बौद्ध धर्म करेगा वैश्विक संघर्षों का समाधान
सम्यक दृष्टि एवं सम्यक संकल्प से ही विश्व में होगी शांति: प्रो मनोज रावत
मेरठ। बृहस्पतिवार को मेरठ कॉलेज के इतिहास विभाग द्वारासेमिनार हॉल में बौद्ध धर्म के विचार की प्रासंगिकता एवं समकालीन विश्व नामक विषय पर एक दिवसीय सिंपोजियम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मेरठ कॉलेज के प्राचार्य डॉ मनोज रावत ने की और संगोष्ठी का संचालन डॉक्टर अर्चना एवं डॉक्टर चंद्रशेखर ने किया।
संगोष्ठी में नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी शिलांग मेघालय से पधारी प्रोफेसर अपर्णा माथुर ने बताया कि बौद्ध धर्म, जो लगभग 2500 वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित किया गया था, आज भी अपनी गहन शिक्षाओं के कारण प्रासंगिक बना हुआ है। यह धर्म करुणा, अहिंसा, ध्यान और आत्मज्ञान पर आधारित है, जो आधुनिक समाज की जटिल समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। उपभोक्तावादी संस्कृति, मानसिक तनाव, पर्यावरण संकट और सामाजिक असमानता जैसी समकालीन चुनौतियों के बीच बौद्ध विचारधारा एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती है। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉक्टर भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली से पधारी डॉक्टर सीमा यादव ने कहा कि आधुनिक जीवन तनाव, अवसाद और चिंता से भरा हुआ है। डिजिटल युग में लोगों की जीवनशैली अत्यधिक व्यस्त और अनिश्चित हो गई है। ऐसे में बौद्ध धर्म द्वारा प्रतिपादित ध्यान (मेडिटेशन) और विपश्यना की विधियाँ मानसिक शांति प्रदान कर सकती हैं। आज, न केवल एशियाई देशों में बल्कि पश्चिमी समाज में भी बौद्ध ध्यान पद्धतियाँ जैसे ज़ेन मेडिटेशन और माइंडफुलनेस तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। सीसीएस यूनिवर्सिटी मेरठ से पधारी डॉक्टर मनीषा त्यागी ने बताया कि बौद्ध धर्म की करुणा (compassion) और अहिंसा (non-violence) की शिक्षाएँ समकालीन समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। विश्वभर में बढ़ती हिंसा, नस्लीय भेदभाव, धार्मिक कट्टरता और युद्ध के माहौल के बीच बुद्ध का "मैत्रीभाव" और "सर्वजन हिताय" का सिद्धांत शांति और सौहार्द स्थापित करने में सहायक हो सकता है। उन्होंने भारत एवं श्रीलंका के मध्य सम्राट अशोक के समय में स्थापित हुए बौद्ध संपर्क पर भी विस्तार से प्रकाश डाला और बताया कि मौर्य सम्राट अशोक के समय उनके पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजे गए। संघमित्रा बोधि वृक्ष की छह शाखाएं श्रीलंका ले गई और आज भी अनुराधापुरा में दुनिया का सबसे पुराना बोधि वृक्ष विद्यमान है। प्रोफेसर अनीता गिरी ने विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि
आज, पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट से जूझ रहा है। बौद्ध धर्म प्रकृति के प्रति सम्मान और संतुलित जीवनशैली पर जोर देता है। बुद्ध की शिक्षाओं के अनुसार, अतिभोग और संसाधनों के अनियंत्रित उपभोग से बचना चाहिए। बौद्ध भिक्षु न्यूनतम संसाधनों में जीवनयापन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जो एक टिकाऊ (sustainable) जीवनशैली की ओर संकेत करता है। मेरठ कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर मनोज रावत ने सभागार को संबोधित करते हुए कहा कि आधुनिक समाज उपभोक्तावाद (consumerism) की गिरफ्त में है, जहाँ भौतिक सुख-सुविधाओं की असीमित चाहत ने लोगों को असंतुष्ट और तनावग्रस्त बना दिया है। बौद्ध धर्म का "मध्यम मार्ग" (Middle Path) भोग और तपस्या के बीच संतुलन स्थापित करने पर बल देता है। यह सिखाता है कि सच्चा आनंद बाहरी भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष में है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रोफेसर अर्चना ने बताया कि बौद्ध धर्म अंधविश्वासों से दूर रहकर तर्क, अनुभव और अनुशीलन (अनुभवजन्य अध्ययन) पर जोर देता है। बुद्ध ने कहा था कि किसी भी बात को केवल परंपरा या विश्वास के आधार पर स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे स्वयं जांचकर और समझकर अपनाना चाहिए। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण आज के युग में अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ विज्ञान और धर्म के बीच संवाद की आवश्यकता महसूस की जा रही है। कार्यक्रम के स्वागत भाषण में प्रोफेसर चंद्रशेखर भारद्वाज ने कहा कि आज का विश्व कई प्रकार के संघर्षों से घिरा हुआ है, जिसमें धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक टकराव शामिल हैं। बौद्ध धर्म "सम्यक दृष्टि" (Right View) और "सम्यक संकल्प" (Right Intention) के माध्यम से सहिष्णुता, संवाद और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है। महात्मा गांधी, दलाई लामा और अन्य शांति दूतों ने बौद्ध अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाकर विश्व में शांति की स्थापना का प्रयास किया है। प्रोफेसर मनोज रावत ने कार्यक्रम के अंत में कहा कि बौद्ध धर्म केवल एक प्राचीन धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन शैली और दर्शन है, जो आज भी पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है। चाहे वह मानसिक शांति की खोज हो, पर्यावरण संरक्षण हो, सामाजिक सौहार्द हो या व्यक्तिगत विकास, बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं हो सकती। यदि आधुनिक समाज बौद्ध धर्म के मूल्यों को आत्मसात करे, तो न केवल व्यक्ति बल्कि संपूर्ण विश्व अधिक शांतिपूर्ण, न्यायसंगत और समरसतापूर्ण बन सकता है।
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