करनाल गुरबख्श सिंह ढिल्लों: आजाद हिंद फौज के वीर सेनानी
मेरठ। शनिवार को मेरठ कॉलेज के इतिहास विभाग की ओर से आजाद हिंद फौज के कर्नल गुरुबक्श सिंह ढिल्लन के जीवन और आजाद हिंद फौज में उनके योगदान पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य मुख्य वक्ता जे . के. अग्रवाल ने सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्राचार्य मनोज रावत, कॉलेज के अध्यक्ष ओ. पी. अग्रवाल, सेक्रेटरी विवेक गर्ग और मुख्य प्रोफेसर के.डी. शर्मा इत्यादि ने मां सरस्वती के सामने दीप प्रज्वलित करके किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जे . के.अग्रवाल जी ने कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन के जीवन और आजाद हिंद फौज के कुछ अप्रकाशित जानकारी के बारे में बताया साथ ही अग्रवाल ने इतिहास विभाग के संग्रहालय को आजाद हिंद फौज के नायक गुरु बख्श सिंह ढिल्लन के जीवन से संबंधित दस्तावेज इतिहास विभाग के संग्रहालय को भेंट किये।
मेरठ कॉलेज के प्राचार्य मनोज रावत ने जे.के अग्रवाल का इन प्राचीन पांडुलिपियों को मेरठ कॉलेज के संग्रहालय में देने के लिए धन्यवाद दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि ऐसे व्याख्यान युवाओं को अपने गौरवशाली इतिहास से अवगत कराते हैं और उन्हें राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारों का बहुत करते हैं।
कार्यक्रम का संचालन प्रो चंद्रशेखर भारद्वाज एवं प्रो अर्चना ने किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर वकुल रस्तोगी ने प्रस्तुत किया। इस व्याख्यान के माध्यम से सभी शोध छात्रों, छात्राओं ने कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन के जीवन और आजाद हिंद फौज में उनके योगदान के बारे में गहन जानकारी प्राप्त की। श्री जीके अग्रवाल ने बताया कि
कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख योद्धा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिंद फौज के वीर सेनानियों में से एक थे। उनका जन्म 18 मार्च 1914 को पंजाब के एक सिख परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही बहादुर और देशभक्त थे, जिससे उनका झुकाव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ओर हुआ।
गुरबख्श सिंह ढिल्लों ने अपनी शिक्षा के बाद ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती ली। वे एक प्रतिभाशाली सैनिक थे और अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करते थे। हालांकि, जब उन्होंने ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों को देखा, तो उनका मन विद्रोही हो गया और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए। सभा स्थल को समित संबोधित करते हुए डॉक्टर ओपी अग्रवाल ने कहा कि
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापान ने सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर कब्ज़ा किया, तब कई भारतीय सैनिक जापानी सेना के कैदी बन गए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जापान के समर्थन से आजाद हिंद फौज का पुनर्गठन किया और ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए सैन्य संघर्ष छेड़ दिया। इसी दौरान गुरबख्श सिंह ढिल्लों भी नेताजी के इस मिशन में शामिल हो गए और आजाद हिंद फौज के एक प्रमुख अधिकारी बने।
मेरठ कॉलेज के सचिव श्री विवेक गर्ग ने बताया कि उन्होंने "दिल्ली चलो" के नारे के साथ भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष किया। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता के कारण उन्हें कर्नल की उपाधि दी गई। वे बर्मा (म्यांमार) और मणिपुर में ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, लेकिन दुर्भाग्यवश, ब्रिटिश सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
प्राचार्य मनोज रावत ने कहा कि 1945 में जब ब्रिटिश सेना ने गुरबख्श सिंह ढिल्लों, शहनवाज खान और प्रेम सहगल को बंदी बना लिया, तब इन्हें लाल किले में कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा। इस मुकदमे ने पूरे देश में ब्रिटिश राज के खिलाफ रोष पैदा कर दिया। भारत के लोगों ने इन वीर सेनानियों के पक्ष में जबरदस्त आंदोलन किया, जिसके दबाव में अंग्रेजों को उन्हें रिहा करना पड़ा। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रोफेसर अर्चना नेकहा कि भारत की स्वतंत्रता के बाद, गुरबख्श सिंह ढिल्लों ने राजनीति और समाजसेवा में सक्रिय भूमिका निभाई। वे स्वतंत्र भारत में देशभक्ति और राष्ट्रनिर्माण के कार्यों में संलग्न रहे। 6 फरवरी 2006 को इस महान सेनानी का निधन हो गया, लेकिन वे हमेशा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गौरवशाली इतिहास में अमर रहेंगे। मंच संचालन करते हुए डॉक्टर चंद्रशेखर ने बताया कि गुरबख्श सिंह ढिल्लों का जीवन संघर्ष, बलिदान और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देता है। उनका अदम्य साहस और त्याग हमें सिखाता है कि देश की आजादी और सम्मान के लिए कुछ भी कुर्बान किया जा सकता है। कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ अनुराग सिंह, डॉ हरजिंदर सिंह, डॉअनीता मलिक, डॉ अंशु मेहरा, विपिन, जॉनी, रोहित कश्यप, अर्चित बंसल, अल्केश इत्यादि का विशेष सहयोग रहा।
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