्यक्रम शुरू में हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य में शुरू हुआ था, जिसे 2015 में रामगंगा नदी और 2017 में ऊपरी गंगा रामसर स्थल तक विस्तारित किया गया, जिससे एक स्थायी संरक्षण मॉडल विकसित हुआ तथा कछुओं की पापुलेशन और आवास सुरक्षा को मजबूत हुई है। घोंसले बनाने के स्थलों की पहचान और सुरक्षा, कछुआ शावकों को सुरक्षित रूप से छोड़ने और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के माध्यम से, यह पहल मानव-वन्यजीव संघर्ष को एक सामुदायिक-आधारित संरक्षण सफलता में परिवर्तित कर गंगा नदी पारिस्थितिकी तंत्र की स्थायित्व को मजबूत कर रही है।
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